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Saturday, May 10, 2014

भारतीय राजनीती मे राहु काल

                                                                                 


भारतीय राजनीती मे राहु काल  
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१२५ करोड़ जनता  पर भरी राहु की सवारी- राहु और केतु मनुष्य को समस्याएं देने, उन्हें तबाह करने, उन्हें किसी न किसी तरह से नुकसान पहुंचाने के लिए ही होते हैं,
अधिकांश व्यक्ति राहु-केतु से पीड़ित रहते हैं। ऐसे जातकों के लिए शिव की पूजा करना सर्वथा लाभकारी है। इसके साथ ही छोटे-छोटे उपाय करें, तो राहु-केतु निस्तेज होंगे शिव भक्त बड़े उत्साह से हर साल श्रावण मास की प्रतीक्षा करते हैं। सत्यम् शिवम् और सुंदरम् के प्रतीक भगवान शिव सभी जीवों के लिए परम कल्याणकारी माने जाते हैं। इनके शिव नाम में पूरा ब्रह्मांड समाया हुआ है। दरअसल राहु और केतु कुंडली में कालसर्प योग बनाते हैं। यह ऐसा योग है, जो आपके बनते हुए कामों में बाधा डाल देता है।
राहु केतु दोनों पापी ग्रह हैं । राहु खुफिया पाप तो केतु ज़ाहिरा पाप है।
ज्योतिष के अनुसार कुछ विशेष प्रकार के ग्रहो का मानव जीवन पर बहुत जादा प्रभाव रहता है उसे हम अच्छा तो नहीं मानते फिर भी उसकी महत्ता तो है हे  अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ के अनुसार हमारे सौर मंडल में आठ ग्रह  हैं - बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, युरेनस और नेप्चून
सूर्य कि परिक्रमा करने वाले ग्रहो में शनि कि कक्षा षष्ट है। वैज्ञानिकों का मानना है कि शनि के 20 उपग्रह  हैं, जबकि पहले के खगोलशास्त्रियों के अनुसार इसके केवल 9 उपग्रह हैं
पूरी ज्योतिष नौ  ग्रहो , बारह राशियों, सत्ताईस नक्षत्रों और बारह भावों पर टिकी हुई है।  भारत अट्ठाईस राज्यों और सात केन्द्र शासित प्रदेशों का एक संघीय गणराज्य है पर टिकी हुई है जिसमे 125 अरब की जनसँख्या एक राष्ट्रपति एक प्रधानमंत्री बहुत सारे मंत्री मुख्यमंत्री और राज्य मंत्री अगर यहाँ तुलना की जाये ग्रहो और मंत्री मंडलों तो पाया जायेग सूर्य - प्रधानमंत्री समान्तर है लकिन अगर सूर्य और प्रधानमंत्री की गजह या उन पर केतु सवार हो जायेग तो जो फल मानव जाती पर केतु का पाया जाता है वही फल यहाँ सूर्य और प्रधानमंत्री पर भी पाया जायेग,  अगर आज की
राजनीति मे हम इन ग्रहो को एक एक राजनेता मान ले तो तो बात बहुत हद तक साफ हो जाये गी, और मेरे कुछ कहे बिना भी आप बातो को बड़ी आराम  से समझ  पायेगे.!
जिस प्रकार पूरा भ्रमांड राहु से त्रश्त है उसी प्रकार भारतीय लोकतंत्र  मे रुहु  रूपी नेता या एक विशिस्ट परिवार जो राहु से भी जादा घातक या खतरनाक है सभी को तंग  किया  है सत्ता के  मद मे चूर मदमस्त हाथी की तरह बेफिक्र और लोमड़ी से भी जादा धूर्त इनकी प्रसंशा मे कई युग बीत जाये फिर भी इनकी राहु की महिमा और उनके कारनामे समाप्त नहीं  हो गे
भारतीय राजनीति या भ्रमांड के सारे ग्राह - ग्रहो ख़ास तौर पर मेरा इशारा (राहु - केतु ) के कुचक्र और उस मे फसती जनता से है  1947  से अभी तक देखे तो जादा कुछ बदलाव नज़र नहीं  आ रहा है 14th अगस्त 1947 को सिर्फ दो मुल्को का बटवारा नहीं हुआ था यह बटवारा दो दिलो का भी था .! जहा मोहम्माद अली जिन्ना की मांग पर उन्हे पाकिस्तान सौप दिया गया और  उन्होंने पाकिस्तान को मुश्लिम राष्ट्र घोसित किया और स्पस्ट सन्देश दिया गया की हम कट्टर है और हम कटरता ही अपनायेगे दोनों ओर से एक दूसरे के खून के प्यासे लोग , कुछ ऐसा हे जहर घोल दिया गया था उस वक़्त की हवाओ मे ...वही दूसरी तरफ ..हिंदुस्तान के नेताओ ने अपनी परम्परागत सहिष्णुता दिखाते हुए धर्मनिरपेक्षता की चादर ओढ़ कर हिन्दू और मुसलमानों को एक छत के निचे रखने की कोशिश की थी और नेहरु कबूतर उड़ा कर शांति का सन्देश देने में लगे थे ... 2 देश और 2 प्रधानमंत्री ने क्या किया , जिन्ना और नेहरु की लालच में लाखो नागरिक मारे गए, क्या पाया कितनो की जान गई सरकारी अकड़ा क्या कहता है और सच्चई क्या है या आज किसी से छुपा हुआ नहीं है जिन्ना और नेहरु की लालच में लाखो नागरिक मारे गए और आज भी मारे जा रहे है लगातार जो आग लगाई गई वो श्याद कभी ठंडी होती नज़र नहीं आ रही है .!

