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Friday, February 14, 2014

यात्रा  2
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यह ज़रूरी नहीं की- 
तुम यात्रा पर चलो 
और तुम्हे - 
मंजिल ही मिले , 
ताज़ ही मिले , 
फूल ही मिले - 
ख्वाब सच हों 
सपने साकार हों .......! 
जीवन में कभी - 
पतझण ना आये 
बस बहार हो - बस बहार हो ...!! 
यात्रा तो एक जुनून है - 
एक दीवानगी है , 
एक झंझावात है , 
एक मौज है - 
जो कभी काँटों के पथ से - 
कभी दुश्वारियों के रथ पर - 
तो कभी - 
संघर्षों की आंधी में 
होती ही रहती है  .... !! 
कभी अपने गैर लगते हैं 
तो कभी गैर अपनें , 
कभी सब कुछ 
निःस्वार्थ लगता हैं 
तो कभी सब कुछ 
स्वार्थ ही स्वार्थ - 
छलावा ही छलावा .....  
कभी सच सपना लगता हैं , 
कणवा लगता हैं ... 
तो कभी सच होते हैं सपनें , 
कड़वेपन में ही छिपी होती हैं 
जीवन की मीठास ............... !! 

द्वारा - 
प्रदीप दुबे ,

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