सौंदर्य और आकर्षण का अटूट रिश्ता है, सौंदर्य
से दुनियाँ के समृद्ध साहित्य अटे पड़े है ,
चाहे पूरब हो या पश्चिम सभी जगह कवियों ने साहित्यकारों ने , चित्रकारों
ने यहाँ तक की
ऋषि मुनियो ने भी सौंदर्य को अपना आधार बनाया !
किसी ने प्रकृति की गोद में जाकर प्रकृति के सौंदर्य में
ईश्वर को ढूंढा और
पाया तो किसी ने स्त्री सौंदर्य में ही समूची प्रकृति को
ढून्ढ लिया और उसपर मोहित होकर
सुन्दर समृद्ध साहित्य की रचना कर डाली ! किन्तु ये सब एक
मर्यादा एवंम सीमा - रेखा
के बीच रह कर किया गया कभी अतिक्रमण करने की सोच नहीं रही
इसके केंद्र में !
साथ ही इस बात का भी हमेसा ध्यान रखा गया की सौंदर्य जो की
प्रकृति और स्त्री का सिम्बल है
वाहक है , मूल आधार है, अगर
उसके साथ छेड़-छाड़ की गई तो सृष्टि का विप्लव ( अंत )
भी निश्चित है !
प्रकृति के साथ पुरुष को जोड़ कर ही सृष्टि की संरचना सम्भव
हो पाई है ! क्योकि प्रकृति
जहां सौंदर्य ( स्त्री ) का वाहक है वही पुरुष सौंदर्य के
प्रति आकर्षण का वाहक है !
सौंदर्य और आकर्षण के मिलने पर ही जगत का निर्माण सम्भव
होता है !
किन्तु वर्तमान समय में अखबार जगत , टी० वी०
चैनल्स और विज्ञापन एजेंसियों द्वारा
इस निर्माण का पर्याय यानी सौंदर्य ( स्त्री सौंदर्य ) का
जिस प्रकार भौड़ा प्रदर्शन किया जा रहा है वह सौंदर्य की कौन सी परिभाषा गढ़ रहा है, स्त्री
सौंदर्य को किस रूप में पेश करना चाहता है इससे मै ही नहीं सायद ईश्वर भी अनजान और
सहमा हुआ है !
90
के दशक में जब समाचार चैनल्स का सैलाब नहीं आया था वर्तमान समय की
तरह
घर के बड़े लोगो के साथ घर के सभी बच्चे बैठ कर हिंदी
इंग्लिश समाचार सुना करते थे
मर्यादा की सीमा रेखा में रहते हुए दुनियाँ भर की जानकारी
के साथ कभी सरला माहेश्वरी ,
कभी शोभना जगदीश , कभी गज़ाला आमीन , कभी एलिज़ाबेथ आदि आदि को हम समाचार बोलते हुए भारतीय ड्रेस में
देखते थे ! कभी कोई असहजता नहीं महसूस होती थी की हमारे बड़े बुजुर्ग हमारे साथ
बैठे है ! सब कुछ हमारे सुनने लायक समझने लायक होता था ! कभी कुछ न समझ आने पर बड़े
बुजुर्गो से पूछने पर भी कोई झिझक नहीं होती थी हमे !
नीम का पेड़ , हमराही , ये संसार , उड़ान , जसपाल भट्टी
, शेखर सुमन के साथ हसने का वो मौका जब हमारे साथ हमारे दादा
, दादी , ताऊ और घर के सभी बड़े भी
ठहाका लगाते थे ! मज़ाक में मिमिक्री में भी मर्यादा का इतना ध्यान की मज़ाक में भी
कोई फूहड़ता न होने पाये ! टी०वी० के सामने बैठने पर क्या मजाल की कभी झिझक
महशूस हो जाए !
किन्तु आज अगर समाचार चैनल्स की बात करे तो एक सिहरन सी
पैदा हो जाती है अंदर तक कब क्या दिखा जाए कौन से ऑपरेशन लेकर आ जाए एक डर , एक दहसत
हर पल !
किसी की निजता में खलल डालकर किसी का सुख चैन बर्बाद कर
सकते है ये बड़ेभैया और छुटभैया टाइप के समाचार चैनेल्स ! रिमोट गलती से भी दब जाए
तो एक मुस्कुराता चेहरा दादी की कहानी वाला वह चेहरा जिसे विश्वामित्र को भटकाने
वाली मेनका के नाम से हम जानते है ..उस टाइप का चेहरा फाउंडेशन से लक-दक चेहरा
समाचार में जान डालने के लिए रखा गया चेहरा जो घुटनो से थोड़ा ऊपर तक एक सकर्ट पहने
हाथ में कॉर्डिलेस पकडे हुए दिखाई देता है और सुनाई भी देता है आईये हमारे फलाने
चैनेल द्वारा किये गए फलाने घटना पर स्टिंग ऑपरेशन में आपका स्वागत है मै
फलानी समाचार सवांदाता फलाने चैनल से आइये आपको लिए चलती हूँ सीधे घटना स्थल पर
......
