@ === Om Thanvi (थनवी के सवाल)
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अमेरिका
के राष्ट्रपति हर शनिवार रेडियो पर मन
की बात कहते हैं, "वीकली एड्रेस" नाम से। शायद
उससे थोड़ी प्रेरणा नरेंद्र मोदी लेते आए हैं।
पर हमारे प्रधानमंत्री ने अपने पहले
रेडियो प्रसारण के लिए विजयदशमी का दिन चुना,
जो हिन्दू त्योहार है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
का स्थापना दिवस भी है। बहरहाल उन्होंने "मन
की बात" में यह कहा कि "अगर आप खादी का वस्त्र
खरीदते हैं तो एक गरीब के घर में
दिवाली का दीया जलता है।" सच्चाई यह है
कि ईद भी करीब है, बल्कि दिवाली से बहुत पहले -
दो रोज बाद ही - मनाई जा रही है। लगे हाथ यह
भी कह देते
तो कितना अच्छा लगता कि खादी खरीदते हैं
तो किसी गरीब के घर में
दिवाली का दीया जलता है, किसी घर में ईद
की उमंग भी बढ़ती है। राजधर्म में
तो सबका कल्याण निहित होता है!
इस ही कहते हैं प्रेत-बाधा। भारत हिन्दू राष्ट्र
बने न बने, कुछ लोगों के मन में वह कमोबेश हिन्दू
राष्ट्र ही है और मन की बात बनकर जब-तब बाहर
आएगा। कहना आसान है कि सबको साथ लेकर
चलना है - वरना सबको दिवाली-ईद पर ही याद
नहीं रख सकते तो साथ लेकर कैसे चलेंगे?
की बात कहते हैं, "वीकली एड्रेस" नाम से। शायद
उससे थोड़ी प्रेरणा नरेंद्र मोदी लेते आए हैं।
पर हमारे प्रधानमंत्री ने अपने पहले
रेडियो प्रसारण के लिए विजयदशमी का दिन चुना,
जो हिन्दू त्योहार है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
का स्थापना दिवस भी है। बहरहाल उन्होंने "मन
की बात" में यह कहा कि "अगर आप खादी का वस्त्र
खरीदते हैं तो एक गरीब के घर में
दिवाली का दीया जलता है।" सच्चाई यह है
कि ईद भी करीब है, बल्कि दिवाली से बहुत पहले -
दो रोज बाद ही - मनाई जा रही है। लगे हाथ यह
भी कह देते
तो कितना अच्छा लगता कि खादी खरीदते हैं
तो किसी गरीब के घर में
दिवाली का दीया जलता है, किसी घर में ईद
की उमंग भी बढ़ती है। राजधर्म में
तो सबका कल्याण निहित होता है!
इस ही कहते हैं प्रेत-बाधा। भारत हिन्दू राष्ट्र
बने न बने, कुछ लोगों के मन में वह कमोबेश हिन्दू
राष्ट्र ही है और मन की बात बनकर जब-तब बाहर
आएगा। कहना आसान है कि सबको साथ लेकर
चलना है - वरना सबको दिवाली-ईद पर ही याद
नहीं रख सकते तो साथ लेकर कैसे चलेंगे?
…………
@ === एक युवा का जवाब (प्रदीप दुबे )
http://adeeparauha.blogspot.in/2014/10/blog-post_3.html
हर
ब्यक्ति को हिन्दू, हिंदूवादी, या कट्टर कह देना एक समाचार संपादक को सोभा नहीं देता एक युवा होने के
नाते मैं तो यही कहूँगा थनवी जी आप से की सार्थक मुद्दे और सार्थक लॉजिक पर
कॉन्संट्रटे करिये खुद को ! क्यू कि आप का भी तो नाम ॐ से शुरू होता है अब क्या
मैं आप को कट्टर कह दू सिर्फ नाम की वज़ह से नहीं कभी नहीं आपको नाम कि वज़ह से मैं
कट्टर नहीं कह सकता !
इसी
तरह आप को भी हर चीज को तिल का ताड़ बनाने का विचार छोड़ देना चाहिए !
