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Friday, October 31, 2014

भारत तुम्हारी अस्मिता से बड़ा कैसे हो सकता है किसी इमाम का न्योता




न्योता चाहे ब्यक्तिगत हो या सार्वजनिक दोनों में एक बात का हमेसा ख्याल रखा जाता है की कही ऐसे ब्यक्ति को आमंत्रित न कर दिया जाए जिससे ख़ुशी का माहौल बोझिल और शिकायत भरा हो जाने का डर हो ! इस लिए हमेसा न्योता देने से पहले घर में आपस में एक बार चर्चा जरूर होती है ! भारत भी तो हम सबका घर है क्यों की यहाँ लोकतंत्र प्रणाली कायम है जिस प्रकार घर में हर सदश्य घर का अहम अनिवार्य हिस्सा होता है फिर भी घर में घर के लोगो की सहमति के द्वारा एक मुखिया का चुनाव किया जाता है इस उद्देश्य से की घर पर आपत्ति संकट आने पर या कोई बड़ा फैसला लेते समय यह मुखिया घर के मान सम्मान सुरक्षा शांति सौहार्द का विशेष रूप से ध्यान रखेगा सबको ख़ुशी मिले समृद्धि मिले ऐसे हितकर फैशले लेगा उसी प्रकार भारत में जनता के लिए जनता के द्वारा चुना गया जनता का एक शासन ब्यवस्था काम करती है जिसमे जनता के मुखिया का प्रावधान है यह मुखिया जनता के सुख दुःख के साथ साथ राष्ट्र हित को ध्यान में रख कर कार्य करता है यह राष्ट्रपति का मुख्य सलाहकार भी होता है इसे प्रधानमंत्री कहा जाता है ! अब यह कैसे सम्भव है की राष्ट्र धर्म से बढ़ कर किसी ब्यक्ति विशेष का किसी समुदाय विशेष का धर्म हो जाए ! राष्ट्रधर्म से छेड़छाड़ करके व्यक्तिविशेष या समुदाय के धर्म को महत्वा दिया जाना एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए खतरा है ! राष्ट्र से बढ़ कर ब्यक्ति विशेष नहीं हो सकता न ही कोई समुदाय विशेष ही ! आज जब पाकिस्तान की नापाक हरकत की वजह से सीमा पर तनाव है बकरीद पर अरनिया में बेगुनाह मुसलमान भाइयो पर पाकिस्तान द्वारा गोली बारी करके बकरीद की खुसी में खलल डाली गई मातमी माहौल पैदा किया गया उससे समूचा  भारतीय मुसलमान आहात है ऐसे में इमाम सैयद अहमद बुखारी द्वारा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को अपने बेटे सैयद शाबान के दस्तारबंदी में न्योता क्या मुस्लिम समुदाय पचा पायेगा साथ ही क्या इसे राष्ट्र की अस्मिता के लिए एक बड़ा सवाल समझा जाये क्यों की मन बुखारी का मिया सरीफ को भेजा जाने वाला न्योता ब्यक्तिगत है किन्तु अगर परवेज मुसरफ आने को तैयार हो गए तो उनके आने का मार्ग भारत से होकर ही तय होगा और पाकिस्तान से दिल्ली की यह उनकी यात्रा विश्व्जगत में सवाल खड़ा करेगी क्यों की पाकिस्तान से दिल्ली तक नवाज सरीफ का आना बुखारी के लिए ब्यक्तिगत हो सकता है किन्तु भारत के लिए काफी उथल पुथल भरा होगा !  क्योकि  जब बात आती है राष्ट्र अस्मिता की राष्ट्र धर्म की  तो वहां पर ब्यक्ति विशेष गौड़ हो जाता है व्यक्ति विशेष का धर्म गौड़ हो जाता है राष्ट्र की अस्मिता अहम हो जाती है राष्ट्र का धर्म अहम हो जाता है ! एक अरब पचीस करोड़ की आबादी वाले इस देश में रोज ब्यक्तिगत आयोजन होते है खुशिया मनाई जाती है और यह भी तय माना जा सकता है की सभी लोग प्रधानमंत्री को आमंत्रित नहीं करते न ही प्रधानमंत्री के लिए यह सम्भव ही है ! बुखारी साहब ने भी नहीं किया मोदी को आमंत्रित तो यह कोई बड़ी बात नहीं है ! किन्तु जब कोई ब्यक्ति विशेष धर्म विशेष प्रधानमंत्री से सलाह मसविरा किये बिना अपने पडोशी देश के प्रधानमंत्री को सीधे आमंत्रित कर दे अपने व्यक्तिगत कार्यक्रम में वह भी ऐसे पडोशी देश के प्रधानमंत्री को जिससे वर्तमान सम्बन्ध सौहार्द पूर्ण नहीं है और जिसके द्वारा सीमा पर हमला जारी है तो ऐसे में वह राष्ट्र धर्म पर प्रश्न चिह्न उठा देता है राष्ट्र की अस्मिता को ताक पर रखने का कार्य कर देता है ! घर के मुखिया को घर के कार्यक्रम में निमंत्रण की कोई जरुरत नहीं होती लेकिन घर में बाहर से किसे आमंत्रित करना है इसपर घर के सदश्यों द्वारा मुखिया से एक बार सलाह मसविरा जरूर होना चाहिए था क्यों की यह बात  करांची से दिल्ली तक की यात्रा की है जो किसी भी दृष्टिकोड से आम बात नहीं हो सकती ! बीते कुछ दिनों पहले भारत से बात करने से पहले कट्टर धर्मगुरुओ से बात करने की वजह से ही भारत पाकिस्तान की शांति को लेकर बैठक नहीं हो पाई थी फिर भारत द्वारा एक धर्मगुरु का न्योता मिया सरीफ को क्या सन्देश देता है इमाम बुखारी साहब के बेटे सैयद शाबान बुखारी की दस्तारबंदी में भी तो कुछ ऐसे ही लोगो के शामिल होने के आसार है !


