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Monday, December 5, 2016

बनारसी साड़ी

                                                        

रेशम के धागों को जरी के डिजाइन मे मिला कर बुनाई से तैयार होने वाली सुन्दर, चमकीली साड़ी को बनारसी रेशमी साड़ी के नाम से आज न केवल पूरा भारत परिचित है बल्की रेशमी बनारसी साड़ियो की अच्छी खासी मांग विदेशों मे भी है.!
अलग अलग रंग बिरंगी रेशमी धागों से नवरंग का समावेश आप सभी को बनारसी साड़ी मे देखने को मिलता है, 6000 से जादा बुनकर बनारसी साड़ी के उद्योग से मुगलों के जमाने से जुडे आ रहे है, एक तरह से ये इनका पुस्तैनी काम है जिसे ये लोग बखूबी करते है.!
बनारसी साड़ी बनारस की पहचान बन चुकी है, जब भी कोई सैलानी कभी बनारस घुमने गया उसे बनारस का पान, बाबा विश्वनाथ मंदिर और बनारसी साड़ी ही सब से पहले लुभाती है! बिना बनारसी साड़ी की खरीदारी किये  शायाद ही ऐसी कोई महिला हो जो बनारस से वापस जाये! बनारसी साड़ी एक विशेष प्रकार की साड़ी है जिसे विवाह आदि शुभ अवसरों पर स्त्रियाँ धारण करती हैं। लेकिन समय के साथ बनारसी साड़ी ने भी अपने रंग रूप और भारीपन मे काफी बदलाव किया है, उत्तर प्रदेश के कई जिलो मे बनारसी साड़ियाँ बनाई जाती हैं। जैसे - चंदौली, बनारस, जौनपुर, आजमगढ़, मिर्जापुर और संत रविदासनगर, लेकिन इसका कच्चा माल बनारस से ही जाता है, ये पारंपरिक काम सदियों से चला आ रहा है और विश्वप्रसिद्ध है। कभी इसमें शुद्ध सोने की ज़री का प्रयोग होता था, किंतु बढ़ती कीमत को देखते हुए नकली चमकदार ज़री का काम भी जोरों पर चालू है। ये वस्त्र कला भारत मे मुग़ल बादशाह के अगमान के साथ ही आई और आज न केवल बनारस मे बल्कि पूरे भारत मे बानारसी साड़ी का अपना एक अलग स्थान और वैभव है .

*बनारसी साड़ी के प्रकार जैसे बूटी, बूटा, कोनिया, बेल, जाल और जंगला, झालर आदि है –---

*बूटी -  बूटी छोटे-छोटे तस्वीरों की आकृति लिए हुए होता है। इसके अलग-अलग पैटर्न दो या तीन रंगो के धागे की सहायता से बनाये जाते हैं और यदि पाँच रंग के धागों का प्रयोग किया जाता है तो इसे पचरंगा (जामेवार) कहा जाता है। यह बनारसी साड़ी के लिए प्रमुख आवश्यक तथा महत्वपूर्ण डिजाइनों में से एक है।

*बूटा –  जब बूटी की आकृति को बड़ा कर दिया जाता है तो इस बढ़ी हुई आकृति को बूटा कहा जाता है। गोल्ड, सिल्वर या रेशमी धागे या इनके मिश्रण से बूटा काढ़ा जाता है। बूटा साड़ी के बॉर्डर, पल्लु तथा आंचल में काढ़ा जाता है
*कोनिया  - जब एक खास प्रकार की (आकृति) के बूटे को बनारसी वस्त्रों के कोने में काढ़ा जाता है तो उसे कोनिया कहते हैं। जिन वस्त्रों में स्वर्ण तथा चाँदी के धागों का प्रयोग किया जाता है उन्हीं में कोनिया को बनाया (काढ़ा) जाता है। यह एक पारम्परिक कला है।
*बेल - ज्यामितीय ढंग से सजाए गए डिज़ाइन होते हैं। इन्हें क्षैतिज, आडे या टेड़े मेड़े तरीके से बनाया जाता है, कभी-कभी बूटियों को इस तरह से सजाया जाता है कि वे पट्टी का रुप ले लें। बेल साडी के किनारे पर लगती है और चार अंगुल में नापी जाती है। 
*जाल और जंगला - जाल एक प्रकार का पैटर्न है, जिसके भीतर बूटी बनाई जाती है तथा इसे जाल - जंगला कहते हैं। जंगला डिज़ाइन प्राकृतिक तत्वों से काफी प्रभावित है। डिज़ाइन के लिए सुनहरी या चाँदी की ज़री का प्रयोग होता है
 *झालर -  बॉर्डर के तुरंत बाद जहाँ कपड़े का मुख्य भाग जिसे अंगना कहा जाता है की शुरुआत होती है वहाँ एक खास डिज़ाइन वस्त्र को और अधिक अलंकृत करने के लिए दिया जाता है, जिसे झालर कहा जाता है। सामान्यतः यह बॉर्डर के डिज़ाइन से रंग तथा मैटीरियल में मिलता होता है।



