"ज्ञानपीठ सम्मान के लिए नाम की घोषणा होने के बाद हिंदी भाषा के मूर्धन्य
कवि एवं आलोचक प्रोफ़ेसर केदार नाथ सिंह से हुए टेलीफोनिक इंटरब्यू में
उन्होंने साझा किया.!
अपने
जन्म स्थान - चकिया, बलिया (उत्तर प्रदेश) से
लेकर बनारस में शिक्षा अर्जन और जे . एन . यू . में अपने सेवा काल से लेकर राष्ट्रिय -
अंतरराष्ट्रिय मुद्दो पर कई विचार, जीवन में आये तमाम
उतार चढ़ाव और भावनात्मक पहलुओं पर भी खुलकर बोले,
और अपनी माटी को कई बार किया नमन !,
वर्तमान
इराक मुद्दे पर भी एक साहित्यकार के नजरिये से रखी अपनी बात और अपने विचार !
मानवता को सुरक्षित रखने पर बल दिया ! ईराक के लिए परेशानी के इस दौर में
भारत की तरफ से स्वस्थ पहल हो ऐसा सुझाव भी दिया ! वर्तमान भारत सरकार के विकास
मार्ग को दूरदर्शी सोच बताया उन्होंने कहा कि विकास का मार्ग धीमी गति से हो तो
सफलता मिलती है किन्तु त्वरित गति से होने पर विनास का रास्ता भी बना देता है ,
इसलिए
नई मोदी सरकार की नीतियों पर टिप्पणी
करने के बजाय थोड़ा धैर्य रखना होगा हमे साथ ही जो गलत लगे उसपर अपनी अभिब्यक्ति
भी देनी होगी ! साहित्य और समाज का अटूट रिस्ता है , साहित्यकार
को अपने धर्म और दाइत्वा के प्रति सजग होना होगा ! क्यों की समाज में बहुत कुछ बदल रहा है ! "
यहाँ
प्रस्तुत है मेरे और प्रोफेसर केदारनाथ सिंह के बीच हुआ सवाल जवाब ===================================================
"प्रश्न 1 - अपने जन्म स्थान,माता-पिता,पारिवारिक पृष्ठभूमि एवं प्रारंभिक शिक्षा के बारे में कुछ
बताये.................. ?? "
उत्तर
- प्रोफेसर केदार नाथ सिंह..................
"मेरा जन्म चकिया गाँव , बलिया जिला (उत्तर प्रदेश )
में 1934 में एक किसान परिवार में हुआ"
पिता
का नाम - श्री डोमन सिंह .
माता
का नाम - लालझरी देवी था !
"परिवार की आय का श्रोत कृषि था , पिता जी पेसे से
किसान थे ! मेरी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के ही प्राथमिक विद्यालय से हुई ! मै अपनी
माता के आशीर्वाद की छत्र छाया में लम्बे समय तक रहा 2 वर्ष
पूर्व 102 साल की उम्र में उनका निधन हुआ ! मेरा गाँव और
महान समाजवादी चिंतक एवंम समाजवादी आंदोलन के प्रणेता जय प्रकाश नारायण जी का गाँव एक दूसरे से लगा हुआ ही है ! हम दोनों
के बीच एक समानता भी है जयप्रकाश जी ने बलिया छोड़ विहार को अपनी कर्मभूमि बनाया और
मैंने उच्च शिक्षा अर्जन करने के बाद दिल्ली को अपनी कर्म स्थली बनाया ! यह बलिया जिला का अंतिम पूर्वी छोर और अति पिछड़ा इलाका है , गंगा और सरयू नदी की गोद में बसा है यह इलाका ! और आज भी मुझे इसकी माटी
उतनी ही प्यारी है जीतनी एक बच्चे को अपनी माँ की गोद ! मेरे जीवन मेरे साहित्य
में आपको इसकी झलक मिल जायेगी ! "
..................
