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Friday, October 31, 2014

भारत तुम्हारी अस्मिता से बड़ा कैसे हो सकता है किसी इमाम का न्योता




न्योता चाहे ब्यक्तिगत हो या सार्वजनिक दोनों में एक बात का हमेसा ख्याल रखा जाता है की कही ऐसे ब्यक्ति को आमंत्रित न कर दिया जाए जिससे ख़ुशी का माहौल बोझिल और शिकायत भरा हो जाने का डर हो ! इस लिए हमेसा न्योता देने से पहले घर में आपस में एक बार चर्चा जरूर होती है ! भारत भी तो हम सबका घर है क्यों की यहाँ लोकतंत्र प्रणाली कायम है जिस प्रकार घर में हर सदश्य घर का अहम अनिवार्य हिस्सा होता है फिर भी घर में घर के लोगो की सहमति के द्वारा एक मुखिया का चुनाव किया जाता है इस उद्देश्य से की घर पर आपत्ति संकट आने पर या कोई बड़ा फैसला लेते समय यह मुखिया घर के मान सम्मान सुरक्षा शांति सौहार्द का विशेष रूप से ध्यान रखेगा सबको ख़ुशी मिले समृद्धि मिले ऐसे हितकर फैशले लेगा उसी प्रकार भारत में जनता के लिए जनता के द्वारा चुना गया जनता का एक शासन ब्यवस्था काम करती है जिसमे जनता के मुखिया का प्रावधान है यह मुखिया जनता के सुख दुःख के साथ साथ राष्ट्र हित को ध्यान में रख कर कार्य करता है यह राष्ट्रपति का मुख्य सलाहकार भी होता है इसे प्रधानमंत्री कहा जाता है ! अब यह कैसे सम्भव है की राष्ट्र धर्म से बढ़ कर किसी ब्यक्ति विशेष का किसी समुदाय विशेष का धर्म हो जाए ! राष्ट्रधर्म से छेड़छाड़ करके व्यक्तिविशेष या समुदाय के धर्म को महत्वा दिया जाना एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए खतरा है ! राष्ट्र से बढ़ कर ब्यक्ति विशेष नहीं हो सकता न ही कोई समुदाय विशेष ही ! आज जब पाकिस्तान की नापाक हरकत की वजह से सीमा पर तनाव है बकरीद पर अरनिया में बेगुनाह मुसलमान भाइयो पर पाकिस्तान द्वारा गोली बारी करके बकरीद की खुसी में खलल डाली गई मातमी माहौल पैदा किया गया उससे समूचा  भारतीय मुसलमान आहात है ऐसे में इमाम सैयद अहमद बुखारी द्वारा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को अपने बेटे सैयद शाबान के दस्तारबंदी में न्योता क्या मुस्लिम समुदाय पचा पायेगा साथ ही क्या इसे राष्ट्र की अस्मिता के लिए एक बड़ा सवाल समझा जाये क्यों की मन बुखारी का मिया सरीफ को भेजा जाने वाला न्योता ब्यक्तिगत है किन्तु अगर परवेज मुसरफ आने को तैयार हो गए तो उनके आने का मार्ग भारत से होकर ही तय होगा और पाकिस्तान से दिल्ली की यह उनकी यात्रा विश्व्जगत में सवाल खड़ा करेगी क्यों की पाकिस्तान से दिल्ली तक नवाज सरीफ का आना बुखारी के लिए ब्यक्तिगत हो सकता है किन्तु भारत के लिए काफी उथल पुथल भरा होगा !  क्योकि  जब बात आती है राष्ट्र अस्मिता की राष्ट्र धर्म की  तो वहां पर ब्यक्ति विशेष गौड़ हो जाता है व्यक्ति विशेष का धर्म गौड़ हो जाता है राष्ट्र की अस्मिता अहम हो जाती है राष्ट्र का धर्म अहम हो जाता है ! एक अरब पचीस करोड़ की आबादी वाले इस देश में रोज ब्यक्तिगत आयोजन होते है खुशिया मनाई जाती है और यह भी तय माना जा सकता है की सभी लोग प्रधानमंत्री को आमंत्रित नहीं करते न ही प्रधानमंत्री के लिए यह सम्भव ही है ! बुखारी साहब ने भी नहीं किया मोदी को आमंत्रित तो यह कोई बड़ी बात नहीं है ! किन्तु जब कोई ब्यक्ति विशेष धर्म विशेष प्रधानमंत्री से सलाह मसविरा किये बिना अपने पडोशी देश के प्रधानमंत्री को सीधे आमंत्रित कर दे अपने व्यक्तिगत कार्यक्रम में वह भी ऐसे पडोशी देश के प्रधानमंत्री को जिससे वर्तमान सम्बन्ध सौहार्द पूर्ण नहीं है और जिसके द्वारा सीमा पर हमला जारी है तो ऐसे में वह राष्ट्र धर्म पर प्रश्न चिह्न उठा देता है राष्ट्र की अस्मिता को ताक पर रखने का कार्य कर देता है ! घर के मुखिया को घर के कार्यक्रम में निमंत्रण की कोई जरुरत नहीं होती लेकिन घर में बाहर से किसे आमंत्रित करना है इसपर घर के सदश्यों द्वारा मुखिया से एक बार सलाह मसविरा जरूर होना चाहिए था क्यों की यह बात  करांची से दिल्ली तक की यात्रा की है जो किसी भी दृष्टिकोड से आम बात नहीं हो सकती ! बीते कुछ दिनों पहले भारत से बात करने से पहले कट्टर धर्मगुरुओ से बात करने की वजह से ही भारत पाकिस्तान की शांति को लेकर बैठक नहीं हो पाई थी फिर भारत द्वारा एक धर्मगुरु का न्योता मिया सरीफ को क्या सन्देश देता है इमाम बुखारी साहब के बेटे सैयद शाबान बुखारी की दस्तारबंदी में भी तो कुछ ऐसे ही लोगो के शामिल होने के आसार है !