दिल्ली स्थित ज़ामा मस्जिद के इमाम सैयद अहमद बुखारी साहब आप एक धर्म विशेष के मुखिया है जिस धर्म विशेष का हम सम्मान और आदर करते है किन्तु आपका भी एक दायरा है बेहतर होता आप उस दायरे का लिहाज़ करते और इस बात से इतेफाक रखते की लोकतंत्र प्रणाली वाले हमारे राष्ट्र के मुखिया की क्या अहमियत है राष्ट्र की अस्मिता के दृष्टिकोण से ! मिया परवेज़ मुसर्रफ को आमंत्रण भेजने से पहले क्या प्रधानमंत्री के साथ सलाह मसविरा होना अनिवार्य नहीं था ! क्या आपको नहीं लगता की बकरीद के पाक मौके पर हमारे बेगुनाह मुस्लिम भाइयों की पाकिस्तानी सेना द्वारा हत्या की गई , क्या आपको नहीं लगता की परवेज़ मुसर्रफ साहब के दामन पर बकरीद के दिन हुए अरनिया के लोगो की हत्त्या का दाग है और खून के छींटे भी ! आखिर आप हमारे भारतीय मुसलमान भाइयों को क्या सन्देश देना चाहते है ! क्या आप उन्हें ये जताना चाहते है की जिसने अपने दामन पर अरनिया के बेगुनाहो के खून के छींटे लिए हुए है वह कातिल आपके ब्यक्तिगत ख़ुशी का साथी है आपका मेहमान है ! इमाम बुखारी साहब भले मौका ख़ुशी का है आपके लिए , भले यह आपका ब्यक्तिगत कार्यक्रम है भले यह कार्यक्रम 1665 से होता आ रहा है किन्तु इस बार यह कार्यक्रम सवाल खड़ा कर रहा है आपके निमंत्रण के प्रति आपके दिल में भारत के अस्मिता के प्रति साथ ही समस्त भारतीय मुसलमान भाइयो के प्रति !
बुखारी साहब आपके फैसले को हम यहाँ राजनितिक तूल नहीं दे रहे है किन्तु राष्ट्र की अस्मिता से जोड़कर जरूर देख रहे है और बात जब राष्ट्र के अस्मिता की आई है तो मै आपको अरनिया के निर्दोष लोगो का चेहरा भी याद दिलाना चाहता  हूँ , बकरीद पर खुसी की जगह मातमी चीख भी सुनाना चाहता हूँ और आपको ले जाना चाहता हूँ जम्मू कश्मीर के अरनिया क्षेत्र तक और उन 45 पुलिस चौकियों तक जिसे लहूलुहान किया था पाकिस्तानी सेना ने बकरीद के दिन ! मै आपको आपके राष्ट्र धर्म की याद दिलाना चाहता हूँ क्योकि राष्ट्र धर्म से बड़ा न कोई ब्यक्ति होता है न कोई धर्म और राष्ट्र की अस्मिता के साथ छेड़छाड़ करने का हक़ भी किसी को नहीं है ! लोकतंत्र में जनता का साशन जनता के लिए जनता द्वारा चुना जाता है अतः बुखारी साहब आपको मिया परवेज़ मुसर्रफ को न्योता भेजने से पहले एक बार जनता द्वारा जनता के लिए चुने गए जनता के साशन का प्रतीक यानी भारत के प्रधानमंत्री से सलाह मसविरा जरूर करना चाहिए था साथ ही उस धर्म विशेष के लोगो की आस्था का मान भी रखना चाहिए था जिनके मुखिया के तौर पर आप जाने जाते है यानी हमारे मुस्लिम समुदाय के भाई बंधुओ से भी एक चर्चा करनी चाहिए थी !