"प्रश्न 2 - उच्च शिक्षा कहा से और किस विषय
में अर्जित किया आपने, किस विसय-किस विधा पर किया आपने
अपना शोध कार्य पूरा , कौन रहे आपके शोध गुरु ? अपने किसी निकटतम मित्र के विषय में भी बताये
जिनसे रहा आपका आत्मीय और गहरा सबंध जीवन भर ..................?? "
उत्तर
- प्रोफेसर केदार नाथ सिंह ..................
8 वी क्लास के बाद आगे की शिक्षा के लिए मै
बनारस चला गया ! मैंने 9 वी से लेकर इंटरमीडिएट तक की
एवमं अपनी उच्च शिक्षा और शोध कार्य बनारस में ही पूरा किया !
अपनी
उच्च शिक्षा मैंने बनारस हिन्दू विस्वविद्यालय ( बी. एच. यू. ) से पूरा किया ! यह
पिता जी का सपना था जिसे मैंने साकार किया !
" मैंने अपनी उच्च शिक्षा हिंदी विषय में पूरी की ! क्यों की हिंदी भाषा के
प्रति बचपन से मुझे गहरा लगाव रहा ,और लिखने पढने की रूचि भी
उद्दाहरण स्वरुप आप मेरी कविता- मेरी भाषा के लोग को देख सकते है - "
===============
मेरी
भाषा के लोग
मेरी
सड़क के लोग हैं
सड़क
के लोग सारी दुनिया के लोग
पिछली
रात मैंने एक सपना देखा
कि
दुनिया के सारे लोग
एक
बस में बैठे हैं
और
हिंदी बोल रहे हैं
फिर
वह पीली-सी बस
हवा
में गायब हो गई
और
मेरे पास बच गई सिर्फ़ मेरी हिंदी
जो
अंतिम सिक्के की तरह
हमेशा
बच जाती है मेरे पास
हर
मुश्किल में
कहती
वह कुछ नहीं
पर
बिना कहे भी जानती है मेरी जीभ
कि
उसकी खाल पर चोटों के
कितने
निशान हैं
कि
आती नहीं नींद उसकी कई संज्ञाओं को
दुखते
हैं अक्सर कई विशेषण
पर
इन सबके बीच
असंख्य
होठों पर
एक
छोटी-सी खुशी से थरथराती रहती है यह !
तुम
झांक आओ सारे सरकारी कार्यालय
पूछ
लो मेज से
दीवारों
से पूछ लो
छान
डालो फ़ाइलों के ऊंचे-ऊंचे
मनहूस
पहाड़
कहीं
मिलेगा ही नहीं
इसका
एक भी अक्षर
और
यह नहीं जानती इसके लिए
अगर
ईश्वर को नहीं
तो
फिर किसे धन्यवाद दे !
मेरा
अनुरोध है —
भरे
चौराहे पर करबद्ध अनुरोध —
कि
राज नहीं — भाषा
भाषा
—
भाषा — सिर्फ़ भाषा रहने दो
मेरी
भाषा को ।
इसमें
भरा है
पास-पड़ोस
और दूर-दराज़ की
इतनी
आवाजों का बूंद-बूंद अर्क
कि
मैं जब भी इसे बोलता हूं
तो
कहीं गहरे
अरबी
तुर्की बांग्ला तेलुगु
यहां
तक कि एक पत्ती के
हिलने
की आवाज भी
सब
बोलता हूं जरा-जरा
जब
बोलता हूं हिंदी
पर
जब भी बोलता हूं
यह
लगता है —
पूरे
व्याकरण में
एक
कारक की बेचैनी हूं
एक
तद्भव का दुख
तत्सम
के पड़ोस में !!
"मेरे गुरु थे श्रध्येय आचार्य हज़ारी प्रसाद दिवेदी जी, मैंने उन्ही के अंडर
में बनारस हिन्दू विस्वविद्यालय से अपना शोध कार्य भी पूरा
किया ! मेरे शोध का विषय ( टॉपिक) था आधुनिक हिंदी कविता में विम्ब विधान ( काब्य
विम्ब ) ! साथ ही सिकेश लाल भी मेरे गुरु रहे !
