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Friday, June 20, 2014

कौन करेगा 80 प्रतिशत की चिंता

  कौन करेगा 80 प्रतिशत की चिंता

  


प्रदीप दुबे
स्वतंत्रता के बाद इन 66 सालों में देश के भीतर बहुत सारे परिवर्तन हुए बहुत सारी क्रांति आई बहुत सारे नियम कानून बने और उनपर अमल भी हुआ कहना न होगा की लम्बी गुलामी के बाद जब हमारा राष्ट्र आज़ाद हुआ तो उसके लिए दुनिया में अपनी पहचान अपना वजूद कायम करने का मुद्दा ही अहम मुद्दा था ! और इस मुद्दे के तार भारत के भाग्यविधाता भारत की आत्मा यानी किसानो से जोड़े गए थे !
विनोबाभावे ने अपने भूमि आंदोलन के तहत भारत के विकास का जब सपना देखा तो किसानो के प्रति उदार होने की बात सामने आई क्यों की इन 80 प्रतिसत भारतीयों के प्रति उदार हुए बिना भारत के विकास और भारत के उद्धार का सपना सम्भव नहीं था !
किन्तु यहाँ इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता की स्वतंत्रता के बाद से जिस तबके का सबसे ज्यादा शोषण किया गया , जिसके श्रम का सबसे ज्यादा दुरूपयोग किया गया भारत में, वह तबका भारत के भाग्यविधाता यानी किसानो का ही रहा है !
यह देश का दुर्भाग्य ही रहा की देश के लिए जिस कौम ने रोटी पैदा करने का बीड़ा उठाया उसी कौम को अनदेखा किया गया , दुनिया में जिसके द्वारा भारत की अपनी पहचान बनी उसी अन्नदाता की पहचान को खारिज किया गया ! 1918, 1940, 1942, 1960, 1970 और 1980 तक देश में बहुत सारे आंदोलन हुए किसानो की बेहतरी को लेकर, लोहिया और जयप्रकाश नारायण ने भी खूब आंदोलन किये किसानो के हक़ के लिए ! किन्तु जयप्रकाश नारायण के बाद तो जैसे देश के रहनुमाओ ने कसम खा लिया की किसानो के साथ सिर्फ और सिर्फ अन्याय करना है ! और सिर्फ वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करना है इस 80 प्रतिसत को !
पिछले कई सालों से भारत में किसानो के बीच आत्महत्या की घटना भी तूल पकड़ रही है !
यदि हम ज्यादा पुरानी बात न करें और सिर्फ 2011 -2012 का ग्राफ उठाकर आत्महत्या की घटनाओं पर नजर डालें तो राष्ट्रीय क्राईम रिकॉर्ड के अनुसार इस वर्ष पूरे देश में 14027 किसानों द्वारा आत्महत्या की गई थी ! दुखद बात तो ये रही की तत्त्काल में हो हल्ला बहुत हुआ किन्तु इसपर कोई स्थाई रणनीति नहीं तैयार की गई सिर्फ मुवावजे का प्रलोभन देकर 80 प्रतिसत का मुह बंद करवाया गया ! मध्यप्रदेश , उत्तर प्रदेश , महाराष्ट्र , छत्तीसगढ़ , झारखण्ड , हरियाणा के किसान गहरे संकट में है ! यह संकट है उनकी छोटी होती कृषि भूमि, मंहगी होती खेती और बार-बार नष्ट होती फसलों का, जिस खेती के लिए न कोई इन्स्योरेंस ब्यवस्था है न ही सुविधापूर्ण लोन की ही ब्यवस्था ! 20 प्रतिसत द्वारा एक कार खरीदी जाती है तो उसका भी इन्स्योरेंस होता है , उसकी सुरक्षा की दृष्टि को ध्यान में रखकर, किन्तु एक किसान की फसल का कोई इन्स्योरेंस नहीं होता आपदा आई तो फसल नष्ट और किसान कर्ज के बोझ तले दब कर आत्महत्त्या कर लेता है यानी की 20 प्रतिसत की कार ज्यादे महत्वपूर्ण होती है 80 प्रतिसत अन्नदाता की खेती और फसल से !
इस बार के आम चुनाव में भी कही किसी ने जिक्र तक नहीं किया किसानो की इस दर्दनाक आत्महत्या पर और न ही इस दर्दनाक आत्महत्या के लिए किसी के एजेंडे में कोई नीति परिलक्षित हुई ! 80 प्रतिसत के बनाने से बना देश का भविष्य , देश के रहनुमा क्यू चिंतित नहीं है इस घटना के प्रति यह गंभीर विषय है जिसपर मंथन होना चाहिए !
