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Thursday, May 29, 2014

1971 के बाद जम्मू - कश्मीर



                                                                                 


1971 के बाद जम्मू - कश्मीर
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आज जब नए सिरे से तूल पकड़ रहा है भारतीय संविधान में जम्मू - कश्मीर के लिए विशेष रूप से प्रावधान किया गया अनुच्छेद  370, और इसके वजूद में रहने न रहने

पर बहस हो रही है तो ऐसे में एक आम भारतीय नागरिक होने के नाते मै भी अपने कुछ विचार साझा करना चाहता हूँ और इस मुद्दे को  25 मार्च सन 1971 से जोड़कर इसपर प्रकाश डालना चाहता हूँ  !
25 मार्च 1971 इतिहास का एक ऐसा पन्ना जिसे दुनिया एक नए देश बांग्लादेश के अभ्युदय के रूप में याद करती है एक ऐसे देश के अभ्युदय के रूप में जिसको अस्तित्व में लाने का और हज़ारो हज़ार बेगुनाहो के भविष्य को दिशा देने का श्रेय भारत को जाता है !

बांग्लादेश का अभ्युदय दो कारणों से हुआ एक तो पाकिस्तान का अपने ही एक भूभाग पूर्वी पाकिस्तान पर वहां के स्थानीय माशूम और बेगुनाह लोगो के बीच टेरर पैदा करना, उन्हें वहां से खदेड़ना और उन बेगुनाहो को  भारत में सरणार्थियो के रूप में सरण लेने को विवश करना !

दूसरा पूर्वी पाकिस्तान के स्थानीय लोगो को वहां से खदेड़ कर पूर्वी पाकिस्तान के साथ साथ जम्मू - कश्मीर पर भी अपना पूर्ण कब्ज़ा जमाने की मंसा थी !
पाकिस्तान की इस नियत को भापकर और बेगुनाह लोगो को न्याय दिलाने के लिए 1971 में भारत ने जो भूमिका निभाई कहना गलत न होगा की आज तक पाकिस्तान भारत की उस भूमिका से अपने भीतर उत्पन्न हुई तिलमिलाहट से उबर नहीं पाया है !

1947 में भारत पाकिस्तान का जो बटवारा हुआ और 14अगस्त 1947 को पाकिस्तान के  भूभाग एवं सीमा रेखा की जो घोषणा हुई  निश्चित रूप से पाकिस्तान उस बटवारे और उस सीमा रेखा से संतुष्ट नहीं था क्यू की उसकी मंशा पूर्वी पाकिस्तान के साथ - साथ जम्मू कश्मीर को भी अपने झंडे तले रखने की थी ! राजा हरी सिंह का आधी रात को पाकिस्तान भागने और अपनी रियासत जम्मू-कश्मीर का पाकिस्तान में विलय की चाल इसी कड़ी के अंतर्गत शामिल था दुर्भाग्य पाकिस्तान का की यह विलय संभव नहीं हो सका और उसे मुह की खानी पड़ी !

अपनी इस चाल के सफल न होने के बाद दुबारा पाकिस्तान ने एक कूटनीतिक चाल चली और पूर्वी पाकिस्तान में वहां के लोगो के भीतर दहसत और डर पैदा करना शुरू किया 1947 से लेकर 1968,69.और 70, तक पूर्वी पाकिस्तान पर इस उद्देस्य से कहर बरपाता रहा की वह वहां से भाग कर भारत में सरण लेंगे उनके ऐसा करने पर भारत प्रतिक्रिया ब्यक्त करेगा और भारत के प्रतिक्रिया बयक्त करते ही पाकिस्तान को युद्ध का मौका मिल जाएगा इस मौके के बाद पाकिस्तान जम्मू - कश्मीर पर कब्ज़ा कर लेगा ! अफगानिस्तान की सीमा को छुते हुए पश्चिमी पाकिस्तान से लेकर जम्मू - कश्मीर , पूर्वी पाकिस्तान तक एक क्षत्र उसका अपना राज्य होगा क्यू की पाकिस्तान को जम्मू - कश्मीर का भारत में होना 1947 से ही गवारा नहीं था ! वह मुग्लिस्तान चाहता था पश्चिमी पाकिस्तान से  जम्मू - कश्मीर लगायत पूर्वी पाकिस्तान तक अपना कब्ज़ा, अपना झंडा चाहता था !