_______आदि परौहा_______
#Adee Parauha
 

Tuesday, November 8, 2016

एक रंग मात्र नहीं लाल


एक रंग मात्र नहीं लाल...।
कभी ख़ुशी से चेहरा लाल
कभी सुर्ख गुलाबी होठ लाल
तो कभी 
लाल साडी मे लगे वो कमाल
एक रंग मात्र नहीं लाल।
कभी लाल बिंदी माथे पर
कभी लाल चूड़ी हाथो पर
तो कभी
लाल लाली मुस्काये कमाल
एक रंग मात्र नहीं लाल।
डोली लाल, चोली लाल
मेहदी लाल,सिंदूर लाल
तो कभी
शर्म से, हो जाये लाल
एक रंग मात्र नहीं लाल
जब धसे किसी के सिने पर
गोली तो खून भी लाल
लाल किसी का आँखों का
किसी के आँखों के आशु लाल
एक रंग मात्र नहीं लाल।
पग लगा महावर पिया के,
अमर प्रेम की - पी की प्यारी
सदा सुहागन का करके,
सूर्ख सोलह सिगार
जब सोए सेज चिता की,
धू-धू करती जो उठे लपट
रंग उसका भी होता लाल
अंगारी - अंगारी लाल-लाल.
एक रंग मात्र नहीं लाल।
लाल रंग लाल लाल लाल।


_______आदि परौहा_______
#Adee Parauha

देखा था कल चाँद

हा देखा था कल चाँद
बिलकुल तुम्हारे जैसा था,
शांत, शैतान, शीतल , 
प्यारा, पावन, चंचल,
हा देखा था न कल चाँद
बिलकुल तुम्हारे जैसा ही।
चमकता हुआ,
चहकता हुआ,
थोडा हैरान,
थोडा परेशान
फर्क सिर्फ इतना सा था
वो छिप जाता था
बादल के पीछे,
और
तुम पल्लू के पीछे,
हा कल देखा था, चाँद।
बेहद खूबसुरत सा चाँद
चन्दा से चेहरा चाँद मे।
____________________आदि परौहा

सपना

सुनो :
आंखो मे मेरी
इक सपना है 
सच जैसा सपना है ,
जीने का सपना ,
अपने नेह के आंगन मे
खिलती खुशी की
चंपा - चमेली का सपना,
अपनी जीवन बगिया मे :
नन्हे नन्हे नव कोमल
उगते बढते मुस्काते
हमारी निशानी का सपना
हां हम - तुम , हम-तुम
बस हम - तुम हो
एक दूजे के सुख-दुख के
साथी ऐसा सच्चा - सच्चा
सपना ।
_________________आदि परौहा

वजूद

गजब का है :
मेरे दिल मे उसका वजूद
मै खुद से दूर
वो मुझमे मौजूद ।
एक आहट सी है वो
मेरी खामोशियों मे
मै दूर बहुत दूर
वो मुझमे मौजूद
मै ठहर जाऊं तो वो चल पडे
है शख्सियत यों उसकी
मै खुद से दूर
वो मुझमे मौजूद
मुझे परछाईंयो का भरोसा नही आदि और :
वो हमसाया बनकर
मेरे आगे हमरुर ,
गजल की रात है
आओ खोल दे जिरह
कुछ उसका कुछ अपना
सच बोल दें
मेरे दिल मे उसका वजूद :
मै खुद से दूर
वो मुझमे मौजूद ।

