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Monday, September 19, 2016

(( हरि कर राजत माखन रोटी ))

 



भारतीय धर्म संस्कृति के इतिहास में कर्मयोगी कृष्ण का ब्यक्तित्व अद्भूद और आश्चर्य मे डाल देने वाला है ! उनका इतिहास सारगर्भित है , उनकी ऐतिहासिकता के सम्बंध मे विद्वानों मे कोई मतैक्य नही है !  कुछ उन्हे ऐतिहासिक पुरूष मानते हैं तो कुछ अतेन्द्रिय कल्पना का नायक ! इस तथ्य पर आकर सभी एकमत हो जाते है कि - श्रृग्वेद में श्री कृष्ण का उल्लेख आंगिरस के रूप मे किया गया है जिससे ब्यवहारिक जीवन मे मूल्यों की नीव रखने वाले देवकी नंदन एक श्रृषि सिद्ध होते हैं ! साथ ही साथ यह भी स्वीकारा गया है कि छांदोग्य उपनिषद मे वर्णित वासुदेव - देवकी पुत्र भी कृष्ण ही हैं ! महाभारत के प्रारम्भ मे उन्हे पाण्डवों का सखा , मध्य मे कुशल राजनीतिग्य, तथा अंतिम चरण मे उन्हे विष्णू के अवतार के रूप मे दर्शाया गया है ! उत्तरकालीन पुराणों में उनके बाल्यकालीन एवम गोप जीवन सम्बंधी क्रीड़ाओं का पर्याप्त चित्रण मिलता है , कृष्ण की बाललिलाओं , गोपी प्रेम , रासक्रीड़ा का जो चित्रण किया गया है वह हम जनमानस को कृष्ण की ओर बरबस खींचता चला जाता है ! और यह विचारने पर विवश कर देता है कि - पृथ्वी पर निराकार का साकार प्राकट्य ही कृष्ण है ! अंधे कवि सूर ने तो उद्धव गोपी संवाद द्वारा निर्गुण पर सगुण की विजय कराकर निर्गुण की लुटिया ही डूबो दिया है ! श्रीकृष्ण का अवतरण उस निराकार को एक आकार की परिधि मे बांध देने की सुखद, दुर्लभ चेष्टा है ! जिसे निर्गुण समर्थक विद्वतजन रूप-रेख, गुन , से परे मानते हैं ! कुछ मुख पर पोते कुछ हाथ मे लिए माखन , कमर मे छुद्र घंटियों वाली करधनी , पांव मे पैजनी , माथे पर तिलक , सिर पर बेनी मोर मुकुट से सज्जित , उसपर जादुई मुस्कान विखेरते हुए मोती सी दंतुलियों का चमचमाना भला कौन भाग्यहीन होगा जो कृष्ण के इस अद्भुद बाल रूप को बिसार कर निर्गुण ईश्वर की खाली झोली अपने कंधे पर लादेगा ! श्रीकृष्ण का स्वरूप सहज स्वरूप है , ऐसा स्वरूप जो जटिलता की ओर से हमे सहजता की ओर ले जाता है ! उद्दाहरण स्वरूप - श्री कृष्ण ने अगर कंश जैसे पापी का वध किया है तो महाभारत मे बिना शस्त्र के अर्जुन के सारथी के रूप मे भी खड़े हुए हैं ! एक ओर कर्म की प्रधानता पर बल दिया है तो दूसरी ओर अपने पुत्र होने के दायित्व को भी भलीभींति निभाया है ! कंश को मार कर देवकी वासुदेव को अगर काराकार से मुक्त किया है तो मईया यशोदा और बाबा नंद के आंगन मे विविध क्रीड़ाएं करते हुए मईया और बाबा को अपने बाल सुलभ चेष्टाओं का रसपान भी कराया है ! यशोदा मईया को वह सभी सुख प्रदान किया है जिसे जीने जिसे भोगने की हार्दिक इच्छा ( चेष्टा ) प्रत्येक मां की होती है ! जैसे :- " चरन अंगूठा मुख ले गेलत ! नन्दन घरनि गावति , हलरावति, पालना पर हरि खेलत !! " भोर होने पर अपने बाल - गुपाल को जगाते हुए मईया यशोदा कहती हैं : -          " जागिए गोपाल - लाल आनन्द निधि नन्दलाल !         