1947 से 1969,70  तक एक लम्बी त्रासदी झेलने के बाद  इस त्रासदी के बिरुद्ध आवाज़ उठाने की कूबत अपने बीच लाने का पूर्वी पाकिस्तान में रह रहे लोगो ने  जो जज्बा दिखाया उस जज्बे को सही ठहरा कर जब भारत ने पूर्वी पाकिस्तान के हक़ के लिए उसे सहयोग करने की अपनी सहमति जताई और उनके आंदोलन को दिशा देने का निर्णय लिया तो पाकिस्तान को मानो अपने मन की मुराद पूरी होते हुए जान पड़ी उसने बिना बिलम्ब के पूर्वी पाकिस्तान में इस मनसे के साथ सेना उतार दिया की वह भारत के उस भूभाग को जो 1947 में कूटनीति के द्वारा भी उसका न हो सका को पाकिस्तान में मिला लेगा , और तीसरी दुनिया इस रणनीति में उसके अगल- बगल या साथ खड़ी होगी ! किन्तु यहाँ भी उसकी मनसा सफल नहीं हो सकी और उसे अपने अतिमहत्वपूर्ण भूभाग से हाथ धोना पड़ा , भारत के सहयोग से उसे जो करारी सिकश्त मिली और 25 मार्च 1971 में जिस प्रकार बांग्लादेश का अभ्युदय हुआ यह  पाकिस्तान के मुह पर एक ऐसा करारा तमाचा था भारत की ओर से जिसकी चोट, जिसकी तिलमिलाहट अबतक बनी हुई है पाकिस्तान के भीतर !

1947 से 70 तक तो पाकिस्तान ने जम्मू - कश्मीर के पाकिस्तान में विलय और मुग्लिस्तान के एकक्षत्र निर्माण हेतु अपनी कूटनीतिक गतिविधि जारी रखा  और इसमें तीसरी दुनिया को अपना रहनुमा अपना पक्षधर मानता रहा ! किन्तु 25 मार्च 1971 की अपनी सिकश्त और क्षति के बाद उसने एक अलग राह अख्तियार किया जम्मू - कश्मीर के मामले में उसने आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देना शुरू किया साथ ही जम्मू - कश्मीर के स्थानीय मुस्लिम कटरपंथियों और चरमपंथियों को अपने साथ जोड़ना शुरू किया उन्हें यह सपना दिखा कर की एक दिन आतंकवादी गतिविधि से त्रस्त होकर यहाँ से अल्पसंख्यक समुदाय पलायन करने को मजबूर होजायेगा और चरमपंथी कट्टरमुस्लिम    नेता अपने लिए एक अलग देश के रूप में जम्मू - कश्मीर की मांग करेंगे दुनिया के सामने वह जम्मू - कश्मीर में शांति बहाली की बात रखकर भारतीय सविधान के अनुच्छेद 370 का दुरूपयोग भी कर सकेंगे !

