अशिक्षा के
खड़ाऊ पर कब
तक चलता रहेगा
दुनिया का सबसे
बड़ा लोकतंत्र !१!
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देश का
एक समर्पित युवा
नागरिग होने के
नाते मेरे मन
में बहुत दिनों
से भारतीय राजनीती को
लेकर , मंत्रीशाही को
लेकर कई शवाल कौंध
रहे है , आज
जब देश में आम
चुनाव का माहौल
है
ऐसे में मै
अपने इन सवालो
को जनता के
सामने रखना चाहता
हूँ जैसे -
- क्या भारतीय संविधान में नेता
के लिए कोई
मानक नहीं है
,
- क्या भारतीय राजनीती में
सक्रिय होने के
लिए नेता का
शिक्षित होना जरुरी नहीं
,
- क्या नेता के
लिए उम्र की
कोई बाध्यता नहीं
है ,
- क्या नेता अपने
आप में तानाशाह होता
है ,
- क्या भारत जैसे
देश में जो
पूर्णतः लोकतंत्रतामक देश है दुनिया
का सबसे बड़ा
लोकतंत्र है ,
उसका मुखिया
उसका मार्गदर्शक अशिक्षित होना
चाहिए ,
- शिक्षा के मूल्यों का
बहिस्कार करने वाला ब्यक्ति हमारा
मुखिया क्यों , कैसे
,
उसके लिए
कोई मानक क्यों
नहीं
...............................................................!१!
आचार्य चाणक्य
ने किसी राष्ट्र के
सर्वांगिण विकासः में शिक्षा
के योगदान को
अति मत्वपूर्ण माना
है , !
आचार्य चाणक्य
का लोक - प्राशासन कहता
है की जिस राष्ट्र का
मुखिया (राजा) अस्त्र
( डिफेंस ) शाश्त्र ( शिक्षा
) में पारंगत नहीं
होगा उस राष्ट्र का
पतन निश्चित है
, क्योकि शिक्षा ब्यक्ति को
दूरद्रष्टा बनती है , और
राष्ट्र के सर्वांगिण विकासः
का मार्ग तय
करती है !
एक लोकतन्त्रातमक राष्ट्र के
लिए जो ब्यवस्था बनाई
जाती है वह
मूलतः दो प्रकार
के मूल्यों पर
आधारित होती है प्रथम
मंत्रीसाही , द्वितीय नौकरशाही ,
- प्रथम मूल्य के
अंतर्गत राष्ट्र की जनता द्वारा ऐसे
ब्यक्ति का चुनाव किया
जाता है जो
जनता के हित
के लिए जनता
के विकास और
उन्नति के लिए
नौकर शाही पर
अपना चाबुक रखता
है , !
- द्वितीय नौकरशाही जो मंत्रीसाही की देख
- रेख में हर
क्षेत्र में जनता की सेवा
में प्रतिक्षण तत्पर
रहता है !
- अब जरा गौर
करिये भारत के
सविधान में नौकरशाही के
लिए तो विभिन्न तरह
के प्रावधान है
. मानक है , जैसे
शिक्षा का मानक
, प्राशासन में जाने के
लिए पहली शर्त
जो है वो
यह की ब्यक्ति अनिवार्यरूप से
स्नातक की परीक्षा पास
किया हो ,
उसके बाद
उम्र के मानक
पर खर उतरता
हो .
वह भारत
का नागरिक हो
,
उसके साथ
किसी भी तरह
का कोई विवादित या
क्राइम का मुद्दा न
जुड़ा हो ,
तत्पश्चात नौकरशाही में
जाने से पहले
उस पद के
लिए आयोजित की
गई प्रतिअस्पर्धात्मक
परीक्षा को
पास करे , उसके
बाद दो से तीन
साल की गहन
ट्रेनिंग ले ,
इस तरह
तैयार होता है
एक नौकरशाह ! और 60 , 63 , 65 , इस उम्र
सीमा के बीच
उसका रिटायरमेंट हो
जाता है, !