एक नाम ऐसा भी है मेरे जीवन में, जिसका मेरे साथ गुरु शिष्य
से लेकर परम मित्र तक का अटूट और आत्मीय रिस्ता है ! वह नाम है नामवर सिंह का ! जो मेरे गुरु भी रहे
और परम मित्र भी क्यों की इनके और मेरे बीच उम्र की समानता थी ! इनका मुझपर काफी
प्रभाव भी रहा इनका ! आगे चलकर हमारी मित्रता और प्रगाढ़
हुई और रिस्तेदारी में बदल गई नामवर सिंह मेरे समधी भी है ! आप कह सकते है गुरु शिष्य से शुरू हुआ हमारा रिस्ता मित्रता
में बदला फिर रिश्तेदारी में बदला और जीवन भर के लिए प्रगाढ़ हो गया ! "
..................
"प्रश्न ३ = बलिया की माटी से ज्ञानपीठ सामान तक का यह सफर कैसा रहा
आप के लिए ? कितने उतार चढ़ाव आये जीवन में ? कहा से शुरू किया था आप ने शिक्षक के रूप में अपनी पहली नौकरी अपना पहला
कार्य ? अपनी जीवन संगिनी और बच्चो के विषय में कुछ बताये ..?? आज जब ज्ञानपीठ सम्मान की घोषणा
हुई है आप के लिए तो ऐसे में हम जानना चाहेंगे कि अबतक कितने और सम्मान मिल चुके
है आपको आपके द्वारा हिंदी भाषा के लिए की गई रचनाओ पर ? हिंदी
भाषा की किस विधा पर किया है आपने काम , अपनी कुछ प्रमुख
रचनाओ के बारे में बताये ..................??? "
उत्तर
- प्रोफेसर केदारनाथ सिंह ..................
"काफी उतार चढ़ाव आया मेरे जीवन में , बलिया के अति पिछड़े
गाँव के एक किसान परिवार में जन्म से लेकर जे0 एन0 यू0 तक की यात्रा और आज ज्ञानपीठ सम्मान तक सहज
नहीं रहा सबकुछ मेरे लिए ! बहुत कुछ पाया तो बहुत कुछ
खोया भी मैंने जीवन में ! "
"मैंने 1969 में अपनी पहली नौकरी पडरौना के एक कॉलेज
में शुरू किया था,यह मेरे जीवन में आर्थिक संकट का भी दौर था
1969 से 1975 तक मैंने तमाम संकटो और
दुखो का सामना किया पडरौना में नौकरी के दौरान ही मेरी पत्नी गंभीर रूप से वीमार
पड़ी, मैंने अपनी क्षमता के अनुसार उनका इलाज करवाया किन्तु
वह काफी न था उनके लिए और उनकी वीमारी बढ़ती चली गई इसी बीच मै कुछ दिनों के लिए
दिल्ली आया और उधर पत्नी की तबियत ज्यादे बिगड़ गई मै चाह कर भी उन्हें बचा न पाया
! यह मेरे जीवन की अपूर्णीय क्षति रही जिसकी भरपाई मै नहीं कर पाया ! पत्नी
के निधन के 36 साल बाद भी मै उन्हें विस्मृत नहीं कर पाया
उनकी मौजूदगी हर पल हर स्थिति में मह्सुश करता हूँ मै , पत्नी के निधन के बाद पत्नी की रिक्तता खली
वैवाहिक जीवन शुरू करू ऐसी कोई इक्षा नहीं हुई मेरी , तबसे
अकेला रहा ! मैंने यह प्रण लिया की जीवन में दुबारा मै विवाह नहीं करूँगा, मैंने अपने इस प्रण को पूरा भी किया मै अविवाहित रहा ! मेरी 5 बेटियां और एक बेटा है ! बेटियां उच्च शिक्षा प्राप्त कर, शादी के बाद शिक्षण कार्य में है और बेटा दिल्ली में ही भारत सरकार की
उच्च सेवा में है ! शुरुआती दिनों में मैंने रीडर के रूप में दो वर्ष तक गोरखपुर
के सेंटएंड्रयूज कॉलेज में भी अपनी सेवा दिया था ! वर्ष 1976 के अंत में मेरी नियुक्ति जे0 एन0 यू0 में हुई ! यहाँ पर
मैंने 1976 से लेकर वर्ष 2000 यानी
अपने रिटायरमेंट तक अपनी सेवा दिया ! और अब तो दिल्ली का मुझसे और मेरा दिल्ली से
कुछ ऐसा रिस्ता बन गया है की मै दिल्ली का ही होकर रह गया अभी वर्तमान में मै ए- 88\3, एस.एफ.एस. फ्लैट, साकेत,
नई दिल्ली-110017-में रह रहा हूँ ! अपने
कार्यकाल के दौरान ही मैंने कई ख्यातिलब्ध रचनाये भी की और इसके लिए मुझे कई
सम्मान भी मिले! चर्चित कविता संकलन ‘तीसरा सप्तक’ के सहयोगी कवियों में से मै भी एक हूँ ! मैंने
हिंदी भाषा की दो विधा पर कार्य किया यह विधाएँ है ="
"कविता विधा , आलोचना विधा ! "
मेरे
मुख्य कार्य और मेरी मुख्य कृतियाँ है
.