द्वारा -
प्रदीप दुबे

Friday, October 17, 2014

समृद्ध युवा शक्ति देश के विकास की प्रथम कड़ी




19 सदी का प्रथम चरण भारत जब चरम गुलामी कि बेड़ियों से जकड़ा था विकास की बात करना दूर - दूर तक सम्भव नहीं था ! ऐसे में एक युवा दार्शनिक ( दुनिया जिसे सन्याशी कहती हैं ) ने सदियों से गुलाम भारत के विकसित भारत बनने की बात कहीं थी और इस गुलाम से विकसित बनने की यात्रा में उसने भारत के युवाओ से जुड़ने का आह्वान किया था ! उस दार्शनिक को पता था की एक दिन भारत को विकास की चोटी पर ले जाने का श्रेय युवाओ को ही मिलना हैं ! भारत को समृद्ध भारत बनाने में सिर्फ देश का युवा ही सक्षम हैं ! यानी युवा को उसने ऊर्जा का श्रोत माना था और इस श्रोत का सतत सकारात्मक प्रयोग करने पर बल दिया था जी हा मै बात कर रहा हूँ स्वामी विवेकनन्द जी का एक ऐसा दार्शनिक जिसने युवा भारत का विकसित भारत का सपना देखा था युवा शक्ति युवा ऊर्जा  का देश के विकास हेतु सकारात्मक दोहन करना चाहा था ! हम जब उस युवा दार्शनिक की बातो पर सपने पर जाते हैं तो आत्मग्लानि के बोध के अलावा कुछ नहीं बचता हमारे पास क्यों की 4 जुलाई 1902 के बाद आज तक यानी 112  साल बीत जाने के बाद भी भारत में युवा शक्ति का सही मायने में देश के विकास हेतु सहयोग नहीं लिया गया न ही युवा शक्ति की दिशा दशा की तरफ क्रांतिकारी निर्णय ही लिया गया ! आज भी उस दार्शनिक की बात अधूरी हैं उसका सपना अधूरा हैं क्यों की युवा शक्ति का सदुपयोग अधूरा हैं ! और यही वज़ह है की स्वतंत्रता के 68 साल बाद भी भारत का विकास अधूरा है ! 

उन्नीसवी सदी के प्रथम चरण के बाद आज जब दुबारा इक्कीसवीं सदी के प्रथम चरण में विकशित भारत की बात शुरू हुई है तो युवा शक्ति के स्वस्थ दोहन की बात भी हो रही है ऐसे में आइये जाने कैसे युवा शक्ति का सदुपयोग करके भारत को विकसित बनाया जा सकता हैं - 
कैसे तय की जा सकती हैं विकास की यात्रा और कैसे देश की युवा ऊर्जा देश के काम आ सकती हैं ???? 
अगर हम युवा की परिभाषा गढ़ने चले तो हमारे सामने जो मानक आता है वह 18 से 40 की उम्र सीमा के ब्यक्ति को युवा के रूप परिभाषित करता है ऐसा करने के पीछे पुख्ता वजह भी है क्यों कि इस उम्र सीमा के ब्यक्ति के भीतर जोश, ज़ज़्बा,ऊर्जा, शक्ति, प्रबल कर्तब्यनिष्ठा, नए - नए प्रयोग परिक्षण करने की क्षमता निहित होती है,!  तर्क - वितर्क करना , त्वरित निर्णय लेना, हर काम को ऊर्जा के साथ करना , क्रांति और विकास का नया अध्याय लिखना, समय के साथ कदम दर कदम चलने का साहस एक युवा की सबसे बड़ी पूँजी और पहचान होती है  ! सही शब्दों में अगर कहे तो किसी देश के सर्वांगिड़ विकास का मॉडल होता है उस देश का युवा ! अगर सही मायने में युवा ऊर्जा, युवा शक्ति का उपयोग देश के विकास हेतु किया जाए तो युवा ऊर्जा देश का स्वस्थ भविष्य तय करने में सहायक शिद्ध होगी !  

आज जब एक बार पुनः विकसित भारत का सपना देखा जा रहा है तो ऐसे में भारत की युवा शक्ति को अनदेखा करना बड़ी भूल होगी ! क्यू की विकास की यात्रा बिना जोश , जज़्बे और युव ऊर्जा के सम्भव नहीं है ! यह बात 112 साल पहले   जितनी प्रासंगिक थी आज भी उतनी ही प्रासंगिक है ! 112  साल पहले भी युवा ऊर्जा को अनदेखा किया गया था और आज भी किया जा रहा है आज भी देश की युवा ऊर्जा भटकाव की तरफ है पलायन की तरफ है कुंठा और हीनताबोध की शिकार है ! देश का युवा यानी 18  से 40  वर्ष की उम्र भटकाव, फ्रस्ट्रेशन, आत्ममंथन, और उथल - पुथल भरी सोच एवं पलायन का सिकार है वह सिर्फ अपने लिए सोचने में अपने जीवन का ऊर्जावान समय जाया कर रहा है ! घोर हताशा - निराशा  के चलते वह देश के विकास की बात करने से कतराता है ! किन्तु युवा को लेकर जब हम देश की वर्तमान स्थिति वर्तमान पहलू पर नज़र डालते है तो पाते है की देश के भीतर वर्तमान समय में युवा के प्रवेश हेतु असंख्य विकल्पों के दरवाज़े खुले है आज देश का युवा राजनीति से लेकर अन्य हर क्षेत्र में जाने को स्वछन्द है मैंने स्वतंत्र शब्द न प्रयोग कर के स्वछन्द शब्द का प्रयोग किया युवा के लिए इसके पीछे जो वज़ह है वह यह की स्वछन्द युवा पर अंकुश नहीं है और न ही उसकी स्वस्थ दशा दिशा तय है जबकि उसके लिए विकल्प बहुत सारे है ऐसे में युवा ऊर्जा भटकाव का शिकार हो रही है वह हर क्षेत्र में यकायक बिना सुनियोजित तरीके के कूद पड़ती है और सुनियोजित न होने की वज़ह से, स्वस्थ मार्गदर्शन न मिलने की वजह से वह जल्द ही उस क्षेत्र से ऊब भी जाती है ऐसे में या तो वो पलायन कर लेती है अथवा उस क्षेत्र में असफल साबित होती है यह असफलता उसमे हीनभावना भर देती है ! अगर स्वछन्द की जगह युवा ऊर्जा स्वतंत्र हो , सुसंगठित हो , स्वस्थ मार्गदर्शन दिया जाए उसे उसके मनोभाव और इक्षाशक्ति को सही मायने में समझा जाए उसके जोश को सही दिशा में गति दी जाए तो यह युवा शक्ति सफलता के झंडे गाड़ देगी उस हर क्षेत्र में जहां उसका स्वस्थ दोहन किया जाएगा ! 