1918 में महात्मा गांधी ने किसानो को भारत की आत्मा कहा और कहा की जबतक भारत की आत्मा जागृत ,सशक्त,और स्वावलम्बी नहीं होगी भारत दुनिया के सबसे पिछड़े देशो की श्रेणी में खड़ा रहेगा और गुलामी की दासता से मुक्ति पाने का मार्ग भी अवरुद्ध रहेगा ! किसानो को जगाना होगा, उनके हक़ से उन्हें परिचित कराना होगा और उनके हक़ के लिए चिंता करनी होगी , सोचना होगा की उन्हें सशक्त और आत्मनिर्भर कैसे बनाया जाए !
1918 में चंपारण के किसानो की तबाही को रोकने के लिए महात्मा गांधी ने नील आंदोलन किया साथ ही खेड़ा के किसान आंदोलन में सक्रिय हुए और किसानो का साथ दिया ! कहना ना होगा महात्मा गांधी का यह पहला आंदोलन था भारत में ! अफ्रीका से भारत आने के बाद पहली बार महात्मा गांधी चर्चा में आये बिहार स्थित चंपारण के नील आंदोलन से यानी किसानो के हक़ की बात करने के बाद ही गांधी चर्चित हुए ! कहना ना होगा सच्चे अर्थो में गांधी को राष्ट्र स्तर पर पहचान मिली 1918 के खेड़ा और चंपारण के किसान आंदोलन से ! आज उन्ही किसानो को अनदेखा कर के देश की तरक्की की बात की जा रही है सायद यह भूल गए है देश के रहनुमा की इन 80 प्रतिसत के विकास की बात किये विना भारत कभी तरक्की नहीं कर सकता क्यू की जिस उद्दोगधंधे को विकशित कर के देश के विकसित होने की बात की जा रही है उन उद्दोगधंधो की जड़े इन 80 प्रतिसत से ही जुडी है ! अगर इस 80 प्रतिसत की मूलभूत जरुरतो पर ध्यान नहीं दिया गया तो चाहे किसी भी टेक्निक का इस्तेमाल कर लिया जाए, चाहे कोई भी फार्मूला अपना लिया जाए देश की तरक्की होने वाली नहीं !
अबतक देश में जितने भी आम चुनाव हुए और जो भी सरकार बनी उसमे इस 80 प्रतिसत की महती भूमिका रही इस 80 प्रतिसत के योगदान के विना सरकार का गठन सम्भव नहीं हो सकता ! जब भी सरकार बनी उसने अपने एजेण्डे में बहुत सारी योजनाओ को जगह दिया इन 80 प्रतिसत के लिए किन्तु कोरी कागज़ी करवाई तक उससे ज्यादे कुछ भी नहीं हुआ इनके लिए !
इनकी मूलभूत जरुरतो की बात तो होती है किन्तु उनपर अमल नहीं होता और अमल होता है तो कागज़ के पन्नो पर !
शिक्षा , बिजली, पानी , सड़क , स्वास्थ्य, इन 5 मूलभूत सुविधाओ से वंचित है भारत का किसान ! आप जरा कल्पना करिये जिस देश की 80 प्रतिसत जनता इन मूलभूत सुविधाओ से वंचित है स्वतंत्रता के 66 साल बाद भी वह देश तरक्की की बात करता है, उद्दोगधंधे को बढ़ावा देने की बात करता है ! समझ में नहीं आता यह तरक्क़ी कैसे सम्भव है क्यू की चिप्स-पापड़ का उद्दोग तभी फलीभूत होगा जब एक किसान के खेत में आलू की अच्छी पैदावार होगी और किसान के खेत में आलू की अच्छी पैदावार तभी होगी जब किसान शिक्षित होगा, सही समय पर उसे बीज , खाद , पानी, कीटनासक मिलेगा अपनी फसल के लिए, और यह बीज, खाद, पानी , कीटनासक तभी सही समय पर उसे मिलेगा जब इसके लिए उसके गांव में ही इसे उपलब्ध कराने की ब्यवस्था की जाए और गांव में इसे तभी उपलब्ध कराया जा सकता है जब गांव की सड़के अच्छी हो वह नगर से सीधे जुडी हो !
वस्त्र उद्दोग तभी तरक्की करेगा जब कपास की खेती ठीक से होगी ! दुग्ध उद्दोग तभी फलीभूत होगा जब सही नस्ल की गाय भैष किसानों को मिले ! और यह सब तभी सम्भव है जब उनके गांव में इन सभी मूलभूत सुविधाओ की ब्यवस्था की जाए !
हम दुनिया में पूरी ताकत के साथ खड़े होंगे भारत उद्दोग धंधे को बढ़ावा देगा ,अधिक से अधिक रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराये जाएंगे उद्योग धंधे को बढ़ावा देकर जाने क्या क्या बाते रोज हो रही है देश में ! मै इस देश के मुखिया , इस देश के रहनुमाओं से बस इतना पूछना चाहता हूँ की जब इन 80 प्रतिसत के बिना आपका स्तित्वा सम्भव नहीं है , देश का स्तित्वा सम्भव नहीं है तो फिर इन 80 प्रतिसत की सुविधाओं के प्रति आप इस तरह उदासीन कैसे रह सकते है ! इनके स्तित्वा को नकार कैसे सकते है !