जबकि मंत्रीसाही ( नेता
) के
लिए कोई मानक
नहीं ! एक ऐसा
ब्यक्ति जो शिर्फ़ भारत का
नागरिक हो और
राजनीती में सक्रिय होने
की उम्र सीमा
के मानक पर
खरा उतरता हो वह
चुनाव लड़ सकता
है उसके लिए
शिक्षा , का कोई
मायने नहीं एक
थम्ब ब्यक्ति भी
चुनाव लड़ कर चुनाव
जीत कर सत्ता
में आकर मंत्रीसाही के
आधार पर , हाईली
क्वालिफाइड , दूरदर्शी , और चिंतनशील नौकरशाही पर
चाबुक कसने का
कार्य कर सकता
है
!१!
पूर्वी एवं
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में
होने
वाले कुछ लोकशभा
चुनाव में तो
यहाँ तक देखने
को मिला है
की अगर पति
सक्रिय राजनीती में
है और सक्रिय
राजनीति के दौरान उसकी
मृत्यु हो जाती
है तो जनता
की सिम्पैथी को
भुनाने के लिए
उसकी थम्ब पत्नी
को टिकट दे
दिया जाता है
और वह जीत
भी जाती है
उसे सत्ता
में विभिन्न पदभार
दे भी दे
दिया जाता है,
यह कितनी बड़ी
बिडम्बना है की एक निरक्षर ब्यक्ति जो
मंत्रीसाही का हिस्सा बनता
है और नौकरशाही पर
चाबुक रखता है
वह ! और नौकरसाही का
मार्गदर्शन करता
है ! हाल ही
में पूर्वी उत्तर
प्रदेश में एक
सड़क दुर्घटना में
एक मंत्री की
मृत्यु हुई जिनका
नाम जमुना निषाद
था पार्टी ने
उनकी मृत्यु के
बाद उनकी निरक्षर पत्नी
को टिकेट दिया
और जनता ने
दया दिखाई वह
जीत गई उनसे
उनकी शिक्षा का
कोई सुबूत नहीं माँगा
गया , ऐसे ही
बहुत सारे नाम
है जो निरक्षर है
अपना नाम तक
नहीं लिख सकते
फिर भी मंत्रीसाही का
हिस्सा बने हुए
है !
इसका मतलब
सिर्फ ये हुआ
की नौकरशाही पर
निरक्षर मंत्रीसाही अपना कब्ज़ा रखने
के आज़ाद है
क्यू की हमारे
संविधान में मंत्रीसाही के
लिए कोई मानक
नहीं है !
भारतीय संबिधान को
जानने और पढने
का जब भी
मुझे मौका मिला
मैंने पाया इसमें
देश के भीतर
बेयाप्त हर प्रकार के
मर्ज की दवा
का प्राविधान किसी
न किसी रूप
में है किन्तु
मंत्रीसाही के लिए किसी
भी प्रकार का
कोई मानक नहीं
है कोई दवा
नहीं है ! एक ब्यक्ति राजनीति में
घुसने के बाद
कभी रिटायर नहीं
होता , वह अशिक्षित है
इससे भी कोई
फर्क नहीं पड़ता
! अशिक्षा के खड़ाऊ पर
66 साल
से देश को
घसीटा जा रहा
है ! चाणक्य का
लोकप्रशासन कहता है अशिक्षित राजा
राष्ट्र के पतन का
कारण बनता है और
राष्ट्र की जनता के
बीच अराजकता का
वातावरण पैदा करता है
, साथ की पडोसी
देशो को आक्रमण
के लिए आमंत्रित करने
का भी कार्य
करता है ! आज
हम इन तीनो
ही तरह की
िस्थितियों को चरितार्थ होते
देख रहे है
देश के भीतर
,! भय
, भ्रस्टाचार , और अराजकता का
वातावरण कायम है देश
में , नौकरशाही का
दमघुट रहा है
मंत्रीसाही के तानासाही के
बीच , जनता कराह
रही है , सीमा
पर खतरे बढ़
रहे है और
मंत्रीसाही इससे बेपरवाह है !