कल
मैंने भी मोदी जी का (( मंन की बात )) सुना मैंने ही नहीं पुरे देश ने सुना ) मुझे
तो 68 सालो के इतिहास में
पहली बार सिर्फ विकास की बात करते हुए भारत का कोई प्रधानमंत्री दिखाई दिया और
सुनाई भी दिया ऐसे विकास कि बात जो यूनिवर्सल थी मानवता को सामने रखकर कि जा रही
थी ! ऐसे विकास की बात जो साम्प्रदायिकता से कोसो दूर थी ! सच सच, साफ़ साफ़ थी ! पूरा देश जिसे तन्मयता से सुन रहा था और पुरे देश को जिसमे
उम्मीद की किरण दिखाई दे रही थी !
थनवी
जी अगर मोदी जी दीवाली की शुभकामना देकर गलती कर दिए साम्प्रदायिक हो गए कट्टर हो
गए, हिन्दू हो गए तो आप
ही बताइये ना आपके हिसाब से मोदी जी ईद पर क्या बोलते क्या यह बोलते की एक
खादी का कपडा आप के द्वारा जब खरीदा जाता है या जब आप एक खादी का कपडा खरीदते हो
तो किसी गरीब मुस्लिम के घर में ईद पर एक बकरा खरीदने की ब्यवस्था हो जाती है ! बताइये
ना थनवी जी मोदी जी यह कैसे बोल देते आप तो प्रबुद्ध जन की श्रेणी में आते है ! आप
को तो पता है खादी का महत्वा अब आपही बताओ ना खादी के पैसे से कुर्बानी का बकरा
खरीदने को कैसे कह देते मोदी जी आपको तो पता है ईद पर मिटटी का दिया जलाकर ख़ुशी
नहीं मनाई जाती बल्कि बकरा काट कर खुसी मनाई जाती है, एक तो
हिंसा ऊपर से मंहगी हिंसा फिर वह खादी के पैसे से कैसे मैनेज होगी कैसे मनाई जा
सकती है थनवी जी ...?? खादी के पैसे से ईद का बकरा अगर खरीदा
गया तो गांधी जी और खादी दोनों का अपमान होगा और गांधी के सत्य, अहिंसा के दिखाए गए रास्ते का भी अपमान होगा ! साथ ही आप अगर प्रबुद्ध जन है
एक सजग कुर्सी पर बैठे है तो जरा गुणा-भाग लगाकर भी मोदी जी के सब्द को तौल लीजिये
आपको उत्तर साफ़-साफ़ दिखाई देगा क्यों की जहा गरीब को दीवाली मनाने के लिए 15
रुपये में 16 मिटटी के दिए मिल जाते है वही ईद
पर 1600 में एक बकरा वो भी सायद ही मिल जाए वर्तमान बाजार
भाव के हिसाब से ! अब आप ही बताइये थनवी जी ये कैसे सम्भव था की मोदी जी 15
रुपये की खुसी 1600 की खुसी के बराबर कर देते 1600
की खुसी तो मंहगी वाली खुसी होती है ! थनवी जी मोदी जी को पता है
खादी का नाम कहा लेना है कहा नहीं ! मोदी जी विकास पुरुस है खादी को बेचकर हिंसा
को बढ़ावा देना उनका मकसद कैसे हो सकता है ! वह तो विकास का ऐसा दिया जलाना चाहते
है देश में जिसके प्रकाश में सुचिता हो और विकास के साथ अहिंसा भी !
खादी
के पैसे से ईद के लिए बकरा खरीदने की ब्यवस्था यह तो केवल कांग्रेस के सासन
काल में ही सम्भव है की खादी को बेच कर ईद मना लो या गांधी को बेच कर सरकार चला लो
क्या फर्क पड़ता है !
थनवी
जी आप ने कल मोदी को सुना जरूर लेकिन हम युवाओ की तरह नहीं बल्कि आपने अपने को
कुतर्क तक सिमित रखकर मोदी को सुना !