स्वतंत्रता से पहले गांव में प्रारंभिक शिक्षा अर्जित करने के लिए प्राइमरी स्कूल , जूनियर हाई स्कूल की ब्यवस्था की गई थी आज भी वही है ! वह स्वतंत्रता से पहले जिस हालत में थी आज भी उसी हालत में है ना अंग्रेजी , ना कंप्यूटर की शिक्षा दी जाती है इन प्राइमरी स्कूलों में ! और एक किसान का बेटा-बेटी जब आगे की शिक्षा के लिए यूनिवर्सिटी कॉलेज ज्वाइन करना चाहते है तो उन्हें दाखिला नहीं मिलता क्यू की उनकी जड़ कमज़ोर होती है उनका कॉम्पटिशन कान्वेंट के पढ़े लिखे लोगो के साथ होता है ! जरा सोचिये इस प्राइमरी स्कूल के लिए कितना पैसा बहाया जाता है अध्यापको पर ! अगर अध्यापको की स्थिति में सुधार किया गया चौगुनी रफ़्तार से स्वतंत्रता के बाद तो फिर प्रायमरी स्कूल की शिक्षा में सुधार क्यू नहीं किया गया ! क्या 20 प्रतिसत शहरी लोगो भर के अच्छी शिक्षा ग्रहण कर लेने मात्र से ही देश तरक्की कर लेगा ! क्यू नहीं है प्रायमरी स्कूलों में टेबल स्टूल की ब्यवस्था क्षात्रों के बैठने के लिए , वो आज भी ज़मीन पर क्यू बैठते है ! कहा जाता है प्रायमरी स्कूलों के लिए आया धन ! किसानो के बच्चो की शिक्षा के प्रति सौतेला ब्यवहार क्यू !
हमारे गांवो में आज भी स्वास्थ्य ब्यवस्था शून्य है , और गांवो की दूरी शहर से 60-60 किलोमीटर पर है ! स्वास्थ्य केंद्र तो बने है पर उसमे ना डॉक्टर, ना नर्स , ना समुचित दवा की ब्यवस्था ,ना ही एम्बुलेंस की सुबिधा मै पूछता हूँ देश के रहनुमाओं से क्या 20 प्रतिसत शहरी लोग ही वीमार पड़ते है क्या उन्हें ही रोग होता है ! क्या 80 प्रतिसत को कोई वीमारी नहीं होती है !१ और अगर होती है तो उनके लिए स्वास्थ सुविधा की ब्यवस्था भगवान भरोसे क्यू , 66 शाल तक आप उदासीन क्यों बने रहे उनके प्रति ! और आज भी अपनी भूल को सुधरने का प्रयास क्यू नहीं कर रहे है !आपको क्यू नहीं दिखाई देता उनका अभाव उनका दर्द क्यू स्वाथ्य सुविधा के अभाव में मरने को मज़बूर है 80 प्रतिसत भारत की आत्मा ! भारत के अन्नदाता , भारत के किसान !
देश की तरक्की में जो गांव 80 प्रतिसत योगदान देते है उन गावों में आज भी बिजली की उचित ब्यवस्था नहीं है, बिजली की रौशनी नहीं के बराबर है ! बिजली के नाम पर पोल दिख जाते कहीं, तो कहीं वह भी नहीं दिखते ! कहीं बिजली के पोल और पोल पर तार दिख जाते है तो लाइट नहीं होती उनमे ! कहीं कहानी इसके उलट है रात बारह बजे के बाद लाइट आती है और 5 बजे सुबह चली जाती है ! 20 प्रतिसत लोगो की बिजली अगर २ घंटे लगातार कटने लगे तो पुरे देश में हंगामा खड़ा हो जाता है चिंताए जताई जाती है और बहाली के इंतज़ाम किये जाते है मै पूछता हूँ क्या 20 प्रतिसत को ही हक़ है उजाले में रहने का और बिद्युत उपकरणों के प्रयोग करने का क्या 80 प्रतिसत लोग जंगली जानवर की श्रेणी में आते है जो उन्हें उजाले और विद्युत उपकरण की जरुरत नहीं !
सड़क की भी हालत वही है ! रोज टेंडर पास होता है रोज नई नई योजनाये फलीभूत होती है पर ज़मीनी सच ये है कि गावों में आज भी सड़क ब्यवस्था दुरुस्त नहीं है !