कविता
संग्रह :=
"अभी बिल्कुल अभी, जमीन पक रही है, यहाँ से देखो, बाघ, अकाल में
सारस, उत्तर कबीर , तालस्ताय और साइकिल
! "
आलोचना
=
" कल्पना और छायावाद, आधुनिक हिंदी कविता में
बिंबविधान, मेरे समय के शब्द, मेरे
साक्षात्कार ! "
मैंने
कुछ एक संपादन भी किया है जैसे =
"ताना-बाना (आधुनिक भारतीय कविता से एक चयन), समकालीन
रूसी कविताएँ, कविता दशक, साखी (अनियतकालिक
पत्रिका), शब्द (अनियतकालिक पत्रिका) ! "
अबतक
मुझे जो सम्मान मिले है वह इस प्रकार है =
"मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, कुमारन आशान पुरस्कार,
जीवन भारती सम्मान, दिनकर पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, व्यास सम्मान, और हाल में 20 जून 2014
को मुझे ज्ञानपीठ पुरस्कार देने की घोषणा की गई
है ! "
..................
प्रश्न
4
:= एक साहित्यकार के लिए वर्तमान में विश्व की मौजूदा बड़ी समस्या
क्या है ...?? ईराक में इस समय जो कुछ घट रहा है उससे विश्व
और भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा सकारात्मक - नकारात्मक दोनों पहलुओं पर संछेप में
किन्तू सटिक विचार और सुझाव दीजिये .................????
उत्तर
= प्रोफेसर केदारनाथ सिंह ..................
"पूरे विश्व में मानवता आज खतरे में है इससे इंकार नहीं किया जा सकता !
ईराक में जो कुछ भी घट रहा है वह चिंता का विषय है , साथ ही दुर्भाग्यपूर्ण है पूरी दुनिया के लिए ! किन्तू जो कुछ भी ईराक के विषय
में हमे इस समय दिखाया जा रहा है , समझाया जा रहा है वह सतही
सच है बाहरी श्रोतों से आ रही खबरे है अंदर का सच हमे नहीं दिखाया जा रहा है,
जबतक अंदर का सच सामने नहीं आएगा भ्रम की स्थिति बनी रहेगी ईराक को
लेकर पूरी दुनिया में ! ईराक कभी दुनिया की सबसे समृद्ध और उन्नत सभ्यता का देश
रहा है , विश्व की सबसे सभ्य-समृद्ध सभ्यता ईराक में ही फली
- फूली थी ! साहित्यकार की दृष्टि से देख रहा हूँ तो मन द्रवित हो जा रहा है
ईराक में घटने वाली घटनाओ को लेकर , आज भारत को अपनी
उदारनीति का परिचय देना होगा ईराक के प्रति और संकट की इस घडी में उसे सहयोग करना
होगा ! भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को आगे आना चाहिए आज ईराक की रक्षा के लिए ! भारत और विश्व से एक गुजारिश है ईराक के अंदर के सच को समझे और न्यायपूर्ण
नीति अपनाये ! "
प्रश्न
5
= नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी वर्तमान भारत सरकार के
बारे में अपना विचार दे वर्तमान भारत सरकार विकसनीति पर कुछ कहे ...................?????