मै
मानता हूँ मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति की कोई चीज नक़ल किये लेकिन मै यह भी मानता हूँ
की मोदी के नक़ल के बाद ओम थनवी जी ने हमे बताया की अमेरिकी राष्ट्रपति ऐसा बहुत
पहले से करते है, खुसी और फक्र तो थनवी
जी पर हमे तब होता जब आज से एक या दो साल साल ही सही मगर पहले थनवी जी यह बात हमे
बता चुके होते ! क्यों की तब भी थनवी जी के पास कहने का लॉजिक भी था और देश दुनिया
में होने वाली ऐसी अच्छी बाते जानने का हमे हक़ भी है !
हमे
तो फक्र है थनवी जी की हमारे देश के प्रधानमन्त्री ने पहली बार अच्छी चीज की नक़ल
की है वर्ना अबतक तो बाकी के लोगो ने पश्चिम के अंधानुकरण तक ही खुद को सिमित रखा
जो विकास से कोसो दूर था ! वो चाहे भारत के प्रधानमंत्री रहे हो या ॐ थनवी या
राजदीप सर देशाई जैसे बरसाती लोग ! थनवी जी आपको बता दूँ अपने 28 साल के जीवन काल में मैंने पहली बार साझा
सम्पादकीय पढ़ा कुर्ता - अचकन और शूट एक साथ बैठ कर,बराबर बराबर में बैठ कर खुले मन से जिसे लिखे हो ऐसी सम्पादकीय पढ़ा ! यकीन
मानिए ॐ थनवी जी ऐसी सम्पादकीय तो मैंने आज तक जनसत्ता में भी नहीं पढ़ी थी !
अगर
आपके पास इस सम्पादकीय की कोई काट है या आपने कभी इस तरह की कोई सम्पादकीय लिखी है
तो अपनी एक ऐसी साझा सम्पादकीय हमसे साझा करिये जो आज से पहले आप ने किसी विदेशी
संपादक के साथ बैठ कर विश्व समस्या पर लिखी हो विकास की बात करते हुए लिखी हो यकीन
मानिए हमे पढ़ कर खुसी होगी बहुत ज्यादे खुसी ! पर अफ़सोस आप ने अबतक ऐसा नहीं किया
होगा ! सोचिये थनवी जी जो काम आप कर सकते थे बेहतर कर सकते थे आप ने नहीं किया
अबतक फिर आप ऊँगली उठाने के हकदार कैसे हो गए वो भी किसी स्वस्थ मुद्दे पर अस्वस्थ
तरीके से ! आपके पास तो कुर्शी भी थी सोचिये जो काम दो देशो के दो उम्दा अखबार के
संपादक को करना था उसे मोदी ने शुरू किया यानी आपको भी मोदी जी ने राह दिखाई है की
आप अपने संपादक धर्म के साथ कैसे न्याय कर सकते है और देश के साथ साथ विदेश को भी
कैसे अपनी कलम से जोड़ सकते है और कैसे खुद को आइडिअल बना सकते है..? तो फिर अब बेजा बातो में वक्त जाया
क्यों कर रहे है आईये चलिए थनवी जी देर ही सही अब शुरू करिये खादी से एक मिटटी के
दिया जलाने जैसा उद्दाहरण दीजिये, प्रकाश की ओर विकास की ओर
मुखातिब होईये आपके पास मुद्दा भी है, समय भी है, लॉजिक भी है, कलम की ताकत भी है और कुर्शी भी ! थनवी
जी अगर आप ने ऐसा नहीं किया तो हम युवा तो यही समझेंगे की मोदी जी के बहाने
विवादित बयान जारी कर के, विवादित लेख लिख कर या टिप्पड़ी देकर
, मोदी जी का नाम लेकर थनवी जी और राजदीप सर देशाई जैसे लोग
अपने लिए पब्लिसिटी बटोर रहे है बिल्कूल वैसी ही पब्लिसिटी बटोर रहे है जिसका आसय
होता है की आओ बहती गंगा में हाथ धो ले , कुछ नहीं भला होगा
तो पुराना कालिख ही धूल जाएगा या गंगा में धोने से हाथ पवित्र हो जाएगा ! जय हिन्द
साभार
-
एक
युवा
प्रदीप
दुबे
साभार -
एक युवा
प्रदीप दुबे
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