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Friday, June 20, 2014

कौन करेगा 80 प्रतिशत की चिंता

  कौन करेगा 80 प्रतिशत की चिंता

  


प्रदीप दुबे
स्वतंत्रता के बाद इन 66 सालों में देश के भीतर बहुत सारे परिवर्तन हुए बहुत सारी क्रांति आई बहुत सारे नियम कानून बने और उनपर अमल भी हुआ कहना न होगा की लम्बी गुलामी के बाद जब हमारा राष्ट्र आज़ाद हुआ तो उसके लिए दुनिया में अपनी पहचान अपना वजूद कायम करने का मुद्दा ही अहम मुद्दा था ! और इस मुद्दे के तार भारत के भाग्यविधाता भारत की आत्मा यानी किसानो से जोड़े गए थे !
विनोबाभावे ने अपने भूमि आंदोलन के तहत भारत के विकास का जब सपना देखा तो किसानो के प्रति उदार होने की बात सामने आई क्यों की इन 80 प्रतिसत भारतीयों के प्रति उदार हुए बिना भारत के विकास और भारत के उद्धार का सपना सम्भव नहीं था !
किन्तु यहाँ इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता की स्वतंत्रता के बाद से जिस तबके का सबसे ज्यादा शोषण किया गया , जिसके श्रम का सबसे ज्यादा दुरूपयोग किया गया भारत में, वह तबका भारत के भाग्यविधाता यानी किसानो का ही रहा है !
यह देश का दुर्भाग्य ही रहा की देश के लिए जिस कौम ने रोटी पैदा करने का बीड़ा उठाया उसी कौम को अनदेखा किया गया , दुनिया में जिसके द्वारा भारत की अपनी पहचान बनी उसी अन्नदाता की पहचान को खारिज किया गया ! 1918, 1940, 1942, 1960, 1970 और 1980 तक देश में बहुत सारे आंदोलन हुए किसानो की बेहतरी को लेकर, लोहिया और जयप्रकाश नारायण ने भी खूब आंदोलन किये किसानो के हक़ के लिए ! किन्तु जयप्रकाश नारायण के बाद तो जैसे देश के रहनुमाओ ने कसम खा लिया की किसानो के साथ सिर्फ और सिर्फ अन्याय करना है ! और सिर्फ वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करना है इस 80 प्रतिसत को !
पिछले कई सालों से भारत में किसानो के बीच आत्महत्या की घटना भी तूल पकड़ रही है !
यदि हम ज्यादा पुरानी बात न करें और सिर्फ 2011 -2012 का ग्राफ उठाकर आत्महत्या की घटनाओं पर नजर डालें तो राष्ट्रीय क्राईम रिकॉर्ड के अनुसार इस वर्ष पूरे देश में 14027 किसानों द्वारा आत्महत्या की गई थी ! दुखद बात तो ये रही की तत्त्काल में हो हल्ला बहुत हुआ किन्तु इसपर कोई स्थाई रणनीति नहीं तैयार की गई सिर्फ मुवावजे का प्रलोभन देकर 80 प्रतिसत का मुह बंद करवाया गया ! मध्यप्रदेश , उत्तर प्रदेश , महाराष्ट्र , छत्तीसगढ़ , झारखण्ड , हरियाणा के किसान गहरे संकट में है ! यह संकट है उनकी छोटी होती कृषि भूमि, मंहगी होती खेती और बार-बार नष्ट होती फसलों का, जिस खेती के लिए न कोई इन्स्योरेंस ब्यवस्था है न ही सुविधापूर्ण लोन की ही ब्यवस्था ! 20 प्रतिसत द्वारा एक कार खरीदी जाती है तो उसका भी इन्स्योरेंस होता है , उसकी सुरक्षा की दृष्टि को ध्यान में रखकर, किन्तु एक किसान की फसल का कोई इन्स्योरेंस नहीं होता आपदा आई तो फसल नष्ट और किसान कर्ज के बोझ तले दब कर आत्महत्त्या कर लेता है यानी की 20 प्रतिसत की कार ज्यादे महत्वपूर्ण होती है 80 प्रतिसत अन्नदाता की खेती और फसल से !
