नारी
सुरक्षा पर प्रश्नचिह्न बदायूँ कांड
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जब तक न चरण
स्वछन्द रहें
घुँघरु के
सुर मंद रहें ........!!
कभी कविवर
महाप्राण निराला जी ने अपनी इस पक्ति के माध्यम से समाज में और जीवन में स्वछँदता
की वकालत की थी ! अपने समय के परिवेश से चार कदम आगे जाकर बुराइयों और संकीर्णताओ
की जटिल बेड़ियों एवं वर्जनाओं को तोड़ने की हिमायत की थी ! उन्होंने
तत्कालीन बंगाल का उद्दाहरण देते हुए १९४५-५० में ही लिख दिया था की इस मानसिकता
को आप क्या कहेंगे की घर की १५ साल की बाल विधवा का विवाह नहीं किया जाता है
दुबारा की ऐसा करने से घर- खानदान के सम्मान को ठेश लगेगी और सामाजिक पतन होगा
किन्तु उसी घर में उस बाल विधवा के साथ जेठ , ससुर, देवर तक अपना मुह काला करते है
और घर खानदान के झूठे सम्मान को बचाने के लिए रोज उस बालविधवा के सम्मान से खिलवाड़
करते है रोज़ उसकी आत्मा को मारने का कृत्या करते है इसके पीछे उनकी भोग विलास वाली
संकीर्ण मानशिकता ही झलकती है और कुछ नहीं "! आज ये और बात है की निराला जी
के टाइम के बंगाल जैसी स्थिति नहीं है देश में फिर भी बहसीपन और जंगलीपन को बढ़ावा
उससे भी कही ज्यादे मिला है अंतर बस इतना है की तब अंधी झूठी - रीति -रिवाज़ के नाम
पर इसे अंजाम दिया जाता था और आज झूठी आधुनिकता के नाम पर, पहले घर के बाड़ी और
चहारदीवारी में ही सुरक्षित नहीं थी नारी क्यू की वह अशिक्षित थी अबला थी और समाज भी
बहुत हद तक दकियानूसी सोच रखता था उसके प्रति , किन्तु आज शिक्षा के बाद और समाज
के आधुनिक होने के बाद भी नारी सुरक्षित नहीं है क्यों की अब घर से बाज़ार तक की
दुरी में अंतर कम हुआ है, और समाज अति आधुनिक ! अभी हाल में बदायूं में जो कुछ भी
घटा वह एक प्रश्नचिन्ह है इस अति भोग विलाश पूर्ण जीवन के आदि होते हुए हमारे
आधुनिक समाज के सभ्य होने पर और प्रदेश में जंगल राज के अभ्युदय पर भी ! आज के
समाज में इस तरह की घटना हमारे संस्कारो के साथ साथ हमारी सोच पर भी
ऊँगली उठा रही है
बदायूं में
हाल में जो कुछ भी हुआ वह सभ्य समाज के लिए बेहद ही शर्मनाक और गंभीर सोचनीय विषय
है 17 वीं सदी जैसी घटना आज के समय में होना इस बात की ओर इसारा करता है की
आधुनिक समाज जितना उन्नति की ओर कदम बढ़ा रहा है , विज्ञान की ओर कदम बढ़ा रहा है
उससे कही ज्यादे पशुता की ओर भी अपने कदम बढ़ा रहा है
उसके भीतर
जितना पा लेने की जान लेने की ललक ब्याप्त है उतनी ही प्याश और तृष्णा
विनाश के ओर
जाने की भी है ! इस्त्री की सुरक्षा के लिए कानून का चाबूक कितना
कारगर साबित होगा जबतक हमारे समाज के भीतर से पशुता, बर्बरता , अहंकार , और
संकीर्णता का अंत नहीं होगा ! निर्भया कांड के बाद इस्त्री सुरक्षा के लिए
देश में कानून की जो ब्यवस्था की गई वह हर तरह से पर्याप्त है एक स्त्री को
सुरक्षा प्रदान करने हेतू ! किन्तु इस क़ानून को हम कहा कहा पर्श में रख कर घूमेंगे
क्यू की एक स्त्री आज न घर में सुरक्षित है न घर के बाहर, वह घर में घर की
चहारदीवारी से लेकर बाथरूम किचन ,बैडरूम, ड्राइंगरूम, छत, पोर्टिको,और
सीढ़ियों पर चढ़ते उतरते भी पुरुष के हिंसा और छेड़ - छाड़ की शिकार हो रही है !