मै आपके
सामने भारत के
संबिधान को एक नज़र
में रखना चाहता
हु कृपया इस
उधार के थैले
पर गौर करिये
इसमें मंत्रीसाही के
लिए कोई मानक
क्यों नहीं है
आप सोचने पर
मज़बूर हो जाएंगे
-
भारत का
संविधान-
आमुख
भाग I: संघ
और उसके क्षेत्र
भाग II: नागरिकता
भाग III: मूलभूत
अधिकार
भाग IV: राज्य के नीति
निर्देशक तत्व
भाग IV क
: मूल कर्तव्य
भाग V: संघ
अध्याय
I.- कार्यपालिका
अध्याय
II.- संसद
अध्याय
III.- राष्ट्रपति के विधायी
अधिकार
अध्याय
IV.- संघ
न्यायपालिका
अध्याय
V.- भारतीय
नियंत्रक एवं महालेखाकार
भाग VI: राज्य
अध्याय
I.- सामान्य
अध्याय
II.- कार्यपालिका
अध्याय
III.- राज्य विधानमंडल
अध्याय
IV.- राज्यपाल के विधायी
अधिकार
अध्याय
V.- राज्यों के उच्च न्यायालय
अध्याय
VI.- अधीनस्थ न्यायालय
भाग VII: प्रथम
अनुसूची के भाग ख
में राज्य
भाग VIII: संघ राज्य क्षेत्र
भाग IX: पंचायत
भाग IXA: नगरपालिकाएं
भाग X: अनुसूचित जनजाति
क्षेत्र
भाग XI: संघ
और राज्यों
के बीच संबंध
अध्याय
I.- विधायी
संबंध
अध्याय
II.- प्रशासनिक संबंध
भाग XII: वित्त,
सम्पत्ति, संविदाएं और
वाद
अध्याय
I.- वित्त
अध्याय
II.- उधार
अध्याय
III.- संपत्ति, संविदाएं, अधिकार,
देयताएं, बाध्यताएं और
वाद
अध्याय
IV.- संपत्ति का
अधिकार
भाग XIII: भारत के
राज्य क्षेत्र के
अंदर व्यापार,
वाणिज्य और
समागम
भाग XIV: संघ
और राज्यों
के अधीन सेवाएं
अध्याय
I.- सेवाएं
अध्याय
II.- लोक
सेवा आयोग
भाग XIVक:
अधिकरण
भाग XV: निर्वाचन
भाग XVI: कुछ
वर्गों के संबंध
में विशेष उपबंध
भाग XVII: राजभाषा
अध्याय
I.- संघ
की भाषा
अध्याय
II.- क्षेत्रीय भाषाएं
अध्याय
III.- उच्चतम न्यायालय,
उच्च न्यायालयों आदि की भाषा
अध्याय
IV.-विशेष
निर्देश
भाग XVIII: आपात उपबंध
भाग XIX: प्रकीर्ण
भाग XX: संविधान के
संशोधन
भाग XXI: अस्थायी, संक्रमणकालीन और
विशेष उपबंध
भाग XXII: संक्षिप्त
नाम, प्रारंभ, हिन्दी में प्राधिकृत पाठ
और निरसन
अनुसूचियां
पहली अनुसूची
दूसरी अनुसूची
तीसरी अनुसूची
चौथी अनुसूची
पांचवीं अनुसूची
छठी अनुसूची
सातवीं अनुसूची
आठवीं अनुसूची
नौवीं अनुसूची
दसवीं अनुसूची
ग्यारहवीं अनुसूची
बारहवीं अनुसूची
परिशिष्ट
परिशिष्ट
1
परिशिष्ट
2
परिशिष्ट
3
परिशिष्ट
4
परिशिष्ट
5
अब बिडम्बना देखिये
हमारे सविधान में
निर्वाचन आयोग की बयवस्था है
, निर्वाचन आयोग के लिए
भी बिभिन्न प्रकार
के मानक तय
किये गए है
जैसे -
भाग 15: निर्वाचन
324. निर्वाचनों के अधीक्षण, निदेशन
और नियंत्रण का
निर्वाचन आयोग में निहित
होना---(1) इस संविधान के
अधीन संसद और
प्रत्येक राज्य के विधान-मंडल के लिए
कराए जाने वाले
सभी निर्वाचनों के
लिए तथा राष्ट्रपति और