_______________________आदि परौहा

बस याद याद याद

है खबर मुझे ऐ मेरी ज़िन्दगी 
दिन -ए - गर्दिश के यूं ही गुजर जायेगे 
जिन राहों से आज रहबर है हमारी 
निशान - ए - कदम दूर - दूर तक नज़र नही आएंगे । 
गर बचेगा पास कुछ तो बस याद याद याद 
बाकी सब झुर्रिया बनकर चेहरे पर उभर आयेंगे ।
वक्त लिए जा रहा है हम अपने कांरवा के संघ :
हम जिस मोड़ पर खड़े है,
आज ओ मोड़ मुड़कर फिर ना आयेंगे ।
आओ जी ले जी भर के आज
कल - कल - होगा , आज ना होगा फिर,
ये फांका- कसी की बे- तकल्लुफी
ये गर्दीशो की यायावरी
फिर ना लौट कर आयेगी ।

______________________आदि परौहा

सुन लो ना

एक अनकही सी बात
सुन लो ना
हो ना मौसम को खबर
बेखबर ऐसे हो लो ना
गीत है, संगीत है 
जिन्दगी हार है, जीत है
राही अकेले तुम
रहे अकेले हम
साथ साथ कदम दो कदम
आओ चल लो ना ।
________________आदि परौहा

तुम्हे छुपा कर

तुम्हे छुपा कर सीने मे
मै दूर कही छुप जाऊं
तुम धड़कन बनकर धड़को मुझमे
मै बन सांस - सांस तुममे
बस जांऊ । 
हो ना कोई ओर - छोर
हो ना कोई जकड़न - बंधन
आशाओं के आसमान पर संग तुम्हारे -
विन पंख - नाप गगन मै आंऊ ।
नीड़ हमारे सपनो का तुमसे
और बस तुम तक ही है
तुम बिन सारे सपने
सारे सपनो के "नीड़'"
मै तिनका - तिनका ,
तिनका कर
बिसरांऊ ।।
_________आदि परौहा

राजनीति

जब चेरि छोड़ नाही बनबो रानी...?
राजनीति वह कुल्टा है जो सत्तर भता----र--र के बाद भी भटकती रहती है ।
और आज उस कुल्टा की दासी पत्रकारिता हो चुकी क्या आप मेरी इस बात से इनकार कर सकते है ?
क्या 1984 के बाद पत्रकार निरपेक्ष रह गया है ? दोनो की बात कर रहा हूं चैनल और प्रिंट मीडिया दोनो की ।
भारत कृषि प्रधान देश है 82 प्रतिशत आबादी भारत के गांवों मे रहती है । 
क्या दो प्रतिशत खबर भी रोज के अखबार मे या न्यूज चैनल पर गांव या किसान की होती है ।
ईईई ससुर के नाती दो कौड़ी के पेड न्यूज चैनल और पत्रकार जेका खातिर दू - चार दिन से फेसबुक, ट्वीटर व्हात्सप्प, पर विद्वत जन सिरफुटौवल कर रहे है इनके भीतर कब्बो गांव, किसान, के लिए कऊनो पत्रकार जागा ।
हमका बतावो लल्ला चुनाव जीतने के बाद कऊनो ससुर मुख्यमंत्री कबहू एक दिन एक रात कवनो गांव मे गुजारा ? नाही ना इका वजह का हुईंहअ तुमका हमका सबका पता हौं ।
सब बिके है नेता अखबार सब ई वजह से अब मांथा पच्ची बन्द करा । और मुर्गी के अंडा जइसन पैदा पेड न्यूज चैनल और ससुर नेता लोगन से दूर रहा ।