1948 में पाकिस्तान ने हमला किया और उसे मुह की खानी पड़ी और ये सिलसिला अब तक चला आ रहा है चाहे 1962 हो 1971 हो या फिर कारगिल युद्ध लेकिन इन तमाम युद्ध  में मुह की खाने के बाद भी पाकिस्तान नहीं सुधरा और आगे इसके सुधरने की उम्मीद भी नहीं है पाकिस्तान की लगाई आग में एक ओर  जहा कश्मीर आज भी जल रहा है वही देश के अन्दर भी छद्म रूप से नफरत की आग फ़ैलाने की कोशिश पाकिस्तानी जेहादियो द्वारा की जा रही है और हिंदुस्तान के अन्दर भी आज एक तबका ऐसा मौजूद है जिसे पाकिस्तान से प्रेम है ? हमारे हुक्मरानों की वजह से यह संख्या दिन प्रति दिन बढती जा रही है जिसका नतीजा है देश में आये दिन होने वाले दंगे और बम विस्फोट क्योकि भले ही इन विस्फोटो के पीछे आई एस आई और अन्य आतंकी संगठनो के नाम सामने आते हो लेकिन आई एस आई या अन्य संगठन बिना भारतीय मदत के घटनाओ को अंजाम नहीं दे सकते ये कोई निरा बुद्धू भी बता देगा ?