आज युवा शक्ति के भीतर जोश तो है लेकिन जोश के साथ आक्रोश भी है जोश के साथ आक्रोश का होना ठीक बात नहीं है ! किन्तु यह आक्रोश निराधार नहीं है इसके पीछे असंख्य वजहें भी है ! युवाओ के लिए देश में संसाधनों की कमी नहीं है न ही सम्भावनाओ की ही कमी है अगर कमी है किसी चीज की तो वह है युवा शक्ति को उन संसाधनो के दोहन के लिए सुनियोजित ढंग से तैयार न किये जाने की ! युवा ऊर्जा का समुचित उपयोग देशहित में तभी हो सकता है जब उनके भीतर से आक्रोश ख़त्म किया जाए ! और उन्हें प्लेटफार्म के साथ - साथ स्वस्थ वातावरण भी उपलब्ध कराया जाए !  इसके साथ ही उनमे सकारात्मक सोच विकसित की जाए यह कार्य केवल और केवल देश की बुज़ुर्ग पीढ़ी के द्वारा ही सम्भव है यानी पहाड़ी नदी जैसा जोश रखने वाला युवा को अनुभवी लोगो के कुशल दिशानिर्देशन की जरुरत है ! जरुरत है युवा शक्ति को सही दिशा में मोड़ने की ! आज हमारे देश में युवा पीढ़ी और बुज़ुर्ग अनुभवी पीढ़ी के बीच एक मूक द्वन्द चल रहा है जो देश के विकास की यात्रा में सबसे बड़ा बाधक बना हुआ है ! अनुभवी पीढ़ी सहज नहीं है युवा पीढ़ी के प्रति और युवा पीढ़ी अनुभवी पीढ़ी के सामने गिड़गिड़ाना नहीं चाहती अतः एक ईगो का शिकार है तो दूसरा कुंठा का और दोनों के बीच का ये अंतर्द्वंद ख़त्म हुए बिना युवा ऊर्जा का सही दिशा में प्रयोग असंभव है ! 
युवा शक्ति को पलायन से रोकने की जरुरत है क्यों की हाल के कुछ वर्षो में तेज़ी से यह देखने को मिला है की भारत की युवा मेधा युवा शक्ति विदेशो में पलायन कर रही है वजह साफ़ है वहाँ  उसे अपनी मेधा अपनी ऊर्जा का सकारात्मक प्रयोग करने हेतु प्लेटफॉर्म मिल रहा है ! 
किन्तु युवा शक्ति के युवा मेधा के पलायन से देश की क्षति भी हो रही है ! साथ ही देश के विकास पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न भी खड़ा हो रहा है ! 

भारत को अगर इस प्रश्नचिह्न पर रोक लगानी है और तय करनी है विकासशील से विकसित की श्रेणी में खड़े होने की यात्रा तो तय करना होगा नए सिरे से देश हित में युवा शक्ति का सकारात्मक दोहन ! रोकना होगा मेधा का पलायन ! युवा वैज्ञानिक, युवा खिलाड़ी , युवा व्यवशाई, युवा नेता , युवा किसान, युवा साहित्यकार, युवा कलाकार , युवा बेरोजगार , युवा महिलाओ , के मनोभाव और  जरूरतों पर गंभीर होना होगा ! उन्हें, निराशा और हताशा से बाहर निकलना होगा उनकी मेधा उनकी ऊर्जा का सही दिशा में दोहन करना होगा, 18 वर्ष से 40 वर्ष की युवा ऊर्जा का सतर्कता से स्वस्थ तरीके से सही दिशा में सहयोग लेना होगा इस आयु वर्ग के लिए विशेष नीति बनाई जानी होगी ! अनुभवी प्रौढ़ पीढ़ी का स्वस्थ दिशानिर्देशन भी देना होगा युवा ऊर्जा को और उन्हें संसाधनो से जोड़ने पर भी बल देना होगा ! 