Monday, September 19, 2016

1971 दुहराने का वक्त

राहिल साहब 1971 मे भी आपके पास परमाणु बम और अमेरिका जैसा शुभचिन्तक था , फिर भी आपके गिरेबान तक जाकर हमारी साहसी सेना ने आपका भूभाग हासिल करके बंग्लादेश का निर्माण कर दिया था ! और आप पाकिस्तानी घुटनों के बल झूककर करांची को भीख मे मागकर ले गए थे !
कारगिल भी याद ही होगा , कान पकडकर उठक बैठक किए थे फिर गलती ना दोहराने की !!
मिस्टर राहिल आपके परमाणु बम की हकिकत हमे मालूम है हाथी का दांत है ।
इस बार वाला आपका नया शुभचिन्तक भी हमे पता है ।
याद रखिए इस बार घुसेगे तो फिर आपका एक और टुकडा करके ही लौटेंगे बलुचिस्तान आपसे मक्त होने के लिए बेसब्री से हमारी राह देख रहा है !!
ऐसे तो हमे किसी को छेडना पसन्द नही ; पर कोई हमे छेडे तो छोडना भी पसन्द नही !!
हम भारतीय है ; अपने एक नुकसान का बदला एक हजार नुकसान पहुंचाकर अगले को लेना हमे आता है और यहां तो सवाल 17 का है ।
हम रहें ना रहें , हमारा परिवार रहे ना रहे , पर जाते जाते भारत की सुरक्षा को अच्क्षुण कर जायेगे इस धरा से पाकिस्तान शब्द ही मिटा जायेंगे !
अब हमारी सेना का हाथ खोल दिजिए मोदी जी ; बलूच हमे बुला रहा है 1971 दुहराने का वक्त फिर आ गया है ! इस बार भी पहल उनकी है, इस बार भी आमंत्रण उनका ही है; हमे तो बस स्वीकार करने की देर है , !!
सर फरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल मे है !
देखना है जोर कितना
बाजूं-ए-क़ातिल मे है ।??
कलम से साभार :
आदि परौहा ( प्रदीप दुबे )

(( हरि कर राजत माखन रोटी ))

 