हाल ही में मुझे पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलो में जाने का मौका मिला मैंने वहां पर सड़क कि हालत देखीं और मेरा मंन खिन्न हो गया ! ऐसे गाँव मिले मुझे जहा 7 बजे साम के बाद जाना मुस्किल हो आज की 20 प्रतिसत सुविधाभोगी शहरी जनता को सायद ही पता हो कि चकरोड जैसी सड़क ब्यवस्था गाँवों के लिए स्वतंत्रता के 66 शाल बाद भी है जहां जून से लेकर सितम्बर-अक्टूबर तक आना जाना बेहद कठिन है ! कही खडंज़े वाली सड़क तो कही बड़े- बड़े गड्ढे वाली सड़क जहां हमारी लक्ज़री गाडी भी जाने से इंनकार कर दी और हम लोगो को 4 – 4 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा ! उन कीचड़ भरे रास्तो पर एक दिन चलने में मुझे खासा परेशानी हो रही थी तो सोचिये जिनकी जिंदगी, जिनकी दिनचर्या की शुरुआत इन्ही राहो से रोज़ होती है उनका जीवन कितना कठिनाई भरा होगा,! उनकी समझ में सुविधा का मतलब क्या होता होगा !
अपनी इसी यात्रा के दौरान मैंने चौरीचौरा के मीठाबेल बरहमपुर ब्लॉक का दौरा किया जिसे अमर शहीद बंधू सिंह से जोड़ कर देखा और जाना जाता है जिन्होंने अंग्रेजो से लोहा लिया था और देश को स्वतंत्र कराने के लिए , गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए अपने प्राणो की आहुति दी थी ! मेरी आत्मा उस तहसील के अंतर्गत आने वाले गांवो की दशा देखकर रो पड़ी थी, देश को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त करवाने में योगदान देने वाले अमर शहीद बंधू सिंह की यह तहसील आज भी सभी मूल सुविधाओ से वंचित और विकृत रूप लिए आज़ाद भारत में गुलाम जैसी प्रतीत हुई ! तीन नदियों से घिरे इस 28-29 किलोमीटर के इस परिक्षेत्र में कोई सुविधा नहीं है , मुझे मुंशी प्रेमचन्द्र के कहानियो और उपन्यासों के पात्र भी मिले इन गाँवों में और वही त्रासदी भी दिखी ! 66 शाल में क्यू साशन प्रसाशन ने नहीं ली इसकी कोई सुधि यह सवाल लेकर लौटा मैं और खिन्नता भी !
पिने के पानी के नाम पर 80 प्रतिसत के लिए हैंडमार्का पम्प की ब्यवस्था है! और यह बहुत पुरानी ब्यवस्था है पर यह ब्यवस्था जैसी कल थी वैसी ही आज भी है कही पम्प है तो खस्ता हाल में बस खड़ा है कही किसी ब्यक्ति विशेष के प्रभुत्व में है , जिसका लाभ आम जन को नहीं है ! मैं पूछता हूँ जब 20 प्रतिसत लोगो के लिए तरह तरह की सुविधाये है तो फिर 80 प्रतिसत के लिए क्यू नहीं ! क्या 80 प्रतिसत को शुद्ध जल पिने का हक़ नहीं है !
जिस 80 प्रतिसत के चुनने से तय होता है भारत का भविस्य क्या उस 80 प्रतिसत के भविस्य का दायित्व बोध नहीं होना चाहिए देश को और देश के रहनुमाओ को ! भारत की आत्मा, भारत के भाग्यविधाता,भारत के अन्नदाता को उनकी मूल सुविधाओ से वंचित रखकर उनके साथ 66 शाल से कौन सा न्याय किया जा रहा है ! क्या सिर्फ 20 प्रतिसत शहरी ही करेंगे देश का प्रतिनिधित्व ! मुख्यमंत्री जी अपने प्रदेशो में किसी गांव में जाकर क्यू नहीं लगाते जनतादरबार क्यू नहीं करते रात्रि विश्राम, एक ही दिन सही क्यू नहीं रहते गाँव में जाकर , और क्यू नहीं जानना चाहते 80 प्रतिसत का दुःख दर्द ! 66 शाल से प्रधानमन्त्री जी प्रधानमन्त्री बनने से पहले तक कैसे उतार लेते है वोट के लिए अपना उड़नखटोला किसी भी गाँव में और प्रधान मंत्री बनने के बाद किसी प्रधानमन्त्री का उड़नखटोला किसी गाँव में क्यू नहीं उतरता 80 प्रतिसत क्यू काट जाता है उनके एजेंडे की मुख्या धरा से ! क्यू कागजी कारवाई भर से मतलब रह जाता है ख़ास लोगो का ! क्यू 20 के इर्द गिर्द बने रहते है ये ख़ास लोग जब की इन्हे अच्छी तरह पता है भारत गाँवों का देश है , किसानो का देश है , भारत कृषि प्रधान देश है किसानो से ही जुडी है देश की तरक्की की जड़ ! ये ख़ास लोग अगर उदासीन थे , है, और रहेंगे इसी तरह गाँवों के प्रति तो फिर कौन करेगा 80 प्रतिसत की चिंता !