जसुमति कहें बार - बार , भोर भयो प्यारे !! "     आनंद नीधि श्रीकृष्ण के बाल रूप का वर्णन हो और उनकी चतुरता वर्णित न की जाए एेसा असम्भव है कृष्ण मे चतुरता ( विवेक ) का आधिक्य है , इनका यही रूप गोपियों संग सम्पूर्ण जगत को भी सम्मोहित करता है ! इनकी चतुरता अत्यंत गृदय स्पर्शी है , गोपियों ने तो कृष्ण के चतुर सगुण रूप के आगे उद्धव बाबा के निर्गुण ईश की धज्जियां उड़ा दिया :- यथा गोपियों का उद्धव बाबा को एक उलाहना :-                  " काकी भूख गयी मन लाडू सो देखहु चित चेत !                       सूर स्याम तजि को भूस फटकै मधुप तिहारे हेत !!".                 एक समय ऐसा भी आया जब अपने बाल सखा , गोप गोपिका, प्रेयसी राधिका , माता यशोदा, बाबा नन्द सबको छोड़कर ब्रज से कृष्ण को मथुरा जाना पड़ा ! श्री कृष्ण का ब्रज से मथुरा जाना एक प्रकार से बाल रूप से, बाल क्रीड़ाओं से परे होकर कर्म के मार्ग पर पदार्पण है इस मार्ग पर जाते हुए कृष्ण की आंतरिक उर्जा का वाहक राधा रानी का अलौकिक, निहस्वार्थ प्रेम बनता है ! ऐसा प्रेम जिसमे ना शरीर है, ना मन है, ना इच्छा है , ना दोष है, ना पाप है, ना स्वार्थ है , ना बंधन है , ना छुद्र ब्यथा है , ना रोष है, ना तुष्टी है, ना चतुरता है , ना ही आरोप प्रत्यारोप ही है ! सब कुछ आत्मिक , सब कुछ अलौकिक , सब कुछ निहस्वार्थ , है ! कृष्ण को कर्म पथ पर दृढ़ता से चलने की शक्ति का ही नाम राधा है, प्रेम मे बेसुध होकर शुन्य मे चले जाने का ही नाम राधा है ,कर्म पथ पर कृष्ण के पीछे नही वरन उनके आगे खड़ा होकर सही गलत का उन्हे बोध कराना ही राधा हैं ! सायद यही वजह थी कि मथुरा जाने के बाद भी कृष्ण ब्रज को कभी बिसरा नही सके ! यथा : -          "उधौ मोहि ब्रज बिसरत नाही !    हंससुता की सुन्दर नगरी , अरू कुंजन की छांही !!"                   इसमे कोई संसय नही कि - श्री कृष्ण का ब्यक्तित्व ऐतिहीसिक है, सुन्दर है , सर्वग्राह्य है , एक कर्मयोगी का ब्यक्तित्व है , किन्तू मईया यशोदा की तरह हम कृष्ण प्रेमियों के लिए कृष्ण का जो रूप सर्वाधिक प्रिय है वह है उनका बाल स्वरूप ! प्रत्येक कृष्ण प्रेमी कृष्ण के बाल रूप को ही विशेष मानता है ! उनकी बालसुलभ लिलाओं वाला स्वरूप ही सर्वग्राह्य है ! यथा : -   " हरि कर राजत माखन रोटी " ! 

साभार :- प्रदीप दुबे ( आदि परौहा ) !                   

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