क्या एक पाकिस्तान हिंदुस्तान में अब भी बसता है यदि हां तो हमारे हुक्मरान कहा सोये हुए है 66 वर्षो में भी इनकी नींद क्यों नहीं खुली.
आज़ादी और बटवारे के वक़्त हमरे राहु और केतु बहुत पावर मे थे सो आज भी है 1947 से आज तक जो भी हो रहा है वो पैसा, पावर, और पोस्ट की वजह से ही
जवाहरलाल नेहरू जितना बच्चों से प्यार करते थे वे उतना ही प्यार लेडी एडविना से किया करते थे। विदेशों में पढ़ाई करते-करते उनकी शानो-शौकत भी ऊंची हो गई थी। यही कारण था कि नेहरूजी के विदेशों में ज्यादा दोस्त बन गए थे।
उसी में से एक थी लेडी एडविना, हालांकि उस समय दोनों की दोस्ती ज्यादा दिनों तक नहीं चली। 1912 में नेहरू के भारत आ जाने के बाद एडविना ने लॉर्ड माउंटबेटन से शादी कर ली थी और दोनों के रास्ते अलग हो गए थे।
नेहरूजी 1912 में राजनीति में कूद पड़े और गांधीजी का सहयोग करने लगे। अंग्रेजों के खिलाफ भारत ने 1946 के अंत तक अपनी लगभग लड़ाई पूरी कर ली थी। उसी दौरान लेडी एडविना अपने पति लॉर्ड माउंटबेटन के साथ भारत भ्रमण पर आईं।

उस समय कश्मीर का मामला उलझा हुआ था और नेहरूजी दुखी थे, तभी उनकी मुलाकात लेडी एडविना से हुई। एक बार फिर दोनों का प्यार खिल उठा। उस समय के जानकारों का मानना था कि अगर नेहरू-एडविना के रिश्तों में और नजदीकियां होतीं तो शायद अंग्रेज उन्हें अपनी कूटनीति में फंसा लेते और भारत के हाथ से जीत निकल जाती।
कौन  कहता है कि बुड्ढे इश्क नहीं करते , इश्क तो करते है पर लोग उन पर शक नहीं करते……… नेहरू ने लेडी एडविना के कहने पर ही पकिस्तान का बंटवारा माना था ऐसा बार बार सुनने मे आया है हक़ीक़त क्या या तो नेहरू जी ही बेहतर बता सकते है फिर भी जब इंसान जब  प्यार मे होता है तो उसे अच्छा बुरा गलत सही कुछ नहीं  दिखाई देता कुछ ऐसा ही शयद हुआ हो या यक़ीनन , फ़िलहाल उन्हे रोकने बोलने और समजने वाला कौन था उस वक़्त जब ६० साल की उम्र मे प्यार हो और वो परवान चढ़ता हुआ दिखाई दे तो कोई भी इंसान बहक  जायेग और मेहबूबा की एक इच्छा तो पूरी कर के उसे खुस कर ही दिया होगा नेहरू ने.
इनके रिश्ते इतने मजबूत थे कि एडविना के पति और उनकी बेटी भी चाहकर बीच में नहीं आते थे। यहां तक कि जब नेहरू एडविना के पास आते थे तो माउंटबेटन उन दोनों को अकेला छोड़कर चले जाते थे। एडविना और माउंटबेटन की बेटी पामेला ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि दोनों के बीच रूहानी संबंध थे। दोनों एक-दूसरे के बिना नहीं रह सकते थे।
इतिहासकारों का मानना है कि पामेला ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि नेहरू और एडविना में इतनी नजदीकी का कारण दोनों का ऊंचा रहन-सहन, सुदंरता तथा नेहरू की सादगी थी।
हालांकि भारत और पाकिस्तान के आजाद होते ही लेडी एडविना अपने पति लॉर्ड माउंटबेटन के साथ वापस लंदन लौट गईं। भारत की स्वतंत्रता के बाद एक बार नेहरू और एडविना का मामला सरदार वल्लभभाई पटेल ने संसद में भी उठाया था।
हाल ही में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और लेडी एडविना माउंटबैटन के तथाकथित प्रंम संबंधों के विषय में एक और खुलासा हुआ है। एडविना की सबसे छोटी पुत्री लेडी पामेला हिक्स ने माना है कि इन दोनों के संबंध 1947 में मैशोब्रा के दौरे के दौरान प्रगाढ़ हुए थे।
लेडी हिक्स ने नेहरू और अपनी माँ एडविना के संबंधों के विषय में यह भी बताया है कि इनका यह संबंध एडविना के जीवन के कई संबंधों में से एक था, जो उनके लिए बिल्कुल सामान्य था।
अपनी किताब ‘इंडिया रिमेंबर्ड’ में उन्होंने नेहरू द्वारा एडविना को लिए गए एक खत का भी वर्णन किया है जिसमें नेहरू ने एडविना को मैशोब्रा में बिताए यादगार पलों का वास्ता देते हुए अपने प्यार का इजहार किया है।
पामेला के अनुसार वह 17 साल की थीं, जब वह अपने माता-पिता के साथ 16 महीनों के लिए भारत आई थीं। उसी दौरान उनकी माँ और पंडित नेहरू के बीच प्रेम-संबंध उत्पन्न हुए थे।
पामेला ने बताया कि मुझे सोचकर आश्चर्य होता है कि साठ वर्ष की उम्र में भी इन दोनों के बीच इस तरह का कोई आकर्षण हुआ। ये दोनों ही अपने आप में विलक्षण स्वभाव के व्यक्तित्व थे।
उन्होंने एडविना के बारे में यह भी माना कि वह खूबसूरत थीं, अमीर थीं और एक ऐसे अधिकारी के साथ ब्याही गई थीं, जो लंबे समय तक उनसे दूर रहते थे। इसलिए उनके इस संबंध को स्वाभाविक मानना चाहिए।