भारतीय धर्म संस्कृति के इतिहास में कर्मयोगी कृष्ण का ब्यक्तित्व अद्भूद और आश्चर्य मे डाल देने वाला है ! उनका इतिहास सारगर्भित है , उनकी ऐतिहासिकता के सम्बंध मे विद्वानों मे कोई मतैक्य नही है !  कुछ उन्हे ऐतिहासिक पुरूष मानते हैं तो कुछ अतेन्द्रिय कल्पना का नायक ! इस तथ्य पर आकर सभी एकमत हो जाते है कि - श्रृग्वेद में श्री कृष्ण का उल्लेख आंगिरस के रूप मे किया गया है जिससे ब्यवहारिक जीवन मे मूल्यों की नीव रखने वाले देवकी नंदन एक श्रृषि सिद्ध होते हैं ! साथ ही साथ यह भी स्वीकारा गया है कि छांदोग्य उपनिषद मे वर्णित वासुदेव - देवकी पुत्र भी कृष्ण ही हैं ! महाभारत के प्रारम्भ मे उन्हे पाण्डवों का सखा , मध्य मे कुशल राजनीतिग्य, तथा अंतिम चरण मे उन्हे विष्णू के अवतार के रूप मे दर्शाया गया है ! उत्तरकालीन पुराणों में उनके बाल्यकालीन एवम गोप जीवन सम्बंधी क्रीड़ाओं का पर्याप्त चित्रण मिलता है , कृष्ण की बाललिलाओं , गोपी प्रेम , रासक्रीड़ा का जो चित्रण किया गया है वह हम जनमानस को कृष्ण की ओर बरबस खींचता चला जाता है ! और यह विचारने पर विवश कर देता है कि - पृथ्वी पर निराकार का साकार प्राकट्य ही कृष्ण है ! अंधे कवि सूर ने तो उद्धव गोपी संवाद द्वारा निर्गुण पर सगुण की विजय कराकर निर्गुण की लुटिया ही डूबो दिया है ! श्रीकृष्ण का अवतरण उस निराकार को एक आकार की परिधि मे बांध देने की सुखद, दुर्लभ चेष्टा है ! जिसे निर्गुण समर्थक विद्वतजन रूप-रेख, गुन , से परे मानते हैं ! कुछ मुख पर पोते कुछ हाथ मे लिए माखन , कमर मे छुद्र घंटियों वाली करधनी , पांव मे पैजनी , माथे पर तिलक , सिर पर बेनी मोर मुकुट से सज्जित , उसपर जादुई मुस्कान विखेरते हुए मोती सी दंतुलियों का चमचमाना भला कौन भाग्यहीन होगा जो कृष्ण के इस अद्भुद बाल रूप को बिसार कर निर्गुण ईश्वर की खाली झोली अपने कंधे पर लादेगा ! श्रीकृष्ण का स्वरूप सहज स्वरूप है , ऐसा स्वरूप जो जटिलता की ओर से हमे सहजता की ओर ले जाता है ! उद्दाहरण स्वरूप - श्री कृष्ण ने अगर कंश जैसे पापी का वध किया है तो महाभारत मे बिना शस्त्र के अर्जुन के सारथी के रूप मे भी खड़े हुए हैं ! एक ओर कर्म की प्रधानता पर बल दिया है तो दूसरी ओर अपने पुत्र होने के दायित्व को भी भलीभींति निभाया है ! कंश को मार कर देवकी वासुदेव को अगर काराकार से मुक्त किया है तो मईया यशोदा और बाबा नंद के आंगन मे विविध क्रीड़ाएं करते हुए मईया और बाबा को अपने बाल सुलभ चेष्टाओं का रसपान भी कराया है ! यशोदा मईया को वह सभी सुख प्रदान किया है जिसे जीने जिसे भोगने की हार्दिक इच्छा ( चेष्टा ) प्रत्येक मां की होती है ! जैसे :- " चरन अंगूठा मुख ले गेलत ! नन्दन घरनि गावति , हलरावति, पालना पर हरि खेलत !! " भोर होने पर अपने बाल - गुपाल को जगाते हुए मईया यशोदा कहती हैं : -          " जागिए गोपाल - लाल आनन्द निधि नन्दलाल !         जसुमति कहें बार - बार , भोर भयो प्यारे !! "     आनंद नीधि श्रीकृष्ण के बाल रूप का वर्णन हो और उनकी चतुरता वर्णित न की जाए एेसा असम्भव है कृष्ण मे चतुरता ( विवेक ) का आधिक्य है , इनका यही रूप गोपियों संग सम्पूर्ण जगत को भी सम्मोहित करता है ! इनकी चतुरता अत्यंत गृदय स्पर्शी है , गोपियों ने तो कृष्ण के चतुर सगुण रूप के आगे उद्धव बाबा के निर्गुण ईश की धज्जियां उड़ा दिया :- यथा गोपियों का उद्धव बाबा को एक उलाहना :-                  " काकी भूख गयी मन लाडू सो देखहु चित चेत !                       सूर स्याम तजि को भूस फटकै मधुप तिहारे हेत !!".                 एक समय ऐसा भी आया जब अपने बाल सखा , गोप गोपिका, प्रेयसी राधिका , माता यशोदा, बाबा नन्द सबको छोड़कर ब्रज से कृष्ण को मथुरा जाना पड़ा ! श्री कृष्ण का ब्रज से मथुरा जाना एक प्रकार से बाल रूप से, बाल क्रीड़ाओं से परे होकर कर्म के मार्ग पर पदार्पण है इस मार्ग पर जाते हुए कृष्ण की आंतरिक उर्जा का वाहक राधा रानी का अलौकिक, निहस्वार्थ प्रेम बनता है ! ऐसा प्रेम जिसमे ना शरीर है, ना मन है, ना इच्छा है , ना दोष है, ना पाप है, ना स्वार्थ है , ना बंधन है , ना छुद्र ब्यथा है , ना रोष है, ना तुष्टी है, ना चतुरता है , ना ही आरोप प्रत्यारोप ही है ! सब कुछ आत्मिक , सब कुछ अलौकिक , सब कुछ निहस्वार्थ , है ! कृष्ण को कर्म पथ पर दृढ़ता से चलने की शक्ति का ही नाम राधा है, प्रेम मे बेसुध होकर शुन्य मे चले जाने का ही नाम राधा है ,कर्म पथ पर कृष्ण के पीछे नही वरन उनके आगे खड़ा होकर सही गलत का उन्हे बोध कराना ही राधा हैं ! सायद यही वजह थी कि मथुरा जाने के बाद भी कृष्ण ब्रज को कभी बिसरा नही सके ! यथा : -          "उधौ मोहि ब्रज बिसरत नाही !    हंससुता की सुन्दर नगरी , अरू कुंजन की छांही !!"                   इसमे कोई संसय नही कि - श्री कृष्ण का ब्यक्तित्व ऐतिहीसिक है, सुन्दर है , सर्वग्राह्य है , एक कर्मयोगी का ब्यक्तित्व है , किन्तू मईया यशोदा की तरह हम कृष्ण प्रेमियों के लिए कृष्ण का जो रूप सर्वाधिक प्रिय है वह है उनका बाल स्वरूप ! प्रत्येक कृष्ण प्रेमी कृष्ण के बाल रूप को ही विशेष मानता है ! उनकी बालसुलभ लिलाओं वाला स्वरूप ही सर्वग्राह्य है ! यथा : -   " हरि कर राजत माखन रोटी " ! 