युवा पीढ़ी को अनुभव कराना होगा की वह देश के विकास की प्रथम और सबसे ताकतवर कड़ी है ! बिना उसके सहयोग के देश की उन्नति सम्भव नहीं है ! न ही सम्भव है विकासशील भारत का विकसित बनना ही
किसी ने सही कहा है उस ओर ज़माना चलता है जिस ओर जवानी ( युवा शक्ति ) चलती है ! तो 
आईये 112 साल बाद ही सही एक युवा दार्शनिक का सपना साकार करे , भारत को युवा ऊर्जा के सकारात्मक दोहन द्वारा विकसित देश बनाने की ओर अग्रसर हो ! युवा मेधा युवा ऊर्जा के आधार पर 
एक युवा ऊर्जावान विकसित भारत का निर्माण करने का संकल्प ले ! युवाओ के भीतर निर्माण का सपना सजाये, उन्नति का बीज बोयें, सही मायने में इसके बाद ही स्वस्थ विकसित भारत का सपना साकार होगा , देश का हर युवा निर्माण का प्रतीक बनेगा, निर्माण का प्रयाय बनेगा और पूरी निष्ठां के साथ, ईमानदारी के साथ अपना सौ प्रतिसत देश को देगा ! 
द्वारा - 
प्रदीप दुबे

Sunday, October 12, 2014

बलिया की माटी से ज्ञानपीठ सम्मान तक प्रोफेसर केदार नाथ सिंह - (इंटरब्यू)

                                                                               

"ज्ञानपीठ सम्मान के लिए नाम की घोषणा होने के बाद हिंदी भाषा के मूर्धन्य कवि एवं आलोचक प्रोफ़ेसर केदार नाथ सिंह से हुए  टेलीफोनिक इंटरब्यू में उन्होंने साझा किया.!
अपने जन्म स्थान - चकिया, बलिया (उत्तर प्रदेश) से लेकर बनारस में शिक्षा अर्जन और जे . एन . यू . में अपने सेवा काल  से लेकर राष्ट्रिय - अंतरराष्ट्रिय  मुद्दो पर कई विचार, जीवन में आये तमाम उतार चढ़ाव  और भावनात्मक पहलुओं पर भी खुलकर बोले, और अपनी माटी को कई बार किया नमन !,
वर्तमान इराक मुद्दे पर भी एक साहित्यकार के नजरिये से रखी अपनी बात और अपने विचार !  मानवता को सुरक्षित रखने पर बल दिया ! ईराक के लिए परेशानी के इस दौर में भारत की तरफ से स्वस्थ पहल हो ऐसा सुझाव भी दिया ! वर्तमान भारत सरकार के विकास मार्ग को दूरदर्शी सोच बताया उन्होंने कहा कि विकास का मार्ग धीमी गति से हो तो सफलता मिलती है किन्तु त्वरित गति से होने पर विनास का रास्ता भी बना देता है ,
इसलिए नई मोदी सरकार की नीतियों पर टिप्पणी  करने के बजाय थोड़ा धैर्य रखना होगा हमे साथ ही जो गलत लगे उसपर अपनी अभिब्यक्ति भी देनी होगी ! साहित्य और समाज का अटूट रिस्ता है , साहित्यकार को अपने धर्म और दाइत्वा के प्रति सजग होना होगा ! क्यों की समाज में बहुत कुछ बदल रहा है ! "
यहाँ प्रस्तुत है मेरे और प्रोफेसर केदारनाथ सिंह के बीच हुआ सवाल जवाब ===================================================
"प्रश्न 1 - अपने जन्म स्थान,माता-पिता,पारिवारिक पृष्ठभूमि एवं प्रारंभिक शिक्षा के बारे में कुछ बताये.................. ?? "
उत्तर - प्रोफेसर केदार नाथ सिंह..................
"मेरा जन्म चकिया गाँव , बलिया जिला (उत्तर प्रदेश ) में 1934 में एक किसान परिवार में हुआ"
पिता का नाम - श्री डोमन सिंह .
माता का नाम - लालझरी देवी था !
"परिवार की आय का श्रोत कृषि था , पिता जी पेसे से किसान थे ! मेरी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के ही प्राथमिक विद्यालय से हुई ! मै अपनी माता के आशीर्वाद की छत्र छाया में लम्बे समय तक रहा 2 वर्ष पूर्व 102 साल की उम्र में उनका निधन हुआ ! मेरा गाँव और महान समाजवादी चिंतक एवंम समाजवादी  आंदोलन के प्रणेता जय प्रकाश नारायण जी का गाँव एक दूसरे से लगा हुआ ही है !  हम दोनों के बीच एक समानता भी है जयप्रकाश जी ने बलिया छोड़ विहार को अपनी कर्मभूमि बनाया और मैंने उच्च शिक्षा अर्जन करने के बाद दिल्ली को अपनी कर्म स्थली बनाया ! यह बलिया जिला का अंतिम पूर्वी छोर और अति पिछड़ा इलाका है , गंगा और सरयू नदी की गोद में बसा है यह इलाका ! और आज भी मुझे इसकी माटी उतनी ही प्यारी है जीतनी एक बच्चे को अपनी माँ की गोद ! मेरे जीवन मेरे साहित्य में आपको इसकी झलक मिल जायेगी ! "
..................
"प्रश्न 2  - उच्च शिक्षा कहा से और किस विषय में अर्जित किया आपने,  किस विसय-किस विधा पर किया आपने अपना शोध कार्य पूरा , कौन रहे आपके शोध गुरु ? अपने किसी निकटतम  मित्र के विषय में भी बताये जिनसे रहा आपका आत्मीय और गहरा सबंध जीवन भर ..................?? "
उत्तर - प्रोफेसर केदार नाथ सिंह ..................