इस बार के आम चुनाव में भी कही किसी ने जिक्र तक नहीं किया किसानो की इस दर्दनाक आत्महत्या पर और न ही इस दर्दनाक आत्महत्या के लिए किसी के एजेंडे में कोई नीति परिलक्षित हुई ! 80 प्रतिसत के बनाने से बना देश का भविष्य , देश के रहनुमा क्यू चिंतित नहीं है इस घटना के प्रति यह गंभीर विषय है जिसपर मंथन होना चाहिए !
1918 में महात्मा गांधी ने किसानो को भारत की आत्मा कहा और कहा की जबतक भारत की आत्मा जागृत ,सशक्त,और स्वावलम्बी नहीं होगी भारत दुनिया के सबसे पिछड़े देशो की श्रेणी में खड़ा रहेगा और गुलामी की दासता से मुक्ति पाने का मार्ग भी अवरुद्ध रहेगा ! किसानो को जगाना होगा, उनके हक़ से उन्हें परिचित कराना होगा और उनके हक़ के लिए चिंता करनी होगी , सोचना होगा की उन्हें सशक्त और आत्मनिर्भर कैसे बनाया जाए !
1918 में चंपारण के किसानो की तबाही को रोकने के लिए महात्मा गांधी ने नील आंदोलन किया साथ ही खेड़ा के किसान आंदोलन में सक्रिय हुए और किसानो का साथ दिया ! कहना ना होगा महात्मा गांधी का यह पहला आंदोलन था भारत में ! अफ्रीका से भारत आने के बाद पहली बार महात्मा गांधी चर्चा में आये बिहार स्थित चंपारण के नील आंदोलन से यानी किसानो के हक़ की बात करने के बाद ही गांधी चर्चित हुए ! कहना ना होगा सच्चे अर्थो में गांधी को राष्ट्र स्तर पर पहचान मिली 1918 के खेड़ा और चंपारण के किसान आंदोलन से ! आज उन्ही किसानो को अनदेखा कर के देश की तरक्की की बात की जा रही है सायद यह भूल गए है देश के रहनुमा की इन 80 प्रतिसत के विकास की बात किये विना भारत कभी तरक्की नहीं कर सकता क्यू की जिस उद्दोगधंधे को विकशित कर के देश के विकसित होने की बात की जा रही है उन उद्दोगधंधो की जड़े इन 80 प्रतिसत से ही जुडी है ! अगर इस 80 प्रतिसत की मूलभूत जरुरतो पर ध्यान नहीं दिया गया तो चाहे किसी भी टेक्निक का इस्तेमाल कर लिया जाए, चाहे कोई भी फार्मूला अपना लिया जाए देश की तरक्की होने वाली नहीं !
अबतक देश में जितने भी आम चुनाव हुए और जो भी सरकार बनी उसमे इस 80 प्रतिसत की महती भूमिका रही इस 80 प्रतिसत के योगदान के विना सरकार का गठन सम्भव नहीं हो सकता ! जब भी सरकार बनी उसने अपने एजेण्डे में बहुत सारी योजनाओ को जगह दिया इन 80 प्रतिसत के लिए किन्तु कोरी कागज़ी करवाई तक उससे ज्यादे कुछ भी नहीं हुआ इनके लिए !
इनकी मूलभूत जरुरतो की बात तो होती है किन्तु उनपर अमल नहीं होता और अमल होता है तो कागज़ के पन्नो पर !