घर के बाहर
स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी , लाइब्ब्रेरी ,टैक्सी ,कार,बस ऑफिस, ट्रैफिक,
मंदिर ,बाजार, ट्रेन,पैदल चलते हुए, गाड़ी ड्राइव करते हुए, सिनेमाहाल में बैठे
हुए, हर जगह उसके साथ दुर्घटना हो रही है वह कही भी सुरक्षित नहीं है ! यह सबसे
बड़ा प्रश्न है हमारे सामने ! देश में निर्भया कांड के बाद जिस त्वरित गति से क़ानून
पास हुआ स्त्री सुरक्षा हेतू उतने ही त्वरित गति से लड़कियों औरतो के साथ एक के बाद
एक घटनाये भी
होनी शुरू
हो गई निर्भया कांड के बाद सिर्फ दिली में ३०० ऐसी घटनाएं घटी, बाकी देश के अंन्य
हिस्सों में इस तरह की घटनाओ का तो जैसे भूचाल सा आ गया और
पुरुष बहसीपन की सारी सीमाये भी लांघने लगा अब अपनी भूख मिटाने
के बाद वह सुबूत भी मिटा रहा है वज़ह ये है की उसे पता है अगर पीड़िता ज़िंदा रही तो
कानून में उसके लिए किस तरह की सजा का प्रावधान है !
इस लिए
कानून से भी कही जरुरी है आधुनिक होते समाज में संस्कार और मुल्ल्यो की स्थापना हो
! परिवर्तन विचारो में आये हमारी सोच बदले हम जितने आधुनिक हो रहें है अंन्य
क्षेत्र में उतने ही आधुनिक हो स्त्री सम्मान के प्रति !
साथ ही इस
बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता की नकारा शासन ब्यवस्था की वजह से भी अंजाम
दिया जा रहा है इस तरह की घटनाओ को !
सपा के
मुखिया माननीय मुलायम सिंह द्वारा आम चुनाव २०१४ की अपनी एक रैली के दौरान यह कहा
जाना की ( ऐसी गलतियां प्रायः हो जाती है ) भी एक खुला संकेत था एक स्वीकृति थी इस
तरह के कुकृत्य करने वालो के लिए क्यू की बदायूं में जो कुछ भी हुआ है मुलायम सिंह
के इस कथन के बाद ही हुआ है ! इतनी बड़ी घटना के बाद भी मुख्यमंत्री अखिलेश जी ने
इसे हल्के में निपटाने का सोचा वह सायद यह भूल गए की बदायूं की यह घटना उनके शासन
काल में उनके ऊपर लगा सबसे बड़ा और बदनुमा दाग है जिसे छुड़ाने में उन्हें बहुत वक्त
लगेगा ! आज़म खान की भैष गायब हुई तो प्रशासन की पूरी ताकत झोंक दी गई भैसो को
ढूंढने में और बदायूँ में जो कुछ घटा उसपर एक लम्बी चुप्पी क्यू साध लिया था
मुख्यमंत्री जी ने क्या उन माशूम बच्चियों का कोई मूल्य नहीं इनकी नज़र में !
यह सर्व
विदित है कि अपने तत्कालीन समाज, परिवेश , न्याय , परंपरा , संस्कृति, सभ्यता
राज्य कि धरोहर,शिक्षा स्त्री के सुरक्षा और सम्मान के प्रति जो राजा चैतन्य नहीं
होता जागरूक नहीं होता सक्रिय नहीं होता उसे इतिहास कभी क्षमा नहीं करता, वर्तमान
उसका कभी सम्मान नहीं करता और दुनिया कि कोई शक्ति उस राजा को उसके पतन से बचा
नहीं सकती ! आज उत्तर प्रदेश कि यही दशा परिलक्षित हो रही है चारो तरफ अराजकता और
जंगल राज कायम हो गया है और बदायूं जैसी घटना एक यक्ष प्रश्न बनकर खड़ी है हमारे
सामने !
द्वारा -
प्रदीप दुबे
pdpjvc@gmail.com
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