15 जून 1947 को दिल्ली में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में एक महत्वपूर्ण भाषण दिया था जो उनके 'सेलेक्टेड वर्क्स' के चौथे खण्ड में 'विभाजन की अपरिहार्यता' शीर्षक से मौजूद है।
श्रीमती मुखर्जी ने बताया कि पंडित नेहरू ने उस भाषण में स्पष्ट शब्दों में कहा था कि विभाजन की योजना में नया कुछ भी नहीं है। यह राजाजी उर्फ चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के फार्मूले पर आधारित है, जो उन्होंने 23 अप्रैल 1942 को दो प्रस्तावों के रूप में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में पारित करवाया था।
ये प्रस्ताव मद्रास के विधायकों के थे जिनमें सिफारिश की गई थी कि कांग्रेस को विभाजन के मुस्लिम लीग के दावे को मान लेना चाहिए और इस संबंध में लीग के साथ बात की जानी चाहिए। राजाजी के फार्मूले के आधार पर ही महात्मा गाँधी ने इस संबंध में जिन्ना से बातचीत की थी।
पंडित नेहरू ने उस भाषण में यह भी कहा था कि यह कहना गलत है कि मैंने और दो अन्य ने लाखों लोगों के भाग्य का फैसला 'विभाजन' किया। बंगाल प्रान्तीय कांग्रेस ने भी बँटवारे के प्रस्ताव का समर्थन किया था।

नेहरू महिलाओ के साथ ज्यादा पाये जाते है.! आता दुःख भी होता है. की आज हमरे नेता जी दिग्विजय सिंह  ने एक प्यार का इज़हरर क्या  किया पूरी फ़िज़ा उनके खिलाफ हो गई आखिर क्यों कोंग्रस पार्टी भी यही कहती नज़र आई की या उनका निजी मामला है बिलकुल सही हर किसी की निजी ज़िन्दगी होती है लेकिन जिस प्रकार  की पिक्चर  आज सोशल मीडिया  पर तैर रही है दिगविजय और राय मैडम की उसे जादा  तसवीर तो नेहरू जी की अवेलेबल है नेट पर गूगल पर. फिर क्या गलत किया गिग्विजय ने बताये..?  देश बताये… जनता बताये… अगर जवाहरलाल नेहरू सही थे तो दिग्विजय भी सही है… दोनों मे अंतर सिर्फ इतना सिंह सहाब ने 68 साल मे या कारनामा किया जो नेहरू जी सुरु से करते आ रहे थे... और अगर आज दोनों सही है,  फिर तो या देश हे पद्भ्रस्ट है जनता गलत है सब मुर्ख है और राहु केतु के फैलेये माया जल मे फंस कर रह गए है! बटवारा हुआ.. युद्ध हुए.. चुनाव हुए.. लेकिन हम लीक से नहीं हटे आज भी कुछ करने के पहले हम संसद से बाद मे पूछते है जनता से बाद मे पूछते है पहले सोचते है की अमेरिका क्या सोचेगा इटली क्या सोचेगी इंग्लैंड क्या सोचेगा न नेता बदले न हम न राहु - केतु तो क्यों न हम .!  फिर क्या करे, कहा जाये राहु - केतु से बचाव का एक हे रास्ता नज़र आ रहा है जो शास्त्रो मे भी पाया गया है आदि संकर भगवन शिव के पास और बोले दे दो हमे नमो मंत्र जिसे उद्धार हो कल्याण हो और निजात मिले इन राहु केतु से जो कुंडली मर कर बरी बरी दाल दिल और धर्म बदलकर परेसान किये जा रहे है