Saturday, June 14, 2014

समाजवाद में परिवारवाद का अभ्युदय और समाजवाद का पतन

(( The rise of familyism in socialism and the fall of socialism !!))
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In this era of the fall of the true socialism of Dr. Ram Manohar Lohia ji, stuck in the corrupt sack of familyhood and familyism in socialism , friends, I want to bring you all about the history of socialism and a comparative analysis of the present! And I want to be honest with the true meaning of Lohia's true socialism! That Smajhwad which became not only our country but had went wished Tue world , and went to talk to Byapakta of growth and development , general-specific borderline society while trespassing in an advanced direction , developing direction It was said to be taken in and it was implemented! The wave of Gandhi , Nehru , which had also suffered a lot, was socialism , and the socialism which was swept away in the storm of socialism! The socialist society which has bowed down to the ruling party, due to its healthy and elaborate ideas. Also, I want to get rid of them with their original definition of socialism for the sake of power by their respected sons , and due to that mess, due to true socialism, fall !  And if the Q alive Lohia G and see Kukritya your psyche sons , because of the power of gluttony given the deterioration Smajhwad , Smajhwadi under the banner of humanity screaming and wires - so stay tuned strings Sayd are once bent his eye injured In front of humanity! And the heart is filled with anguish , which is the name of the lioness of socialism that has been doing politics for a long time. There were no advocates, he used to talk about adding society, on the basis of development!      
When Lohia's socialism grew, at that time there was political instability in the whole country. Fear - the air of hunger and fear was at its peak! Social inequality was dominated! The exhaustion came in Satyagraha. Gandhiji returned to India after the Round Table Conference failed and was arrested. Nehru was in jail. Sardar Patel was in jail. Khan Abdul Gaffar was in Burma jail! And then Viceroy Willingdon had taken a vow that , they will get over the six-week campaign of Congress. In such a situation, within the country, socialism within Dr. Ram Manohar Lohia was born! Lohia was seen in front of her in the absence of poverty and half-incomplete torn clothes wrapped in poverty in the country ! Lohia from Germany his Ph.D. Returned , and returned with a feeling that socialism with no world can not be talked about! Nor can the dream of progress and development of human beings be realized! At the same time, it was also understood that the establishment of true socialism can not be followed by Gandhi and Nehru's ideas. Together with the standard globalization of true socialism, the world on one side of the Q was jumping into the movement of the revolution of development, on the other hand, some countries which were looking forward to being liberated from the enslavement of hundreds of years , and Lohia was also getting a glimpse of the terrible hunger and corruption after his independence! In these countries Lohia's own country, that is, India was also included! The establishment of true socialism for the fourfold development of India and the globalization of true socialism was very essential for Lohia! Without it, it was not possible to break the deep gap between the advancement of the country and freedom from the general!    
Today Smajhwad which is distorted as in front of us , and that socialism power by chaotic and unscrupulous people have been added to each  named after citing the name of Lohia and his philosophy of Smajhwad  with striking wilderness in society  he Lohia  ever Beja Darshan was not supportive , Q. They knew that there is nothing good in the society, due to the Khalis philosophy!
Lohia's contemplation never ceases to be a prisoner for a period of time. His unique and unique vision about the world's creation and development was. That's why he always dreamed of world-citizenship. They considered humans as citizens of the world, but not a country. He wanted that there should be no legal obstacle to come from one country to another and any part of the whole earth should be considered completely independent of it to be able to come anywhere. This will be true socialism and true In the world also the true establishment of socialism! But their perverted monks limited the Yadav and Muslim vote bank to socialism, and according to their own accord, an illusory definition of socialism which has led society to decline! 
Lohia was a seer and producer of a new civilization and culture. But the modern age could not assimilate them completely ! Its intensity , vitality , originality , due to expansion and extensive properties they hold out to people. There is a reason for this - those who want to take the views of Lohia in a superficial way , like their psyche son is doing today, Lohia is very heavy for them. Deep vision of the Lohia ideas , can be found the formula within the statements and actions , which formula Lohia is characterized by the idea , the source of their ideology is not today the Smajhwad listening and experiencing'd He is socialist.  
Lohia, the second name to understand and examine the society deeply, is the socialism of Lohia, after examining the society on the standard of its ideas - after examining the definition and definition of socialism, for the society! Lohia's socialism was not imagined! Neither today's socialist Yadav is just like the socialist community! Whatever Lohia ji did, he did it for the benefit of the society, keeping himself away from power! This is the reason why Lohia understood Marxism and Gandhian in the original form and found both incomplete , because both of them had left the pace of history! Just like that today, Yadav Kunba has left the history of socialism and is currently being selfish and dying on power . And with the speed of Lohia history, there was the advocacy of joining the present! They came to know that the importance of both Marxism and Gandhian was mere age! In Lohia's view, Marx is a symbol of East and East India, and Lohia wanted to bridge the East-West gap. From the point of view of humanity, they wanted to eradicate the distance between east-west , black-white , rich-poor , small nations , men and women ! But the rest of the people wanted to deepen the gap so that they remained in the discussion! It seems that in the future, in the views of Lohia and Jayaprakash Narayan, inequality also appeared and the first phase of the downfall of socialism began with the same!     
