जहां आप
आँख खोलते है, जहां
आपका बचपन गुजरता है, जहां
आप अपनी जवानी की दहलीज़ पर
कदम रखते है , जहां
आप शिक्षा अर्जित करते है , जहां
से आप इस लायक होकर बाहर
निकलते है की आप अपना भविष्य लिख सके वहां की आबो हवा से , वहां के इतिहास भूगोल से, वहां की वर्तमान परिस्थितियों से, उस माटी से, उस शहर से अनायाश ही आपका एक गहरा - अटूट आत्मिक
लगाव हो जाता है और यह लगाव जीवन
पर्यन्त बना रहता है !
खासकर तब जब आपका
आपके उस शहर से विछोह होता है और एक लम्बे अंतराल के बाद कुछ समय के लिए पुनः आगमन होता है !
आज मुझ यायावर ने भी अपने जन्म
स्थान, अपने
होम टाउन,अपने
गृह नगर यानी इलाहाबाद के इतिहास भूगोल और
वर्तमान परिस्थिति को अपने अनुभव के मानक पर उतारने की एक
कोशिश किया है ........!
कुछ दिन पहले संगम पर
बैठकर मैंने जिस इलाहाबाद को
देखा वह इलाहाबाद अपने इतिहास में ह्वेनसांग जैसे विदेशी
यात्री को अपने आकर्षण
के बलपर अपने तक खीच कर लाने वाला इलाहाबाद दिखा !
महान दानी राजा हर्ष
वर्धन की दानशीलता की कहानी अपने दामन में समेटे हुए खामोश इलाहबाद दिखा !
पुरे उत्तरप्रदेश पर
नज़र रखने के लिए मध्यकाल में अकबर द्वारा बनाया गया सेना की छावनी और आज भी शेष-अवशेष
मात्र किले के रूप में खड़ा इलाहबाद
दिखा !
वेद पुराणो में
विदित- ब्याख्यायित-प्रचलित प्रयागराज को
संगम की लहरो पर अटखेलियाँ करते हुए तमाम उतार-चढ़ाव के बीच एक
हुकूमत के झंडे
तले अपने नए नाम के साथ नई पहचान पाने वाला इलाहाबाद बनते देखा मैंने !
अक्षय बट वृक्ष के
पत्तो से जीवन के लिए अमृत्व बरसाता ऑक्सीज़न जैसा दिखा इलाहाबाद मुझे !
जीवन की चार
मत्त्वपूर्ण जरूरते धर्म, अर्थ, काम,
मोक्ष को फलीभूत करनेवाला महाकुम्भ जैसा दिखा इलाहबाद !
हज़ार - हज़ार रूपों
में हज़ार-हज़ार गाथाये समेटे गंगा जमुनी तहज़ीब
और सरस्वती के वरदान
के भण्डार के रूप में दिखा इलाहाबाद मुझे !
मेरा मंन जितना ही
डूब - उतरा रहा था संगम तट पर बैठ कर उतनी ही दूर खीच
कर संगम की लहरे मुझे
लिए जा रही थी एक अनोखे इलाहाबाद से मेरा परिचय
करवाने के लिए !
गुलाम भारत के लिए
स्वतंत्रता की क्रांति को जन्म लेते देख पा रहा था मैं इलाहाबाद में
और उसकी किलकारियों
से गूंजता आनंद भवन भी देख रहा था मैं इन लहरो पर
मैं देख रहा था
दुनिया का दूसरा ऑक्सफ़ोर्ड , मैं
देख रहा था इस ऑक्सफ़ोर्ड से निकलने
वाली मेधा से अटा पड़ा
दिल्ली का मंत्रालय और 1970 के
दसक से 90 के
दसक तक हमारे
प्रशासन में इस मेधा
की हनक को !
मैंने देखा देश का
पहला प्रधान मंत्री देते हुए इलाहाबाद को .................................!
मैंने देखा
उत्तरप्रदेश और उत्तर प्रदेश वासियो के लिए चार क्षेत्र में इलाहाबाद
की अहम भूमिका
को जो सदैव
महत्वपूर्ण रही है और रहेगी -
1 = शिक्षा
की बुनियाद मजबूत करने के दृष्टिकोण से
सक्रिय -
हाई स्कूल
और इण्टर मीडिएट की परीक्षा को सर्टिफाई करने
के लिए
U.P BOARD इलाहाबाद को !
2 = सर
उठा कर न्याय देने के लिए खड़े इलाहाबाद उच्चतम न्यायलय को !
3 = मैंने
देखा सदियों से अपने पापो से मुक्ति पाने के लिए गंगा ,यमुना और सरस्वती की
धारा में
डूबकी लगाते हुए
चक्रवर्ती राजा को , रंक
- कंक को और आदि से लेकर वर्तमान संकराचार्य को
मैंने देखा सीमा पर
खड़े जवान के लिए कुम्भ में संगम तट पर आशीष मांगती एक माँ को ,
मैंने देखा भारत के
कोने कोने से आये तमाम किसान को जो अपनी फसल के लिए प्रार्थना कर रहे थे ,
मैंने देखा आताताई को
कुम्भ नहाते , संगम
पर डुबकी लगाते , अपने
पाप गिनाते हुए !
साथ ही देखा तमाम
नेता - अभिनेता को स्वांग रचाते हुए !
मैंने देखा प्राचीन
इलाहबाद के गौरव को , मध्यकालीन
इलाहबाद के परिवर्तन को और देखा आज
अपनी हीनता पर, अभाव पर आँशू बहाते वर्तमान इलाहबाद को
भी ....................................!
मैंने सुना अनुभव
किया संगम की लहरे मुझसे कह रही थी
यायावर - इलाहबाद अब
अपनों के हाथो ही उपेक्षित किया जा रहा है सब पलायन कर रहे है
यहाँ अब तो प्रतिभा
मेरी लहरो की तरह हो गई है ठहरती ही नहीं जीवन का जाने कैसा समुद्र
पा लेना चाहती है की
बस एक दिशा में बही जा रही है !
किन्तु यायावर मेरी 3 बाते सदैव स्मरण रखना जीवन में तीन बार
तो हर किसी को मेरी यात्रा
करनी ही होगी एक बार
अपने पाप धोने के लिए कुंभ की यात्रा !
दूसरी बार इतिहास को
जानने के लिए मेरे आगन से ही शुरुआत की यात्रा !
तीसरी बार संसार से
आवाजाही के बंधन से मुक्त होना है तो अंतिम यात्रा भी इलाहाबाद की ही करनी होगी
....!!
क्यों की मै सिर्फ
उत्तर प्रदेश का ही नहीं पुरे भारत का दर्शन भी हूँ
इतिहास भी हूँ और
भूगोल भी मेरी यात्रा के बिना भारत को जान पाना असंभव है ...............!
जय इलाहाबाद !!
द्वारा -
प्रदीप दुबे
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