साभार :- प्रदीप दुबे ( आदि परौहा ) !                   

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गरीबी हटाओ देश बचाओ

1971 मे श्रीमती इंदिरा गांधी ने एक नारा दिया था "गरीबी हटाओ देश बचाओ (Abolish Poverty Rescue The Country ) गरीब भारत वासियो की आत्मा को राजनीति का कार्ड बनाकर इस एक नारे की बदौलत 1971 से 1984 तक इंदिरा ने कई फेज मे राज सत्ता पर कायम रहीं किन्तू देश का वह गरीब जिसकी बदौलत जिसके उद्धार हेतु इंदिरा सत्ता पायी वह और गरीब होता गया, उसकी संख्या बढ़ती गयी , इंदिरा का वोट बढ़ता गया पर गरीबी जस की तस बनी रही ! दुखद तो यह रहा की सेकुलर नॉन सेकुलर की एक फैंटेसी एेसी बुन दी गयी कि गरीब जनता समझ ही नही पाई Who is our real माई- बाप In Misses Gandhi Family ?? क्योंकि इंदिरा के इसी गरीबी वाले नारे पर 1971 से 2013 तक गांधी परिवार ने गरीबों को वोट बैक बनाकर लूटा और उनका बेजा इस्तेमाल किया ?? हास्यास्पद अब यह हो गया है कि देश मे गरीबो के लिए दो और रहनुमा पैदा हो गए बुआ और चाचा ऐसे मे गरीब भी दो खेमे मे बट गए सेकुलर, नॉन सेकुलर ! अब इंदिरा का नारा भी अपना फेज जी कर दम तोड़ दिया राहुल बाबा के पास इस समय एक नया नारा आ गया चिथड़े मे मुंह छुपाने के लिए सायद कुछ हद तक कारगर हो यह नारा : मोदी हटाओ देश बचाओ " ! वाह रे सेरनी के घर मे पैदा सियार तुम्हारी सोच को सलाम.
आदि परौहा

खटिया

एक जन आए मुफ्त मे खटिया दे गए !!
एक जन आए मुफ्त मे डाटा दे गए !!
एक जन आए मुफ्त मे मोबाईल दे गए !!
सब जन मिलकर गांव वालो को इस लायक बना दिए कि अब खेती - बाड़ी छोड़कर खटिया पर सुते - सुते देश की तरक्की मे किसान भाईयों का भी सहयोग भी अब लल्लन टाप रहेगा !!
तुम्हारी जय हो उत्तर प्रदेश !!

आदि परौहा

Thursday, August 11, 2016

भारत मे गैर सरकारी कम्पनियों का बढ़ता अत्याचार !!