Lohia's ideas were creative. They used to strive for perfection and totality. Lohia said -
As soon as the man is his conscious is , regardless of the level at which it came to consciousness and complete awake feeling of anguish and suffering of their isolation , as well as experience the satisfaction of its existence , the thought process is that it is How to mix yourself with the full , at the same time the search for purpose begins.
But today's socialism Lohia's views are seen in the opposite of this thinking ! Lohia had talked of creating equality between the entire human race and it was proven to be true socialism! The followers of current socialism have prepared two castes in the form of a model - the Yadavas ! And through socialism, the people of Nagar cadre have not created the public and have created enormous atmosphere !! Where Lohia has decided to run the society on the path of development by globalization, it is being done to break it today! Dr. Lohia, who favored the popularity of public opinion, wanted such a socialist system in which everyone had an equal stake. He used to say that any kind of property, including public money, should be for every citizen. He created a team that would have felt the effect of the socialist movement for a long time. Dr. Lohia did not ride the rickshaw. It was inhuman to say that a man dragged a man. And the same when we observe the socialism of SP supremo Mulayam Singh ji, we find that socialism is promoted by rickshaw!     
The whole life of Dr. Ram Manohar Lohia , the true leader of true socialism, remained simple. His contribution to bridge the poverty gap is important. In today's era, his views are becoming more relevant. And the need for establishment of their true religion is the definition of socialism today, the definition of socialism started by the Lords of Manas It is a curse form for society! Where Lohia kept herself away from Subhibhava and the desire for power, her son-in-law has indulged herself. Today, administration is not being used to build a strong society but is being engaged in unnecessary work like finding a buzz! Where Lohia thought of liberating the society with a special mentality, the present socialists have built a new standard of common-man within the society! Where Lohia had said that the entire society should be considered as a family, today's socialists are seeing complete socialism in a family! Ram Manohar Lohia and Jaiprakash Narayan may not have been a big socialist leader in the political history of India than these two figures. But today the Kunba Socialist leader, who himself tells himself, considers himself a great thinker and a happy person of socialism! Dr. Ram Manohar Lohia went to jail thousands of times before taking the iron from the British on the call of Gandhiji before independence; then even when Gandhiji did not mix the ideas about socialist disintegration, he separated his path and with the globalization of socialism Show the courage to add! And the task of fabricating advanced and multilingual definition of socialism! As well as the corrupt government since independence , jailed in show eye led by corrupt government of crime and corrupt government of showed that day provide knowledge of the true Smajhwad corrupt of was forced to be subservient to Kdmo government Smajhwad Sayd Lohia In view of this, the victory of socialism was a dictator on the policies of the corrupt government! The same is true of today's socialist ideology of Manashiputra of Himayati Lohia, who helped a corrupt government run for ten years and showed greediness for power. This truth is not hidden from anyone today!         
By cooperating with a corrupt government, modern advocates of socialism only killed Lohia's true socialism and nothing else!
Ram Manohar Lohia and Jai Prakash Narayan were two aspects of one coin! But after Lohia's Lohia, divided into two groups , the game of power with socialism started, which has continued till today! The seeds of the misconception between Jai Prakash Narayan and Lohia have flourished in our presence in the form of corruption of today's corrupt socialism and today in Uttarakhand, this Uttaravyak has been confined in the clutches and shadows of the trees that some of it has flourished. There is no scope for it! The socialist movement that was at its peak in the country and compelled the large dynamic forces to bend in front of them, it is almost finished today. And the family has taken it in its place! That is, the rise of a new socialism in contrast to the socialism of Lohiya, in which familyism has been accepted as the background of socialism, and the socialism of Lohiya has been finally dismissed, where Lohia advocated accepting society as a family The same Yadava Kunba, incorporated socialism into a family and started moving towards the downfall of Lohia's socialism! Lohia, where Ajatashatru was based on the values ​​of socialism, talked about developmentism from socialism ........ The same son of Lohia laid the corrupt definition of socialism to socialism to familyism and to liberalize socialism. Started a new chapter!   
Today, without any logging, we can say that the rise of familyism in socialism is happening due to the fall of true socialism !! 

