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Monday, September 19, 2016

1971 दुहराने का वक्त

राहिल साहब 1971 मे भी आपके पास परमाणु बम और अमेरिका जैसा शुभचिन्तक था , फिर भी आपके गिरेबान तक जाकर हमारी साहसी सेना ने आपका भूभाग हासिल करके बंग्लादेश का निर्माण कर दिया था ! और आप पाकिस्तानी घुटनों के बल झूककर करांची को भीख मे मागकर ले गए थे !
कारगिल भी याद ही होगा , कान पकडकर उठक बैठक किए थे फिर गलती ना दोहराने की !!
मिस्टर राहिल आपके परमाणु बम की हकिकत हमे मालूम है हाथी का दांत है ।
इस बार वाला आपका नया शुभचिन्तक भी हमे पता है ।
याद रखिए इस बार घुसेगे तो फिर आपका एक और टुकडा करके ही लौटेंगे बलुचिस्तान आपसे मक्त होने के लिए बेसब्री से हमारी राह देख रहा है !!
ऐसे तो हमे किसी को छेडना पसन्द नही ; पर कोई हमे छेडे तो छोडना भी पसन्द नही !!
हम भारतीय है ; अपने एक नुकसान का बदला एक हजार नुकसान पहुंचाकर अगले को लेना हमे आता है और यहां तो सवाल 17 का है ।
हम रहें ना रहें , हमारा परिवार रहे ना रहे , पर जाते जाते भारत की सुरक्षा को अच्क्षुण कर जायेगे इस धरा से पाकिस्तान शब्द ही मिटा जायेंगे !
अब हमारी सेना का हाथ खोल दिजिए मोदी जी ; बलूच हमे बुला रहा है 1971 दुहराने का वक्त फिर आ गया है ! इस बार भी पहल उनकी है, इस बार भी आमंत्रण उनका ही है; हमे तो बस स्वीकार करने की देर है , !!
सर फरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल मे है !
देखना है जोर कितना
बाजूं-ए-क़ातिल मे है ।??
कलम से साभार :
आदि परौहा ( प्रदीप दुबे )

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