उपराष्ट्रपति के पदों के
लिए निर्वाचनों के
लिए निर्वाचक-नामावली तैयार
कराने का और
उन सभी निर्वाचनों के
संचालन का अधीक्षण, निदेशन
और नियंत्रण, 1*** एक आयोग
में निहित होगा
(जिसे इस संविधान में
निर्वाचन आयोग कहा गया
है)।
(2) निर्वाचन आयोग मुख्य
निर्वाचन आयुक्त और उतने
अन्य निर्वाचन आयुक्तों से,
यदि कोई हों,
जितने राष्ट्रपति समय-समय पर नियत
करे, मिलकर बनेगा
तथा मुख्य
निर्वाचन आयुक्त और अन्य
निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति, संसद
द्वारा इस निमित्त बनाई
गई विधि के
उपबंधों के अधीन रहते
हुए, राष्ट्रपति द्वारा
की जाएगी।
(3) जब कोई अन्य
निर्वाचन आयुक्त इस प्रकार
नियुक्त किया जाता है
तब मुख्य
निर्वाचन आयुक्त निर्वाचन आयोग
के अध्यक्ष के
रूप में कार्य
करेगा।
(4) लोक सभा के
और प्रत्येक राज्य
की विधान सभा
के प्रत्येक साधारण
निर्वाचन से पहले तथा
विधान परिषद वाले
प्रत्येक राज्य की विधान
परिषद के लिए
प्रथम साधारण निर्वाचन से
पहले और उसके
पश्चात् प्रत्येक द्विवार्षिक निर्वाचन से पहले, राष्ट्रपति निर्वाचन आयोग
से परामर्श करने
के पश्चात्, खंड
(1) द्वारा
निर्वाचन आयोग को सौंपे
गए कृत्यों के
पालन में आयोग
की सहायता के
लिए उतने प्रादेशिक आयुक्तों की
भी नियुक्ति कर
सकेगा जितने वह
आवश्यक समझे।
(5) संसद द्वारा बनाई
गई किसी विधि
के उपबंधों के
अधीन रहते हुए,
निर्वाचन आयुक्तों और प्रादेशिक आयुक्तों की
सेवा की शर्तें
और पदावधि ऐसी
होंगी जो राष्ट्रपति नियम
द्वारा अवधारित करे:
परन्तु मुख्य निर्वाचन आयुक्त
को उसके पद
से उसी रीति
से और उन्हीं
आधारों पर ही
हटाया जाएगा, जिस
रीति से और
जिन आधारों पर
उच्चतम न्यायालय के
न्यायाधीश को हटाया जाता
है अन्यथा नहीं
और मुख्य
निर्वाचन आयुक्त की सेवा
की शर्तों में
उसकी नियुक्ति के
पश्चात् उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं
किया जाएगा :
परन्तु यह
और कि किसी
अन्य निर्वाचन आयुक्त
या प्रादेशिक आयुक्त
को मुख्य
निर्वाचन आयुक्त की सिफारिश पर
ही पद से
हटाया जाएगा, अन्यथा
नहीं।
(6) जब निर्वाचन आयोग
ऐसा अनुरोध करे
तब, राष्ट्रपति या
किसी राज्य का
राज्यपाल 2***
निर्वाचन आयोग
या प्रादेशिक आयुक्त
को उतने कर्मचारिवृन्द उपलब्ध
कराएगा जितने खंड
(1) द्वारा
निर्वाचन आयोग को सौंपे
गए कृत्यों के
निर्वहन के लिए आवश्यक
हों।
325. धर्म, मूलवंश, जाति
या लिंग के
आधार पर किसी
व्यक्ति का निर्वाचक-नामावली में
सम्मिलित किए जाने के
लिए अपात्र न
होना और उसके
द्वारा किसी विशेष
निर्वाचक-नामावली में सम्मिलित किए
जाने का दावा
न किया जाना---संसद के प्रत्येक सदन
या किसी राज्य