 भारत मे गैर सरकारी कम्पनियों का बढ़ता अत्याचार !!  
भारत मे किसी गैर सरकारी कम्पनी मे काम करने वाले Employee की दुर्दशा आज की तारीख मे बिल्कुल वैसी ही है जैसे 1947  से पहले तक भारत मे भारतीयों की रही ! गैर सरकारी  कम्पनियों का मनमाना रवैया इस्टइंडिया कम्पनी के रूल रेगुलेशन से कही भी कम नही है ! भारत मे आज तीन श्रेणी मे गैर सरकारी कम्पनियां कार्यरत हैं
1-  प्रथम श्रेणी मे वो कम्पनी हैं जो अपने यहां काम करने वाले इम्प्लाई का शोषण तो करती है पर उन्हे उचित वेतन , पी०एफ० और मेडिकल की सुविधा भी मुहैया कराती हैं ! 
2- दूसरी श्रेणी मे वो कम्पनियां आती है जो काम के साथ साथ अपने ईम्पलाई का , मानसिक , शारिरिक ,और आर्थिक शोषण भी जम कर करती है , एेसी कम्पनियों मे इम्प्लाई के सामने सबसे बड़ी समस्या जो होती है वह टाईम बाऊण्ड की समस्या है एक आदमी से चार आदमी का काम लिया जाता है , कहने को ऑन पेपर 8 घंटे की ड्यूटी दिखाई जाती है पर इम्पलाई से 12 से 18 घंटे काम लिया जाता है ! ओ भी बिना किसी साप्ताहिक अवकाश दिए ! ईके स्वास्थ्य से उसकी सुरच्छा से Employers का कोई लेना देना नही होता है , उनका साफ फण्डा होता है Company Love Turn Over Not Employee,  अगर Employee कम्पनी के किसी नियम को गलत बताकर उसे फॉलो करने से मना करता है तो उसे धमकी भरे शब्दों मे चेतावनी दे दी जाती है- Please Love Your Job Only, Don't try to Enter Fair in the Rool of the Our Company ! इससे भी बात बनती न दिखी तो Employee का Harassment होना शुरू हो जाता है यह तब तक होता है जबतक कि इससे आजिज आकर कर्मचारी स्थिपा ना दे दे इस हरासमेन्ट के पिछे मझोली कम्पनियों का बस एक मकसद होता है लेबर वेलफेयर के झंझट से खुद को मुक्त रखना !
3- तीसरी श्रेणी की कम्पनियों मे वो छुटभईया टाईप की वो कम्पनिया आती है जिनका कोई माई बाप नही होता 5 - 9 लोगो ( कर्मचारियों ) के साथ भी यह काम शुरू कर देती है , यहां कॉल सेन्टर की तरह रोज Interview लिए जाते है और रोज छटनी होती है ! आप कह सकते है यहा दिहाड़ी मजदूरी जैसी तनख्वाह की ब्यवस्था होती है ! एक कर्मचारी से 10 लोगों का काम और 13 घंटे तक काम लिया जाता है , एेसी कम्पनियों मे इनका ओनर खुद को ओनर न दिखाकर डायरेक्टर का पद दिया होता है अपने ही अपनी खुद की पे स्केल तैयार करता है ! और ऑडिट की ऐसी ब्यवस्था कि इनके सारे गलत कामो पर किसी की कभी नजर ही ना जाए !
सब मिलाकर मुझ युवा का जो गैरसरकारी कम्पनियों के द्वारा मानसिक,हरासमेन्ट का स्वयम सिकार बन चुका है, इस गैर सरकारी कम्पनियों के मनमाने रवैये के खिलाफ कलम उठाने का बस एक ही मकसद है आज - कि 1947 के बाद भारत में गैर सरकारी कम्पनियो का स्टार्टअप ( प्रारम्भ ) द्रूतगति से हुआ जितने ही द्रूत गति से इनका स्टार्टप हुआ उतने ही द्रूत गति से रोजगार के अवसर भी बढ़े ! लेकिन सरकार की उदासिनता के चलते इन गैर सरकारी कम्पनियों की अपने कर्मचारियों के प्रति तानासाही भी बढ़ती गयी हम कह सकते हैं एक इस्ट इंडिया कम्पनी भारत से गयी और हजारो स्थानीय भारतीय इस्ट