8 वी क्लास के बाद आगे की शिक्षा के लिए मै  बनारस चला गया ! मैंने 9 वी से लेकर इंटरमीडिएट तक की एवमं अपनी उच्च शिक्षा और शोध कार्य बनारस में  ही पूरा किया !
अपनी उच्च शिक्षा मैंने बनारस हिन्दू विस्वविद्यालय ( बी. एच. यू. ) से पूरा किया ! यह पिता जी का सपना था जिसे मैंने साकार किया !
मैंने अपनी उच्च शिक्षा हिंदी विषय में पूरी की ! क्यों की हिंदी भाषा के प्रति बचपन से मुझे गहरा लगाव रहा ,और लिखने पढने की रूचि भी उद्दाहरण स्वरुप आप मेरी कविता- मेरी भाषा के लोग को देख सकते है - "
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मेरी भाषा के लोग
मेरी सड़क के लोग हैं
सड़क के लोग सारी दुनिया के लोग
पिछली रात मैंने एक सपना देखा
कि दुनिया के सारे लोग
एक बस में बैठे हैं
और हिंदी बोल रहे हैं
फिर वह पीली-सी बस
हवा में गायब हो गई
और मेरे पास बच गई सिर्फ़ मेरी हिंदी
जो अंतिम सिक्के की तरह
हमेशा बच जाती है मेरे पास
हर मुश्किल में
कहती वह कुछ नहीं
पर बिना कहे भी जानती है मेरी जीभ
कि उसकी खाल पर चोटों के
कितने निशान हैं
कि आती नहीं नींद उसकी कई संज्ञाओं को
दुखते हैं अक्सर कई विशेषण
पर इन सबके बीच
असंख्य होठों पर
एक छोटी-सी खुशी से थरथराती रहती है यह !
तुम झांक आओ सारे सरकारी कार्यालय
पूछ लो मेज से
दीवारों से पूछ लो
छान डालो फ़ाइलों के ऊंचे-ऊंचे
मनहूस पहाड़
कहीं मिलेगा ही नहीं
इसका एक भी अक्षर
और यह नहीं जानती इसके लिए
अगर ईश्वर को नहीं
तो फिर किसे धन्यवाद दे !
मेरा अनुरोध है
भरे चौराहे पर करबद्ध अनुरोध
कि राज नहीं भाषा
भाषा भाषा सिर्फ़ भाषा रहने दो
मेरी भाषा को ।
इसमें भरा है
पास-पड़ोस और दूर-दराज़ की
इतनी आवाजों का बूंद-बूंद अर्क
कि मैं जब भी इसे बोलता हूं
तो कहीं गहरे
अरबी तुर्की बांग्ला तेलुगु
यहां तक कि एक पत्ती के
हिलने की आवाज भी
सब बोलता हूं जरा-जरा
जब बोलता हूं हिंदी
पर जब भी बोलता हूं
यह लगता है
पूरे व्याकरण में
एक कारक की बेचैनी हूं
एक तद्भव का दुख
तत्सम के पड़ोस में !!
"मेरे गुरु  थे श्रध्येय आचार्य हज़ारी प्रसाद दिवेदी जी, मैंने उन्ही के अंडर में बनारस हिन्दू विस्वविद्यालय से अपना शोध कार्य भी पूरा किया ! मेरे शोध का विषय ( टॉपिक) था आधुनिक हिंदी कविता में विम्ब विधान ( काब्य विम्ब ) !  साथ ही सिकेश लाल भी मेरे गुरु रहे ! एक नाम ऐसा भी है मेरे जीवन में, जिसका मेरे साथ गुरु शिष्य से लेकर परम मित्र तक का अटूट और आत्मीय रिस्ता है ! वह नाम है नामवर सिंह का ! जो  मेरे गुरु भी रहे और परम मित्र भी क्यों की इनके और मेरे बीच उम्र की समानता थी ! इनका मुझपर काफी प्रभाव भी रहा इनका ! आगे चलकर हमारी मित्रता और प्रगाढ़ हुई और रिस्तेदारी में बदल गई नामवर सिंह मेरे समधी भी है ! आप कह सकते है गुरु  शिष्य से शुरू हुआ हमारा  रिस्ता मित्रता में बदला फिर रिश्तेदारी में बदला और जीवन भर के लिए प्रगाढ़ हो गया ! "
..................
"प्रश्न ३ =  बलिया की माटी से ज्ञानपीठ सामान तक का यह सफर कैसा रहा आप के लिए ?  कितने उतार चढ़ाव आये जीवन में ? कहा से शुरू किया था आप ने शिक्षक के रूप में अपनी पहली नौकरी अपना पहला कार्य ? अपनी जीवन संगिनी और बच्चो के विषय में कुछ बताये ..?? आज जब ज्ञानपीठ सम्मान की घोषणा हुई है आप के लिए तो ऐसे में हम जानना चाहेंगे कि अबतक कितने और सम्मान मिल चुके है आपको आपके द्वारा हिंदी भाषा के लिए की गई रचनाओ पर ? हिंदी भाषा की किस विधा पर किया है आपने काम , अपनी कुछ प्रमुख रचनाओ के बारे में बताये ..................??? "
उत्तर - प्रोफेसर केदारनाथ सिंह ..................