के विधान-मंडल
के सदन या
प्रत्येक सदन के लिए
निर्वाचन के लिए प्रत्येक प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्र के
लिए एक साधारण
निर्वाचक-नामावली होगी और केवल
धर्म, मूलवंश, जाति,
लिंग या इनमें
से किसी के
आधार पर कोई
व्यक्ति ऐसी किसी नामावली में
सम्मिलित किए जाने के
लिए अपात्र नहीं
होगा या ऐसे
किसी निर्वाचन-क्षेत्र के
लिए किसी विशेष
निर्वाचक-नामावली में सम्मिलित किए
जाने का दावा
नहीं करेगा।
326. लोक सभा और
राज्यों की विधान सभाओं
के लिए निर्वाचनों का
वयस्क मताधिकार के
आधार पर होना---लोक सभा और
प्रत्येक राज्य की विधान
सभा के लिए
निर्वाचन वयस्क मताधिकार के
आधार पर होंगे
अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति, जो भारत का
नागरिक है और
ऐसी तारीख को,
जो समुचित विधान-मंडल द्वारा बनाई
गई किसी विधि
द्वारा या उसके
अधीन इस निमित्त नियत
की जाए, कम
से कम
3[अठारह वर्ष] की
आयु का है
और इस संविधान या
समुचित विधान-मंडल
द्वारा बनाई गई
किसी विधि के
अधीन अनिवास, चित्तविकृति, अपराध
या भ्रष्ट या
अवैध आचरण के
आधार पर अन्यथा
निरर्हित नहीं कर दिया
जाता है, ऐसे
किसी निर्वाचन में
मतदाता के रूप
में रजिस्ट्रीकृत होने
का हकदार होगा।
1 संविधान (उन्नीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1966 की धारा
2 द्वारा ''जिसके अंतर्गत संसद
के और राज्य
के विधान-मंडलों
के निर्वाचनों से
उद्भूत या
संसक्त संदेहों और
विवाद के निर्णय
के लिए निर्वाचन न्यायाधिकरण की
नियुक्ति भी है'' शब्दों
का लोप किया
गया।
2 संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा
29 और
अनुसूची द्वारा ''या राजप्रमुख'' शब्दों
का लोप किया
गया।
3 संविधान (इकसठवाँ संशोधन) अधिनियम, 1988 की धारा
2 द्वारा ''इक्कीस वर्ष
'' के
स्थान पर प्रतिस्थापित।
327. विधान-मंडल के
लिए निर्वाचनों के
संबंध में उपबंध
करने की संसद
की शक्ति---इस
संविधान के उपबंधों के
अधीन रहते हुए,
संसद समय-समय
पर, विधि द्वारा,
संसद के प्रत्येक सदन
या किसी राज्य
के विधान-मंडल
के सदन या
प्रत्येक सदन के लिए
निर्वाचनों से संबंधित या
संसक्त सभी विषयों
के संबंध में,
जिनके अंतर्गत निर्वाचक-नामावली तैयार
कराना, निर्वाचन-क्षेत्रों का
परिसीमन और ऐसे सदन
या सदनों का
सम्यक् गठन सुनिश्चित करने
के लिए अन्य
सभी आवश्यक विषय
हैं, उपबंध कर
सकेगी।
328. किसी राज्य के
विधान-मंडल के
लिए निर्वाचनों के
संबंध में उपबंध
करने की उस
विधान-मंडल की
शक्ति---इस संविधान के
उपबंधों के अधीन रहते
हुए और जहाँ
तक संसद इस
निमित्त उपबंध नहीं करती
है वहाँ तक,
किसी राज्य का
विधान-मंडल समय-समय पर, विधि