by -
Pradeep dube


Sunday, June 1, 2014

नारी सुरक्षा पर प्रश्नचिह्न बदायूँ कांड

नारी सुरक्षा पर प्रश्नचिह्न बदायूँ कांड
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जब तक न चरण स्वछन्द रहें
घुँघरु के सुर मंद रहें ........!!

कभी कविवर महाप्राण निराला जी ने अपनी इस पक्ति के माध्यम से समाज में और जीवन में स्वछँदता की वकालत की थी ! अपने समय के परिवेश से चार कदम आगे जाकर बुराइयों और संकीर्णताओ की जटिल बेड़ियों एवं वर्जनाओं को तोड़ने की हिमायत की थी   ! उन्होंने तत्कालीन बंगाल का उद्दाहरण देते हुए १९४५-५० में ही लिख दिया था की इस मानसिकता को आप क्या कहेंगे की घर की १५ साल की बाल विधवा का विवाह नहीं किया जाता है दुबारा की ऐसा करने से घर- खानदान के सम्मान को ठेश लगेगी और सामाजिक पतन होगा किन्तु उसी घर में उस बाल विधवा के साथ जेठ , ससुर, देवर तक अपना मुह काला करते है और घर खानदान के झूठे सम्मान को बचाने के लिए रोज उस बालविधवा के सम्मान से खिलवाड़ करते है रोज़ उसकी आत्मा को मारने का कृत्या करते है इसके पीछे उनकी भोग विलास वाली संकीर्ण मानशिकता ही झलकती है और कुछ नहीं "! आज ये और बात है की निराला जी के टाइम के बंगाल जैसी स्थिति नहीं है देश में फिर भी बहसीपन और जंगलीपन को बढ़ावा उससे भी कही ज्यादे मिला है अंतर बस इतना है की तब अंधी झूठी - रीति -रिवाज़ के नाम पर इसे अंजाम दिया जाता था और आज झूठी आधुनिकता के नाम पर, पहले घर के बाड़ी और चहारदीवारी में ही सुरक्षित नहीं थी नारी क्यू की वह अशिक्षित थी अबला थी और समाज भी बहुत हद तक दकियानूसी सोच रखता था उसके प्रति , किन्तु आज शिक्षा के बाद और समाज के आधुनिक होने के बाद भी नारी सुरक्षित नहीं है क्यों की अब घर से बाज़ार तक की दुरी में अंतर कम हुआ है, और समाज अति आधुनिक ! अभी हाल में बदायूं में जो कुछ भी घटा वह एक प्रश्नचिन्ह है इस अति भोग विलाश पूर्ण जीवन के आदि होते हुए हमारे आधुनिक समाज के सभ्य होने पर और प्रदेश में जंगल राज के अभ्युदय पर भी ! आज के समाज में  इस तरह की घटना  हमारे संस्कारो के साथ साथ हमारी सोच पर भी ऊँगली उठा रही है