"काफी उतार चढ़ाव आया मेरे जीवन में , बलिया के अति पिछड़े गाँव के एक किसान परिवार में जन्म से लेकर जे0 एन0 यू0 तक की यात्रा और आज ज्ञानपीठ सम्मान तक सहज नहीं रहा सबकुछ मेरे लिए ! बहुत कुछ पाया तो बहुत कुछ खोया भी मैंने जीवन में !  "
"मैंने 1969 में अपनी पहली नौकरी पडरौना के एक कॉलेज में शुरू किया था,यह मेरे जीवन में आर्थिक संकट का भी दौर था 1969 से 1975 तक मैंने तमाम संकटो और दुखो का सामना किया पडरौना में नौकरी के दौरान ही मेरी पत्नी गंभीर रूप से वीमार पड़ी, मैंने अपनी क्षमता के अनुसार उनका इलाज करवाया किन्तु वह काफी न था उनके लिए और उनकी वीमारी बढ़ती चली गई इसी बीच मै कुछ दिनों के लिए दिल्ली आया और उधर पत्नी की तबियत ज्यादे बिगड़ गई मै चाह कर भी उन्हें बचा न पाया !  यह मेरे जीवन की अपूर्णीय क्षति रही जिसकी भरपाई मै नहीं कर पाया ! पत्नी के निधन के 36 साल बाद भी मै उन्हें विस्मृत नहीं कर पाया उनकी मौजूदगी हर पल हर स्थिति में मह्सुश करता हूँ मै ,   पत्नी के निधन के बाद पत्नी की रिक्तता खली वैवाहिक जीवन शुरू करू ऐसी कोई इक्षा नहीं हुई मेरी , तबसे अकेला रहा ! मैंने यह प्रण लिया की जीवन में दुबारा मै विवाह नहीं करूँगा, मैंने अपने इस प्रण को पूरा भी किया मै अविवाहित रहा ! मेरी 5  बेटियां और एक बेटा है ! बेटियां उच्च शिक्षा प्राप्त कर, शादी के बाद शिक्षण कार्य में है और बेटा दिल्ली में ही भारत सरकार की उच्च सेवा में है ! शुरुआती दिनों में मैंने रीडर के रूप में दो वर्ष तक गोरखपुर के सेंटएंड्रयूज कॉलेज में भी अपनी सेवा दिया  था ! वर्ष 1976 के अंत में मेरी नियुक्ति जे0 एन0 यू0 में हुई ! यहाँ पर मैंने 1976 से लेकर वर्ष 2000 यानी अपने रिटायरमेंट तक अपनी सेवा दिया ! और अब तो दिल्ली का मुझसे और मेरा दिल्ली से कुछ ऐसा रिस्ता बन गया है की मै दिल्ली का ही होकर रह गया अभी वर्तमान में मै ए- 88\3, एस.एफ.एस. फ्लैट, साकेत, नई दिल्ली-110017-में रह रहा हूँ ! अपने कार्यकाल के दौरान ही मैंने कई ख्यातिलब्ध रचनाये भी की और इसके लिए मुझे कई सम्मान भी मिले! चर्चित कविता संकलन तीसरा सप्तकके सहयोगी कवियों में से मै भी एक हूँ ! मैंने हिंदी भाषा की दो विधा पर कार्य किया यह विधाएँ है ="
"कविता विधा , आलोचना विधा ! "
मेरे मुख्य कार्य और मेरी मुख्य कृतियाँ है .
कविता संग्रह :=
"अभी बिल्कुल अभी, जमीन पक रही है, यहाँ से देखो, बाघ, अकाल में सारस, उत्तर कबीर , तालस्ताय और साइकिल ! "
आलोचना =
कल्पना और छायावाद, आधुनिक हिंदी कविता में बिंबविधान, मेरे समय के शब्दमेरे साक्षात्कार ! "
मैंने कुछ एक संपादन भी किया है जैसे =
"ताना-बाना (आधुनिक भारतीय कविता से एक चयन), समकालीन रूसी कविताएँ, कविता दशक, साखी (अनियतकालिक पत्रिका), शब्द (अनियतकालिक पत्रिका) ! "
अबतक मुझे जो सम्मान मिले है वह इस प्रकार है =
"मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, कुमारन आशान पुरस्कार, जीवन भारती सम्मान, दिनकर पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, व्यास सम्मान, और हाल में 20 जून 2014  को मुझे ज्ञानपीठ पुरस्कार देने की घोषणा की गई है ! "
..................
प्रश्न 4 := एक साहित्यकार के लिए वर्तमान में विश्व की मौजूदा बड़ी समस्या क्या है ...?? ईराक में इस समय जो कुछ घट रहा है उससे विश्व और भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा सकारात्मक - नकारात्मक दोनों पहलुओं पर संछेप में किन्तू सटिक विचार और सुझाव दीजिये .................????
उत्तर = प्रोफेसर केदारनाथ सिंह ..................