द्वारा, उस राज्य
के विधान-मंडल
के सदन या
प्रत्येक सदन के लिए
निर्वाचनों से संबंधित या
संसक्त सभी विषयों
के संबंध में,
जिनके अंतर्गत निर्वाचक-नामावली तैयार
कराना और ऐसे
सदन या सदनों
का सम्यक् गठन
सुनिश्चित करने के लिए
अन्य सभी आवश्यक
विषय हैं, उपबंध
कर सकेगा।
329. निर्वाचन संबंधी मामलों में
न्यायालयों के हस्तक्षेप का
वर्जन---1[इस संविधान में
किसी बात के
होते हुए भी
--]
(क) अनुच्छेद 327 या
अनुच्छेद 328 के अधीन बनाई
गई या बनाई
जाने के लिए
तात्पर्यित किसी ऐसी विधि
की विधिमान्यता, जो
निर्वाचन-क्षेत्रों के परिसीमन या
ऐसे निर्वाचन-क्षेत्रों को
स्थानों के आबंटन से
संबंधित है, किसी न्यायालय में
प्रश्नगत नहीं की जाएगी;
(ख) संसद के
प्रत्येक सदन या किसी
राज्य के विधान-मंडल के सदन
या प्रत्येक सदन
के लिए कोई
निर्वाचन ऐसी निर्वाचन अर्जी
पर ही प्रश्नगत किया
जाएगा, जो ऐसे
प्राधिकारी को और ऐसी
रीति से प्रस्तुत की
गई है जिसका
समुचित विधान-मंडल
द्वारा बनाई गई
विधि द्वारा या
उसके अधीन उपबंध
किया जाए, अन्यथा
नहीं।
329क. [प्रधान मंत्री
और अध्यक्ष के
मामले में संसद
के लिए निर्वाचनों के
बारे में विशेष
उपबंध]
किन्तु मंत्रीसाही के
लिए कोई मानक
क्यू नहीं है
हमारे संविधान में
कोई प्राविधान क्यू
नहीं है , मित्रो
क्या आपको नहीं
लगता संविधान निर्माण के
समय ही हमारे संविधान निर्माताओ से
एक बहुत बड़ी
चूक हुई, जिस
चूक पर उंगली
उठाने का साहस
अबतक लोकतंत्र प्रणाली में
जीने वाली विश्वाश करने
वाली भारत की
आमजनता ने नहीं
किया !
मित्रो क्या
आपको नहीं लगता
हमारे संविधान निर्माताओ को
मंत्रीसाही के लिए भी
कुछ प्राविधान करने
चाहिए थे !
क्या यह
सच नहीं प्रतीत
होता उधार के
इस थैले में
कुछ भारतीय मुल्ल्यो पर
आधारित नियम क़ानून
बनाने चाहिए थे
मंत्रीसाही के लिए , !
मंत्रीसाही के
लिए एक मजबूत
और स्पस्ट मानक
ना होना हमारे
देश का दुर्भाग्य है
!
भारतीय तरशन
में थोड़ा सा
झाकना चाहिए था
हमारे क़ानून निर्माताओ को
क्यू की -
भारतीय दर्शन और मुल्लों में एक
कल्याणकारी राष्ट्र के लिए मंत्रीसाही को
शाश्त्र और शत्र में
पारंगत होने की
बात कही गई
है ! अशिक्षित मंत्रीसाही को
विनाश का द्योतक
बताया गया है
!
शाश्त्र और शत्र में
पारंगत राजा ( मंत्रीसाही ) ही सबके
सुखी होने और
सबके मंगल के
बारे में सोच
सकता है ! अपनी
शैक्षणिक और दूरदर्शी योग्यता के
आधार पर वह
ही यह कह
सकता है -
ॐ सर्वे
भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु
निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् ।
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