राहु न केवल व्यक्ति विशेष के लिया अच्छा न सम्पूर्ण भारतवर्ष के लिया आज़ादी मिलने वाले दिन से आज तक पूरा भारत देश राहु के एक पूरे परिवार से  पीड़ित एक परिवार ..जो रूप बदलता है  धर्म और छेत्र  बदलता है जिसकी नियति ही बदलना बन गई है आखिर उसने आज़ादी के बाद से 2014 तक भारत को बदलने के लिया क्या क्या किया टुकड़े करवा दिया देश के जाती के नाम पर लड़ाई करवा दी भाइयो  मे, राहू ने सिर्फ अपने परिवार के विकास मे ध्यान  केंद्रित किया एक परिवार की एक राष्ट्रीय पार्टी  बन कर रह गई बार  बार हमले बार बार हमरी सीने पर घाव को हम ने बर्दास्त किया कभी उस पार (पाकिस्तान )  से कभी इस पार (हिन्दुस्तान ) से ! रोजगार हाथ से गया विकास हाथ से निकल गया पार्टी आज भी वही है! किसीकी ज़िमेदारी थी! नए कानून, विकास की, नई बयार बहाने की एक छोटी सी बात हम अपने पडोसी देश चीन से नहीं  सीख पाये जनशंख्या को काबू करना एक कानून नहीं   बना पाये कागज मे विकास और उत्पादकता तो हर साल बड़ गई उसे भी १० गुना तेजी से जनशंख्या बढ़ती जो जा रही है उस पर कानून क्यों नई बना..! मांग पूर्ति का इतना छोटा सा नियम जो स्कूल मे बच्चो  को पढ़ाया जाता है वो 10 साल मे इकोनॉमिक्स के इतने बड़े प्रोफेसर मनमोहन को क्यों नहीं  समझ आई .!
नियम और नए कानून आखिर क्यों नहीं बने जहा खुद के फायदे की बात हो राहु - केतु चुप हो जाते है जहा लोगो को बाटना अलग करना और वोट की राजनीती करनी हो वहाँ रिजर्वेशन (लग)…  कर दिया जाता है ! हमरे बुद्धि जीवी वर्ग  जो सविधान के निर्माता थे या कानून के ज्ञाता है ने ये प्रक्रिया( रिजर्वेशन ) पिछडो ,गरीब और समाज की मुख धरा मे इन्हे शामिल करने के लिया बनाया था लेकिन यही रिजर्वेशन लोक सभा राज्य सभा विधान सभा मे क्यों नई दिखाई देता तब तो सही मायने मे इसका रिजर्वेशन का पालन हो रहा होग पर्सन्टेज वही क्यों नई जो विश्विद्लाया मे एडमिशन के लिया लागू है की (- 10 ) नंबर अन्य के बाद भी आप को एडमिशन मिलेग उसी प्रकर एक भी वोट न मिलने की स्थिति मे भी आप को रिजर्वेशन के तहत वहाँ का विधायक या संसद या मंत्री बनाया जाता है आखिर ऐसा नियम क्यों नहीं  बना  यही चाल है राहु केतु को खुद राज करने की देश को लूटने की जनता को लड़ने की खुद को जहा नुक्सान हो वो काम न करेगे बाकि दुनिया मारे या जीए ..