इंडिया कम्पनी का भारत मे अभ्युदय हो गया ! इस अभ्युदय का क्रेडिट सरकार को ही जाता है क्योंकि सरकारी रोजगार के अवसर की कमी के चलते infrastructure ( इनफ्रासट्रेक्चर ) का अभाव बढ़ा इस अभाव का खामियाजा गैर सरकारी कम्पनियों मे काम करने को विवस कर्मचारियों पर पड़ा ! आज स्थिति यह है कि जनसंख्या के आंकड़ो , और  सरकारी नौकरी के अवसर के बीच जमीन आसमान का अंतर है ! अत: बेरोजगारी से बचने के लिए गैर सरकारी कम्पनियों मे काम करने और उनका मनमाना अत्याचार सहने को कर्मचारी मजबूर है ! हर पल वह वहां घुट कर काम करने को मजबूर है ! सरकार बेपरवाह है आखिर क्यो ? यह एक बड़ा सवाल है आखिर सरकार को एेसा कौन सा ब्यक्तिगत फायदा है इन स्थानिय भारतीय इस्टइंडिया कम्पनियों से कि वह इसमे काम करने वाले कर्मचारियों के दु:ख दर्द से बेपरवाह है ! भारत के गांवों को वाई-फाई से जोड़ देने का संकल्प लेने वाली तत्कालीन भारत सरकार से एक सवाल - गांवो को बिजली मुहैया कराने से पहले कैसे जोड़ देगे आप उन्हे वाई-फाई से ? दूसरा सवाल देश के 25 करोड़ बेरोजगार युवावों को रोजगार के अवसर दिए बिना कैसे सफल हो पायेगा आपका स्टार्टअप मेक इन इंडिया का सपना ? क्या 25 करोड़ युवावों की बेरोजगारी , गैर सरकारी कम्पनियों मे हो रहे उनके सोषण को अनदेखा कर देगी वर्तमान भारत सरकार ? गैर सरकारी कम्पनियां जहा हमारे शोषण का कोई क्राईटेरिया ( Criteria )नही होता सबकुछ मनमाना होता है क्या उनपर कोई लगाम कसी जायेगी ? ऐसे कम्पनी मालिक जिन्होने कम्पनी की नीव रखी पर हजार तरह की सरकारी प्रक्रिया से बचने के लिए खुद को ईम्प्लाई दिखाते है क्या उनके लिए कोई मानक बनाया जायेगा या सब कुछ हवा हवाई ही रहेगा ? अगर जरा सी नजर पैनी की जाए तो इसका जो सच सामने आयेगा उसके केन्द्र मे भारत के प्रधानमंत्री का ही चेहरा नजर आता है ! फ्यूचर ऑफ स्टार्टप इन इंडिया तभी सफल होगा जब भारत मे गैर सरकारी कम्पनियों की तानासाही और मनमानी ब्यवस्था पर नकेल कसी जायेगी ! जब उनकी गलत ऑडिट ब्यवस्था की जांच होगी ! छोटी कम्पनी ,बड़ी कम्पनी, मुद्रा ब्यवस्था, लेबर वेलफेयर की पारदर्शिता , कम्पनियों के लूट खसोट ,गैर तरीके के मुनाफा पर सरकार सतर्क होगी !
15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ था, आजादी की खुशी क्या होती है इसे शब्दों में बयान कर पाना मुश्किल है ! हमारे आदरणिय प्रधानमंत्री जी से अनुरोध है कि 5 दिन बाद अपना स्वतंत्रता दिवश भारत सेलिब्रेट करने वाला है , आजादी की इस सालगिरह पर भारत के वर्तमान युवावों को भी आजादी दिलवा दीजिए -
बेरोजगारी से आजादी !    
गैरसरकारी छुटभैया, बड़भैया, और मझोली , स्थानिय भारतीय इस्टइंडिया कम्पनियों के अत्याचार से आजादी ! सच कहता हूं प्रधानमंत्री जी अगर इस स्वतंत्रता दिवश पर यह उपहार आपने दे दिया हम युवावो को 75 percent आपका स्टार्टअप मेक इन इंडिया का सपना सच हो जायेगा और हमारा आपर भरोसा भी बढ़ जायेगा !           
साभार  कलम से :- आदि परौहा
                           ( प्रदीप दूबे )         
दिनांक  :-         10/08/2016