बदायूं में हाल में जो कुछ भी हुआ वह सभ्य समाज के लिए बेहद ही शर्मनाक और गंभीर सोचनीय विषय है 17  वीं सदी जैसी घटना आज के समय में होना इस बात की ओर इसारा करता है की आधुनिक समाज जितना उन्नति की ओर कदम बढ़ा रहा है , विज्ञान की ओर कदम बढ़ा रहा है उससे कही ज्यादे पशुता की ओर भी अपने कदम बढ़ा रहा है
उसके भीतर जितना पा लेने की जान लेने की ललक ब्याप्त है उतनी ही प्याश और तृष्णा
विनाश के ओर जाने की भी है  ! इस्त्री की सुरक्षा के लिए  कानून का चाबूक कितना कारगर साबित होगा जबतक हमारे समाज के भीतर से पशुता, बर्बरता , अहंकार , और संकीर्णता का अंत नहीं होगा  ! निर्भया कांड के बाद इस्त्री सुरक्षा के लिए देश में कानून की जो ब्यवस्था की गई वह हर तरह से पर्याप्त है एक स्त्री को सुरक्षा प्रदान करने हेतू ! किन्तु इस क़ानून को हम कहा कहा पर्श में रख कर घूमेंगे क्यू की एक स्त्री आज न घर में सुरक्षित है न घर के बाहर, वह घर में घर की चहारदीवारी से लेकर  बाथरूम किचन ,बैडरूम, ड्राइंगरूम, छत, पोर्टिको,और सीढ़ियों पर चढ़ते उतरते भी पुरुष के हिंसा और छेड़ - छाड़ की शिकार हो रही है !
घर के बाहर स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी , लाइब्ब्रेरी ,टैक्सी ,कार,बस  ऑफिस, ट्रैफिक, मंदिर ,बाजार, ट्रेन,पैदल चलते हुए, गाड़ी ड्राइव करते हुए, सिनेमाहाल में बैठे हुए, हर जगह उसके साथ दुर्घटना हो रही है वह कही भी सुरक्षित नहीं है ! यह सबसे बड़ा प्रश्न है हमारे सामने ! देश में निर्भया कांड के बाद जिस त्वरित गति से क़ानून पास हुआ स्त्री सुरक्षा हेतू उतने ही त्वरित गति से लड़कियों औरतो के साथ एक के बाद एक घटनाये भी
होनी शुरू हो गई निर्भया कांड के बाद सिर्फ दिली में ३०० ऐसी घटनाएं घटी, बाकी देश के अंन्य हिस्सों में इस तरह की घटनाओ  का तो जैसे भूचाल सा  आ गया और  पुरुष    बहसीपन की सारी सीमाये भी लांघने लगा अब अपनी भूख मिटाने के बाद वह सुबूत भी मिटा रहा है वज़ह ये है की उसे पता है अगर पीड़िता ज़िंदा रही तो कानून में उसके लिए किस तरह की सजा का प्रावधान है !
इस लिए कानून से भी कही जरुरी है आधुनिक होते समाज में संस्कार और मुल्ल्यो की स्थापना हो ! परिवर्तन विचारो में  आये हमारी सोच बदले हम जितने आधुनिक हो रहें है अंन्य क्षेत्र में उतने ही आधुनिक हो स्त्री सम्मान के प्रति !

साथ ही इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता की नकारा शासन ब्यवस्था की वजह से भी अंजाम दिया जा रहा है इस तरह की घटनाओ को !
सपा के मुखिया माननीय मुलायम सिंह द्वारा आम चुनाव २०१४ की अपनी एक रैली के दौरान यह कहा जाना की ( ऐसी गलतियां प्रायः हो जाती है ) भी एक खुला संकेत था एक स्वीकृति थी इस तरह के कुकृत्य करने वालो के लिए क्यू की बदायूं में जो कुछ भी हुआ है मुलायम सिंह के इस कथन के बाद ही हुआ है ! इतनी बड़ी घटना के बाद भी मुख्यमंत्री अखिलेश जी ने इसे हल्के में निपटाने का सोचा वह सायद यह भूल गए की बदायूं की यह घटना उनके शासन काल में उनके ऊपर लगा सबसे बड़ा और बदनुमा दाग है जिसे छुड़ाने में उन्हें बहुत वक्त लगेगा ! आज़म खान की भैष गायब हुई तो प्रशासन की पूरी ताकत झोंक दी गई भैसो को ढूंढने में और बदायूँ में जो कुछ घटा उसपर एक लम्बी चुप्पी क्यू साध लिया था मुख्यमंत्री जी ने क्या उन माशूम बच्चियों का कोई मूल्य नहीं इनकी नज़र में !
यह सर्व विदित है कि अपने तत्कालीन समाज, परिवेश , न्याय , परंपरा , संस्कृति, सभ्यता राज्य कि धरोहर,शिक्षा स्त्री के सुरक्षा और सम्मान के प्रति जो राजा चैतन्य नहीं होता जागरूक नहीं होता सक्रिय नहीं होता उसे इतिहास कभी क्षमा नहीं करता, वर्तमान उसका कभी सम्मान नहीं करता और दुनिया कि कोई शक्ति उस राजा को उसके पतन से बचा नहीं सकती ! आज उत्तर प्रदेश कि यही दशा परिलक्षित हो रही है चारो तरफ अराजकता और जंगल राज कायम हो गया है और बदायूं जैसी घटना एक यक्ष प्रश्न बनकर खड़ी है हमारे सामने !

द्वारा -
प्रदीप दुबे
pdpjvc@gmail.com