शिक्षा , बिजली, पानी , सड़क , स्वास्थ्य, इन 5 मूलभूत सुविधाओ से वंचित है भारत का किसान ! आप जरा कल्पना करिये जिस देश की 80 प्रतिसत जनता इन मूलभूत सुविधाओ से वंचित है स्वतंत्रता के 66 साल बाद भी वह देश तरक्की की बात करता है, उद्दोगधंधे को बढ़ावा देने की बात करता है ! समझ में नहीं आता यह तरक्क़ी कैसे सम्भव है क्यू की चिप्स-पापड़ का उद्दोग तभी फलीभूत होगा जब एक किसान के खेत में आलू की अच्छी पैदावार होगी और किसान के खेत में आलू की अच्छी पैदावार तभी होगी जब किसान शिक्षित होगा, सही समय पर उसे बीज , खाद , पानी, कीटनासक मिलेगा अपनी फसल के लिए, और यह बीज, खाद, पानी , कीटनासक तभी सही समय पर उसे मिलेगा जब इसके लिए उसके गांव में ही इसे उपलब्ध कराने की ब्यवस्था की जाए और गांव में इसे तभी उपलब्ध कराया जा सकता है जब गांव की सड़के अच्छी हो वह नगर से सीधे जुडी हो !
वस्त्र उद्दोग तभी तरक्की करेगा जब कपास की खेती ठीक से होगी ! दुग्ध उद्दोग तभी फलीभूत होगा जब सही नस्ल की गाय भैष किसानों को मिले ! और यह सब तभी सम्भव है जब उनके गांव में इन सभी मूलभूत सुविधाओ की ब्यवस्था की जाए !
हम दुनिया में पूरी ताकत के साथ खड़े होंगे भारत उद्दोग धंधे को बढ़ावा देगा ,अधिक से अधिक रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराये जाएंगे उद्योग धंधे को बढ़ावा देकर जाने क्या क्या बाते रोज हो रही है देश में ! मै इस देश के मुखिया , इस देश के रहनुमाओं से बस इतना पूछना चाहता हूँ की जब इन 80 प्रतिसत के बिना आपका स्तित्वा सम्भव नहीं है , देश का स्तित्वा सम्भव नहीं है तो फिर इन 80 प्रतिसत की सुविधाओं के प्रति आप इस तरह उदासीन कैसे रह सकते है ! इनके स्तित्वा को नकार कैसे सकते है !
स्वतंत्रता से पहले गांव में प्रारंभिक शिक्षा अर्जित करने के लिए प्राइमरी स्कूल , जूनियर हाई स्कूल की ब्यवस्था की गई थी आज भी वही है ! वह स्वतंत्रता से पहले जिस हालत में थी आज भी उसी हालत में है ना अंग्रेजी , ना कंप्यूटर की शिक्षा दी जाती है इन प्राइमरी स्कूलों में ! और एक किसान का बेटा-बेटी जब आगे की शिक्षा के लिए यूनिवर्सिटी कॉलेज ज्वाइन करना चाहते है तो उन्हें दाखिला नहीं मिलता क्यू की उनकी जड़ कमज़ोर होती है उनका कॉम्पटिशन कान्वेंट के पढ़े लिखे लोगो के साथ होता है ! जरा सोचिये इस प्राइमरी स्कूल के लिए कितना पैसा बहाया जाता है अध्यापको पर ! अगर अध्यापको की स्थिति में सुधार किया गया चौगुनी रफ़्तार से स्वतंत्रता के बाद तो फिर प्रायमरी स्कूल की शिक्षा में सुधार क्यू नहीं किया गया ! क्या 20 प्रतिसत शहरी लोगो भर के अच्छी शिक्षा ग्रहण कर लेने मात्र से ही देश तरक्की कर लेगा ! क्यू नहीं है प्रायमरी स्कूलों में टेबल स्टूल की ब्यवस्था क्षात्रों के बैठने के लिए , वो आज भी ज़मीन पर क्यू बैठते है ! कहा जाता है प्रायमरी स्कूलों के लिए आया धन ! किसानो के बच्चो की शिक्षा के प्रति सौतेला ब्यवहार क्यू !