"पूरे विश्व में मानवता आज खतरे में है इससे इंकार नहीं किया जा सकता ! ईराक में जो कुछ भी घट रहा है वह चिंता का विषय है , साथ ही दुर्भाग्यपूर्ण है पूरी दुनिया के लिए ! किन्तू जो कुछ भी ईराक के विषय में हमे इस समय दिखाया जा रहा है , समझाया जा रहा है वह सतही सच है बाहरी श्रोतों से आ रही खबरे है अंदर का सच हमे नहीं दिखाया जा रहा है, जबतक अंदर का सच सामने नहीं आएगा भ्रम की स्थिति बनी रहेगी ईराक को लेकर पूरी दुनिया में ! ईराक कभी दुनिया की सबसे समृद्ध और उन्नत सभ्यता का देश रहा है , विश्व की सबसे सभ्य-समृद्ध सभ्यता ईराक में ही फली - फूली थी ! साहित्यकार की दृष्टि से देख रहा हूँ  तो मन द्रवित हो जा रहा है ईराक में घटने वाली घटनाओ को लेकर , आज भारत को अपनी उदारनीति का परिचय देना होगा ईराक के प्रति और संकट की इस घडी में उसे सहयोग करना होगा ! भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को आगे आना चाहिए आज ईराक की रक्षा के लिए ! भारत और विश्व से एक गुजारिश है ईराक के अंदर के सच को समझे और न्यायपूर्ण नीति अपनाये ! "
प्रश्न 5  = नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी वर्तमान भारत सरकार के बारे में अपना विचार दे वर्तमान भारत सरकार विकसनीति पर कुछ कहे ...................?????
उत्तर = प्रोफेसर केदारनाथ सिंह ..................
वर्तमान भारत सरकार के विकास मार्ग को दूरदर्शी सोच मानना होगा देश में समस्याएं जड़ जमा चुकी है उनसे निजात पाने के लिए अगर जनता ने आपको चुना है आप पर विस्वास किया है तो आप को भी जनता के विस्वास पर खरा उतारना होगा वार्ना देश विनाश की तरफ बढ़ जायेगा ! साथ ही जनता साहित्यकार और प्रबुद्ध जान को भी अपने हक़ के प्रति सजग होना होगा मुखर होना होगा जहा गलत लगे विरोध का स्वर उठाना होगा !  विकास का मार्ग धीमी गति से हो तो सफलता मिलती है, किन्तु इतनी भी धीमी गति न हो की विकास की तस्वीर धुँधली ही रह जाए ! यह भी याद रखना होगा द्रुत गति से विकास होने के चक्कर में गति इतनी द्रुत न हो जाए की देश विनास के रास्ते पर चल पड़े ! मोदी सरकार के सामने चुनौती ज्यादे है और जनता की अपेक्षाएं भी बहुत है उनसे , अतः मोदी सरकार को दोनों के लिए दूरदर्शिता और पारदर्शिता का परिचय देना होगा !  नई मोदी सरकार की नीतियों पर टिप्पणी  करने के बजाय थोड़ा धैर्य रखना होगा हमे साथ ही जो गलत लगे उसपर अपनी अभिब्यक्ति भी देनी होगी !"
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प्रश्न 6  = साहित्य और समाज का वर्तमान में कैसा तालमेल है ...? वर्तमान में साहित्यकार अपनी भूमिका अपने दाइत्व के प्रति कितना सजग है कितना न्याय कर पा रहा है वह साहित्य और समाज के साथ ..................??????
उत्तर = प्रोफेसर केदारनाथ सिंह ..................
साहित्य और समाज का अटूट रिस्ता है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता ! हां वर्तमान में साहित्यकार के सामने चुनौतियां ज्यादे है उसे अपने दाइत्वा के प्रति सतर्क होना होगा तभी समाज के साथ और साहित्य के साथ न्याय कर पायेगा वह ! समाज के बिना साहित्य की कल्पना नहीं हो सकती और समाज है तो साहित्य की भूमिका से भी इंकार नहीं किया जा सकता ! प्रायः कहा जा रहा है साहित्यकार ख्याति पाने के लिए साहित्य रच रहा है वर्तमान में , किन्तू यह काल्पनिक सत्य जैसा है वर्तमान में भी अच्छी रचनाये हो रही है ,!  "
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प्रश्न  7 = बलिया की माटी ने प्रोफेसर केदारनाथ सिंह को जन्म दिया ... प्रोफेसर केदारनाथ सिंह ने क्या दिया बलिया की माटी को ...??  बलिया की माटी को कैसे धन्यबाद ज्ञापित करेंगे ज्ञानपीठ सम्मान पाने के बाद .......................???????
उत्तर = प्रोफेसर केदारनाथ सिंह ..............
"जिस माटी में जन्म लिया है मैंने उस माटी को धन्यबाद ज्ञापित करना धृष्टता होगी मेरी , अपमान होगा उस माटी का क्योंकि माँ और माटी के लिए तो सिर्फ सम्मान कमाया जाता है , नाम कमाया जाता है , और मुझे खुद पर फक्र है की मैंने अपनी माटी के लिए दोनों कमाया है ! दुनिया में अपनी माटी का मान बढ़ाया है अपनी क्षमता के अनुसार !! "
द्वारा -
प्रदीप दुबे