किन्तु उस फीमेल संवाददाता के बार बार घटना स्थल पर ले जाने
के बाद भी दर्शक अगर पुरुष है तो उसकी नज़र उस फलानी संवाददाता की सकर्ट के निचे
गोरी चिकनी टांको पर ही टिकी रहती है ! और टिकी भी क्यू न हो यही तो उस चैनल के
मालिक की मनसा भी होती है और उस चैनल के ऑपरेशन में जान फूकने का सस्ता आसान और
टिकाऊ जरिया भी क्यू की खबर बिकाऊ हो तभी तो चैनल की सार्थकता है !
अभी दो तीन दिन पहले की एक घटना याद आ रही है मै ऑफिस से घर
पहुंचा चाय लेकर
टी०वी० के सामने बैठा और समाचार देखने - सुनने की नियत से
रिमोट हाथ में लेकर
चैनल पर गया जल्दी जल्दी कई चैनल बदला सबपर एक ही चर्चा चल
रही थी सब एक ही
घटना , एक ही विषय पर कॉन्संट्रटे थे सीने तारिका
दीपिका पादुकोड़ के उस पर्सनल अंग पर ताक-झांक हो रही थी जिसे उछालना फूहड़ता ,
सर्मिंदगी , और सस्ती टी० आर० पी० बटोरने की
चाहत के अलावा आप कोई और नाम नहीं दे सकते ! मै इस समाचार को देखना और सुनना भी
चाह रहा था और ऐसा करने में झिझक भी रहा था ! झिझक इस लिए रहा था क्यू की मै घर
में था मेरे बड़े मेरे आस-पास थे !
और इसे देखना इस लिए चाह रहा था क्यू की सारे चैनल्स पर
शार्ट स्कर्ट पहने एंकर
के द्वारा ही इसे प्रस्तुत किया जा रहा था ! चिकनी टांगो
वाली उस एंकर के द्वारा जिसके
वही पर्सनल अंग आसानी से हमे दिख रहे थे जिसके लिए वह फीमेल
संवाददाता सीने तरीका को अपना विषय बनाई थी ! मै यह बखूबी समझता हूँ की उस
संवाददाता की मज़बूरी क्या रही होगी ..? वह तो मात्र एक चैनल के लिए
अपनी ड्यूटी कर रही थी जहा पैसे ( पैकेज ) के अलावा कुछ भी उसका अपना नहीं था
!
हास्यास्पद लग रहा था सब कुछ एक अर्ध नंगी फीमेल संवाददाता
एक चैनल के लिए अपनी ड्यूटी कर रही है और नंगे पन को ही अपना विषय भी बनाई है !
किसी की निजता में ताक झाँक कर रही है और अपनी निजता को चौराहे पर लगे पोस्टर की
तरह ज्यादे से ज्यादे ध्यानाकर्षण का केंद्र भी बना लेना चाहती है ! मित्रो जिस
दौरान इस बेजा नंगेपन पर चैनलों द्वारा नंगी - भौड़ी प्रस्तुति दी जा
रही थी उसी समय देश में एक ऐतिहासिक समय भी हस्ताक्षर कर रहा था यानी चीन के
राष्ट्रपति का भारत आना इसमें कोई सक नहीं की मै भी इस ऐतिहासिक क्षण को देखने के
लिए ही चैनल बदल रहा था ! दुःख हुआ की एक स्त्री को नंगा करके हमने इतिहास की तरफ
से सबका ध्यान आसानी से हटा दिया ! चीन के राष्ट्रपति का भारत आना कई नए - पुराने
मुद्दो पर बात चित और हस्ताक्षर कितना महत्वपूर्ण था सबकुछ हमारे लिए किन्तु एक
सीने तरीका के स्तनों पर जाकर अटक गया था हमारा मीडिया जगत ! इससे चैनल को टी० आर०
पी० तो मिली नो डाउट किन्तु स्वस्थ नहीं छीछालेदर वाली टी० आर० पी० ही मिली
..बेहतर होता अगर उसे समझने के लिए हम सब ने अपने अपने बगल में डस्टबिन रख लिया
होता छिःछिः थू ,
थू का अंदाज़ा लग गया होता !