हमारे गांवो में आज भी स्वास्थ्य ब्यवस्था शून्य है , और गांवो की दूरी शहर से 60-60 किलोमीटर पर है ! स्वास्थ्य केंद्र तो बने है पर उसमे ना डॉक्टर, ना नर्स , ना समुचित दवा की ब्यवस्था ,ना ही एम्बुलेंस की सुबिधा मै पूछता हूँ देश के रहनुमाओं से क्या 20 प्रतिसत शहरी लोग ही वीमार पड़ते है क्या उन्हें ही रोग होता है ! क्या 80 प्रतिसत को कोई वीमारी नहीं होती है !१ और अगर होती है तो उनके लिए स्वास्थ सुविधा की ब्यवस्था भगवान भरोसे क्यू , 66 शाल तक आप उदासीन क्यों बने रहे उनके प्रति ! और आज भी अपनी भूल को सुधरने का प्रयास क्यू नहीं कर रहे है !आपको क्यू नहीं दिखाई देता उनका अभाव उनका दर्द क्यू स्वाथ्य सुविधा के अभाव में मरने को मज़बूर है 80 प्रतिसत भारत की आत्मा ! भारत के अन्नदाता , भारत के किसान !
देश की तरक्की में जो गांव 80 प्रतिसत योगदान देते है उन गावों में आज भी बिजली की उचित ब्यवस्था नहीं है, बिजली की रौशनी नहीं के बराबर है ! बिजली के नाम पर पोल दिख जाते कहीं, तो कहीं वह भी नहीं दिखते ! कहीं बिजली के पोल और पोल पर तार दिख जाते है तो लाइट नहीं होती उनमे ! कहीं कहानी इसके उलट है रात बारह बजे के बाद लाइट आती है और 5 बजे सुबह चली जाती है ! 20 प्रतिसत लोगो की बिजली अगर २ घंटे लगातार कटने लगे तो पुरे देश में हंगामा खड़ा हो जाता है चिंताए जताई जाती है और बहाली के इंतज़ाम किये जाते है मै पूछता हूँ क्या 20 प्रतिसत को ही हक़ है उजाले में रहने का और बिद्युत उपकरणों के प्रयोग करने का क्या 80 प्रतिसत लोग जंगली जानवर की श्रेणी में आते है जो उन्हें उजाले और विद्युत उपकरण की जरुरत नहीं !
सड़क की भी हालत वही है ! रोज टेंडर पास होता है रोज नई नई योजनाये फलीभूत होती है पर ज़मीनी सच ये है कि गावों में आज भी सड़क ब्यवस्था दुरुस्त नहीं है !
हाल ही में मुझे पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलो में जाने का मौका मिला मैंने वहां पर सड़क कि हालत देखीं और मेरा मंन खिन्न हो गया ! ऐसे गाँव मिले मुझे जहा 7 बजे साम के बाद जाना मुस्किल हो आज की 20 प्रतिसत सुविधाभोगी शहरी जनता को सायद ही पता हो कि चकरोड जैसी सड़क ब्यवस्था गाँवों के लिए स्वतंत्रता के 66 शाल बाद भी है जहां जून से लेकर सितम्बर-अक्टूबर तक आना जाना बेहद कठिन है ! कही खडंज़े वाली सड़क तो कही बड़े- बड़े गड्ढे वाली सड़क जहां हमारी लक्ज़री गाडी भी जाने से इंनकार कर दी और हम लोगो को 4 – 4 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा ! उन कीचड़ भरे रास्तो पर एक दिन चलने में मुझे खासा परेशानी हो रही थी तो सोचिये जिनकी जिंदगी, जिनकी दिनचर्या की शुरुआत इन्ही राहो से रोज़ होती है उनका जीवन कितना कठिनाई भरा होगा,! उनकी समझ में सुविधा का मतलब क्या होता होगा !