आज जिस तरह उमर अब्दुल्ला साहब अपने भाषणो में कह रहे है की अगर 370 नहीं तो जम्मू-कश्मीर नहीं इसका साफ़ मतलब है की 1971 के बाद पाकिस्तान के सह पर एक अलग देश के रूप में जम्मू-कश्मीर के निर्माण का जो सपना जो ख्वाब इन चरमपंथी कटरपंथी लोगो को दिखाया गया यह उसी चेन की अगली कड़ी है ! अब्दुल्ला परिवार हमेसा गद्दार की भूमिका में रहा है भारत के प्रति , और हमेसा अपने भीतर ये मनसा रखता आया है की जिस दिन जम्मू - कश्मीर का अलग देश के रूप में निर्माण हो जाएगा इस परिवार को नए देश के वज़ीरे आला के रूप में पदभार ग्रहण करने का मौक़ा मिलेगा !
इसी वज़ह से जम्मू - कश्मीर से कश्मीरी पण्डितो को ढूंढ़-ढूंढ़- कर भगा दिया गया ! हमेसा 370 को मुद्दा बनाया जाता रहा है !, अब्दुल्ला परिवार के  साशन में बने रहते हुए भी हज़ार बार भारतीय झंडे को जलाया गया , आतंकवाद को बढ़ावा दिया गया , कश्मीरी पंडितो को बेघर किया गया ,जो आज भी  पाकिस्तान की भाषा बोलता है ! जिसकी हुकूमत तानासाही हुकूमत के तौर पर जानी  जाती है वहां के लोगो के बीच और कश्मीरी पंडितो के लिए !  जम्मू - कश्मीर के भारत का अभिन्न अंग होते हुए भी जम्मू-कश्मीर में कही भारत नहीं दिखता इस तरह चरमपंथियों ने वहां माहौल बनाया हुआ है ! ! आज भारत के लिए मुद्दा 370 जितना बड़ा है उतना ही बड़ा मुद्दा है अब्दुल्ला परिवार भी है जिसका रिमोट कंट्रोल आज भी पाकिस्तान के हाथ में है और जिसे हर पल पाकिस्तान संचालित करता है

अनुच्छेद 370 पर बहस करने से पहले भारत सरकार को 25 मार्च  1971 को भी एक बार गौर से स्मरण करना होगा क्यू की भारत ने बांग्लादेश के निर्माण पर जो मुहर लगाई थी और पाकिस्तान को उसकी कूटनीतिक चाल से पराजित किया था उस पराजय का बदला लेना 1971 से लेकर अबतक पाकिस्तान का ध्येय बन चूका है ! वह हर हाल में जम्मू - कश्मीर के भीतर अस्थिरता बनाये रखना चाहता है जम्मू - कश्मीर की शांति को भंग   करते रहना चाह रहा है ! वहां के चरमपंथियों के साथ मिलकर आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है जिससे आम जनजीवन त्रस्त है , भूख , और बेरोजगार की भयावह स्थिति उत्पन्न हो चुकी है इससे मुक्ति के लिए युवा हाथो में हथियार पकड़ने को विवस है ! और अपने लिए शांति की मांग करते हुए अलग नियम - कानून के साथ अपनी जिंदगी बसर कर रहे है ! आज पाकिस्तान का मनसा जम्मू-कश्मीर पर कब्ज़ा करने की नहीं है बल्कि एक नए देश के रूप में जम्मू-कश्मीर का अभ्युदय चाहता है पाकिस्तान, और इसके लिए अब्दुल्ला परिवार हमेसा अग्रणी भूमिका निभाता आ रहा है क्यू की जब जम्मू - कश्मीर का अलग देश के रूप में गठन होगा उसकी सत्ता की बाग़-डोर अब्दुल्ला परिवार के ही हाथ में होगी ,

बेहतर होगा 370 पर बहस के साथ - साथ अब्दुल्ला परिवार की गतिविधि पर भी नज़र रखी जाए क्यू की जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है ! इसके साथ खिलवाड़ करने का किसी को हक़  नहीं , इसकी शांति सुरक्षा को जिस भी तत्व से खतरा है उस तत्व के प्रति भारत सरकार को गंभीर होना होगा ! धरती के इस स्वर्ग के साथ छेड़ - छाड़ करने वाले अराजकतत्वो को सबक सीखाना होगा ! उमर अब्दुल्ला का यह कहना बहुत गंभीर मायने रखता है भारत के लिए की 370 नहीं तो जम्मू-कश्मीर नहीं आखिर ऐसा कह कर उमर अब्दुल्ला अपनी कौन सी चाल को अंजाम देना चाहते है इसपर गंभीरता से सोचना होगा भारत सरकार को ! क्यू की अनुच्छेद 370 के तार को 25 मार्च 1971 के बाद हमेसा सह-मात और सह से जोड़कर देखता रहा है पाकिस्तान और अब्दुल्ला परिवार !

द्वारा 
 प्रदीप दुबे
pdpjvc@gmail.com

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