ग्रह ( अन्य ) पार्टी बनाये गई जहर घोल  दिया समाज मे आरक्षण के  नाम का और  युवाओं के साथ उनकी ज़िन्दगी के साथ खिलवाड़ लगातार जारी रखा , जब हम कटोरा ले कर भीक मांग मांग कर सविधान का निर्माण कर शकते है तो उसी भीक के कटोरी को एक बार और भेजो न विश्व समुदाव के पास और बोलो  की हमरी सरकार  मे सभी गवार , अनपढ़ , जाहिल  नेता जी लोगो  का कब्ज़ा  हो चूका है जिनके पास सोचने समज़ने की शक्ति नहीं  है कृपया हमे हमरी इकोनॉमिक्स को पटरी पर लाने का सविधान मे सुधर का और विकास के पहिये का फिर से घूमने का उपाए प्रदान करे, करवाओ संसोधन हर गलत बात का जो सविधान मे निहिद है .! नेता कैसा हो पढ़ा लिखा हो, वो भी रिटयर हो.! नेता जी  भी थक जाता है.! या अमृत पान  कर के आते है भारतीय नेता,  की जब तक मौत न आये तब तक फेविकोल के मजबूत जोड़ से कुर्सी से चिपके रहेगे …..आखिर क्यों इस ओरे किसी  ने आज तक नहीं  सोचा सविधान बना उसमे संसोधन होने का प्रावधान भी है तो एक भी संसोधन ऐसा क्यों नहीं  हुआ की जनता के साथ धोखा करने वाले नेता को भारतीय लोकतंत्र मे दुबारा चुनाव लड़ने की आज़ादी नहीं  होगी आखिर क्यों . आज अगर एक  पाकिस्तान हिंदुस्तान में अब भी बसता है यदि हां तो हमारे हुक्मरान कहा सोये हुए है 66 वर्षो में भी इनकी नींद क्यों नहीं खुली?
आखिर मे सिर्फ इतना ही की अगर हम सभी को पता है की राहु केतु से बचने का अपनी ख़ुशी और तरक्की पाने का और खुद को विकासशील करते हुए देश को विकशित करने का उपाए भगवान शिव शंकर के पास ही है तो चलो  बनारास इसी बहाने एक बनारसी पान का स्वाद भी मिलेगा नमो नमो नमो नारायण के जप से आदि संकर महादेव सहज ही खुस हो जाते है भूत भभूत और छोटी सी छोटी भेट उन्हे खुस कर देती है उन्हे चढ़ावे मे कभी हीरे मोती की इच्छा नहीं अपने भगतो  से  सहज रूप से मदार धतूर और बेल  पत्ता  से ही आप के ऊपर अपनी कृपा की बारिश कर देते है तो. क्यों डर डर के जी रहे है चलो आगे बढ़ो एक नई  उम्मीद के साथ एक नए जोश के साथ सूर्य ग्रहण भी कुछ पल के लिए होता है अब हो ही जाने दो मुक्त  खुद को और सूर्य को राहु कल से मुक्ति का समय आ गया है भारत ही नहीं भ्रमांड भी राहु केतु से  मुक्त होने के लिया 125 अरब जनता की ओर निहार रहा है सभी प्रेम से बोलो नमो नारायण  कशी चलो मुक्ति मिलेगी राहु से भी केतु से भी जीवन मे उजाले के साथ इस विस्वास के साथ की अब अच्छे दिन अन्य वाले है और आ ही गए है…

प्रदीप दुबे

pdpjvc@gmail.com

 








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