अपनी इसी यात्रा के दौरान मैंने चौरीचौरा के मीठाबेल बरहमपुर ब्लॉक का दौरा किया जिसे अमर शहीद बंधू सिंह से जोड़ कर देखा और जाना जाता है जिन्होंने अंग्रेजो से लोहा लिया था और देश को स्वतंत्र कराने के लिए , गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए अपने प्राणो की आहुति दी थी ! मेरी आत्मा उस तहसील के अंतर्गत आने वाले गांवो की दशा देखकर रो पड़ी थी, देश को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त करवाने में योगदान देने वाले अमर शहीद बंधू सिंह की यह तहसील आज भी सभी मूल सुविधाओ से वंचित और विकृत रूप लिए आज़ाद भारत में गुलाम जैसी प्रतीत हुई ! तीन नदियों से घिरे इस 28-29 किलोमीटर के इस परिक्षेत्र में कोई सुविधा नहीं है , मुझे मुंशी प्रेमचन्द्र के कहानियो और उपन्यासों के पात्र भी मिले इन गाँवों में और वही त्रासदी भी दिखी ! 66 शाल में क्यू साशन प्रसाशन ने नहीं ली इसकी कोई सुधि यह सवाल लेकर लौटा मैं और खिन्नता भी !
पिने के पानी के नाम पर 80 प्रतिसत के लिए हैंडमार्का पम्प की ब्यवस्था है! और यह बहुत पुरानी ब्यवस्था है पर यह ब्यवस्था जैसी कल थी वैसी ही आज भी है कही पम्प है तो खस्ता हाल में बस खड़ा है कही किसी ब्यक्ति विशेष के प्रभुत्व में है , जिसका लाभ आम जन को नहीं है ! मैं पूछता हूँ जब 20 प्रतिसत लोगो के लिए तरह तरह की सुविधाये है तो फिर 80 प्रतिसत के लिए क्यू नहीं ! क्या 80 प्रतिसत को शुद्ध जल पिने का हक़ नहीं है !
जिस 80 प्रतिसत के चुनने से तय होता है भारत का भविस्य क्या उस 80 प्रतिसत के भविस्य का दायित्व बोध नहीं होना चाहिए देश को और देश के रहनुमाओ को ! भारत की आत्मा, भारत के भाग्यविधाता,भारत के अन्नदाता को उनकी मूल सुविधाओ से वंचित रखकर उनके साथ 66 शाल से कौन सा न्याय किया जा रहा है ! क्या सिर्फ 20 प्रतिसत शहरी ही करेंगे देश का प्रतिनिधित्व ! मुख्यमंत्री जी अपने प्रदेशो में किसी गांव में जाकर क्यू नहीं लगाते जनतादरबार क्यू नहीं करते रात्रि विश्राम, एक ही दिन सही क्यू नहीं रहते गाँव में जाकर , और क्यू नहीं जानना चाहते 80 प्रतिसत का दुःख दर्द ! 66 शाल से प्रधानमन्त्री जी प्रधानमन्त्री बनने से पहले तक कैसे उतार लेते है वोट के लिए अपना उड़नखटोला किसी भी गाँव में और प्रधान मंत्री बनने के बाद किसी प्रधानमन्त्री का उड़नखटोला किसी गाँव में क्यू नहीं उतरता 80 प्रतिसत क्यू काट जाता है उनके एजेंडे की मुख्या धरा से ! क्यू कागजी कारवाई भर से मतलब रह जाता है ख़ास लोगो का ! क्यू 20 के इर्द गिर्द बने रहते है ये ख़ास लोग जब की इन्हे अच्छी तरह पता है भारत गाँवों का देश है , किसानो का देश है , भारत कृषि प्रधान देश है किसानो से ही जुडी है देश की तरक्की की जड़ ! ये ख़ास लोग अगर उदासीन थे , है, और रहेंगे इसी तरह गाँवों के प्रति तो फिर कौन करेगा 80 प्रतिसत की चिंता !


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