उत्तर
= प्रोफेसर केदारनाथ सिंह ..................
" वर्तमान भारत सरकार के विकास मार्ग को दूरदर्शी सोच मानना होगा देश में
समस्याएं जड़ जमा चुकी है उनसे निजात पाने के लिए अगर जनता ने आपको चुना है आप पर
विस्वास किया है तो आप को भी जनता के विस्वास पर खरा उतारना होगा वार्ना देश विनाश
की तरफ बढ़ जायेगा ! साथ ही जनता साहित्यकार और प्रबुद्ध जान को भी अपने हक़ के
प्रति सजग होना होगा मुखर होना होगा जहा गलत लगे विरोध का स्वर उठाना होगा !
विकास का मार्ग धीमी गति से हो तो सफलता मिलती है, किन्तु
इतनी भी धीमी गति न हो की विकास की तस्वीर धुँधली ही रह जाए ! यह भी याद रखना होगा
द्रुत गति से विकास होने के चक्कर में गति इतनी द्रुत न हो जाए की देश विनास के
रास्ते पर चल पड़े ! मोदी सरकार के सामने चुनौती ज्यादे है और जनता की अपेक्षाएं भी
बहुत है उनसे , अतः मोदी सरकार को दोनों के लिए दूरदर्शिता
और पारदर्शिता का परिचय देना होगा ! नई मोदी सरकार की नीतियों पर टिप्पणी
करने के बजाय थोड़ा धैर्य रखना होगा हमे साथ ही जो गलत लगे उसपर अपनी
अभिब्यक्ति भी देनी होगी !"
..................
प्रश्न
6
= साहित्य और समाज का वर्तमान में कैसा तालमेल है ...?
वर्तमान में साहित्यकार अपनी भूमिका अपने दाइत्व के प्रति कितना सजग
है कितना न्याय कर पा रहा है वह साहित्य और समाज के साथ ..................??????
उत्तर
= प्रोफेसर केदारनाथ सिंह ..................
" साहित्य और समाज का अटूट रिस्ता है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता !
हां वर्तमान में साहित्यकार के सामने चुनौतियां ज्यादे है उसे अपने दाइत्वा के
प्रति सतर्क होना होगा तभी समाज के साथ और साहित्य के साथ न्याय कर पायेगा वह !
समाज के बिना साहित्य की कल्पना नहीं हो सकती और समाज है तो साहित्य की भूमिका से
भी इंकार नहीं किया जा सकता ! प्रायः कहा जा रहा है साहित्यकार ख्याति पाने के लिए
साहित्य रच रहा है वर्तमान में , किन्तू यह काल्पनिक सत्य
जैसा है वर्तमान में भी अच्छी रचनाये हो रही है ,! "
..................
प्रश्न
7 = बलिया की माटी ने प्रोफेसर केदारनाथ
सिंह को जन्म दिया ... प्रोफेसर केदारनाथ सिंह ने क्या दिया बलिया की माटी को ...??
बलिया की माटी को कैसे धन्यबाद ज्ञापित करेंगे ज्ञानपीठ
सम्मान पाने के बाद .......................???????
उत्तर
= प्रोफेसर केदारनाथ सिंह ..............
"जिस माटी में जन्म लिया है मैंने उस माटी को धन्यबाद ज्ञापित करना धृष्टता
होगी मेरी , अपमान होगा उस माटी का क्योंकि माँ और माटी के
लिए तो सिर्फ सम्मान कमाया जाता है , नाम कमाया जाता है ,
और मुझे खुद पर फक्र है की मैंने अपनी माटी के लिए दोनों कमाया है !
दुनिया में अपनी माटी का मान बढ़ाया है अपनी क्षमता के अनुसार !! "
द्वारा
-
प्रदीप
दुबे