दिल्ली स्थित ज़ामा मस्जिद के इमाम सैयद अहमद बुखारी साहब आप एक धर्म विशेष के मुखिया है जिस धर्म विशेष का हम सम्मान और आदर करते है किन्तु आपका भी एक दायरा है बेहतर होता आप उस दायरे का लिहाज़ करते और इस बात से इतेफाक रखते की लोकतंत्र प्रणाली वाले हमारे राष्ट्र के मुखिया की क्या अहमियत है राष्ट्र की अस्मिता के दृष्टिकोण से ! मिया परवेज़ मुसर्रफ को आमंत्रण भेजने से पहले क्या प्रधानमंत्री के साथ सलाह मसविरा होना अनिवार्य नहीं था ! क्या आपको नहीं लगता की बकरीद के पाक मौके पर हमारे बेगुनाह मुस्लिम भाइयों की पाकिस्तानी सेना द्वारा हत्या की गई , क्या आपको नहीं लगता की परवेज़ मुसर्रफ साहब के दामन पर बकरीद के दिन हुए अरनिया के लोगो की हत्त्या का दाग है और खून के छींटे भी ! आखिर आप हमारे भारतीय मुसलमान भाइयों को क्या सन्देश देना चाहते है ! क्या आप उन्हें ये जताना चाहते है की जिसने अपने दामन पर अरनिया के बेगुनाहो के खून के छींटे लिए हुए है वह कातिल आपके ब्यक्तिगत ख़ुशी का साथी है आपका मेहमान है ! इमाम बुखारी साहब भले मौका ख़ुशी का है आपके लिए , भले यह आपका ब्यक्तिगत कार्यक्रम है भले यह कार्यक्रम 1665 से होता आ रहा है किन्तु इस बार यह कार्यक्रम सवाल खड़ा कर रहा है आपके निमंत्रण के प्रति आपके दिल में भारत के अस्मिता के प्रति साथ ही समस्त भारतीय मुसलमान भाइयो के प्रति !
बुखारी साहब आपके फैसले को हम यहाँ राजनितिक तूल नहीं दे रहे है किन्तु राष्ट्र की अस्मिता से जोड़कर जरूर देख रहे है और बात जब राष्ट्र के अस्मिता की आई है तो मै आपको अरनिया के निर्दोष लोगो का चेहरा भी याद दिलाना चाहता  हूँ , बकरीद पर खुसी की जगह मातमी चीख भी सुनाना चाहता हूँ और आपको ले जाना चाहता हूँ जम्मू कश्मीर के अरनिया क्षेत्र तक और उन 45 पुलिस चौकियों तक जिसे लहूलुहान किया था पाकिस्तानी सेना ने बकरीद के दिन ! मै आपको आपके राष्ट्र धर्म की याद दिलाना चाहता हूँ क्योकि राष्ट्र धर्म से बड़ा न कोई ब्यक्ति होता है न कोई धर्म और राष्ट्र की अस्मिता के साथ छेड़छाड़ करने का हक़ भी किसी को नहीं है ! लोकतंत्र में जनता का साशन जनता के लिए जनता द्वारा चुना जाता है अतः बुखारी साहब आपको मिया परवेज़ मुसर्रफ को न्योता भेजने से पहले एक बार जनता द्वारा जनता के लिए चुने गए जनता के साशन का प्रतीक यानी भारत के प्रधानमंत्री से सलाह मसविरा जरूर करना चाहिए था साथ ही उस धर्म विशेष के लोगो की आस्था का मान भी रखना चाहिए था जिनके मुखिया के तौर पर आप जाने जाते है यानी हमारे मुस्लिम समुदाय के भाई बंधुओ से भी एक चर्चा करनी चाहिए थी !

द्वारा -
प्रदीप दुबे

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