मैग्जीन के कवर पेज से लेकर न्यूज़ पेपर टी०वी० चैनल
विज्ञापन जहा भी नज़र
डालिये स्त्री को ही नंगा करने की होड़ लगी हुई है ! मेंस के
यूज़ के सामानो का भी प्रचार
बिना स्त्री को नंगा किये नहीं हो सकता ऐसी मानशिकता
बन चुकी है !
मेंस के अंडर गारमेंट्स से लेकर , पिने (
ड्रिंक ) की बोतल
सिगरेट के पैकेट , गुटका , पान मसाला , जूता , चप्पल हर
चीज के प्रचार के लिए
नंगी चिकनी स्त्री अनिवार्य जान पड़ती है !
मुझे समझ नहीं आता जिलेट के प्रचार के लिए एक पुरुष ही
पर्याप्त क्यू नहीं होता
उसमे बिकनी कॉस्ट्यूम में पूरी तरह नंगी दो औरतो का क्या
काम !
अगर काम भी है तो जिलेट के प्रचार के लिए बार-बार उन दो
स्त्री के स्तनों पर कैमरा
घुमाने का क्या मतलब ! क्या जिलेट का प्रचार सिर्फ शादी सुदा
के लिए होता है ...?
नहीं ना जिलेट इस्तेमाल तो 18 वर्ष का
युवा भी करता है फिर वह युवा क्या सन्देश पाता
है इस प्रचार से ! ऐसी चीजो के लिए कोई सेंसरशिप क्यू नहीं , ऐसे
चैनल्स के लिए कोई
अनुच्छेद 19 क्यू नहीं .............?
स्त्री के स्तन को फ़्लैश करके , उसके
कामुक होठो को फ़्लैश कर के, उसकी चिकनी टांगो
पर कैमरा घुमाकर , बिकनी कास्ट्यूम में उसको
फ़्लैश करके आखिर हम समाज को कहा
ले जा रहे है ! हमे गंभीरता से सोचना होगा प्रचार , चैनल्स ,
न्यूज़ पेपर , मैग्जीन, कॉम्पैक्ट
इनका प्रादुर्भाव क्या स्त्री को नंगा करने के लिए हुआ था या समाज को आईना दिखाने ,
न्याय दिलाने , सच से रूबरू करवाने , समृद्धि के की ओर ले जाने के लिए !
एक बात मै साफ़ करना चाहता हूँ और सबको उसके इतिहास में भी
ले जाना चाहता हूँ कि जब - जब स्त्री को कामुकता का प्रतीक मानकर समाज के चौराहे
पर खड़ा किया गया है,
जब - जब स्त्री को नंगा करने की समाज में अति हुई है ,
साजिश हुई है , तब तब समाज पतन से दो चार हुआ
है , फिर समाज चाहे पश्चिम का हो या पूरब का !
आज स्त्री के नंगे होने का हानिकारक असर पश्चिम - पूरब
दोनों समाज पर सामान रूप से दिख रहा है ! हमें गंभीर होना होगा सोचना होगा की
स्त्री के पास स्तन होता है ,उसमे उभार भी होता है यह प्राकृतिक है
लेकिन वह स्त्री को बाज़ार में खड़ा कर देने के लिए नहीं होता बल्कि प्रकृति ने
स्त्री के लिए इसकी संरचना एक स्वस्थ उदेस्य से किया है ! स्त्री के स्तन
कामुकता का प्रतीक नहीं है वह एक स्त्री को मिलाजीवन संजीवनी श्रोत
के रूप में है क्यों की स्त्री माँ भी होती है और एक माँ
अपने इसी संजीवनी श्रोत से युग - युग से जीवन का निर्माण करती आ रही है !
अगर खबर स्त्री के स्तन और स्तन के उभार
पर ही बनानी है तो बेहतर होगा ऐसे चैनल अपने को
न्यूज़ चैनल तो ना ही कहे, बल्कि पोर्न साईट के रूप में डेवलप करे कम
से कम देखने वाले को ये तो पता होगा वो किस बाज़ार में खड़ा है और क्या देख
सुन रहा है उसे देखना सुनना है की नहीं ! साथ ही यह भी तय होगा की उसके जरुरत के
हिसाब से आप उसे परोसोगे ! न्यूज़ चैनल के नाम पर बिना ईक्षा के भी वह आपको देखने
सुनने को मजबूर तो नहीं होगा !
द्वारा -
प्रदीप दुबे
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