यात्रा 2
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यह ज़रूरी नहीं की-
तुम यात्रा पर चलो
और तुम्हे -
मंजिल ही मिले ,
ताज़ ही मिले ,
फूल ही मिले -
ख्वाब सच हों
सपने साकार हों .......!
जीवन में कभी -
पतझण ना आये
बस बहार हो - बस बहार हो ...!!
यात्रा तो एक जुनून है -
एक दीवानगी है ,
एक झंझावात है ,
एक मौज है -
जो कभी काँटों के पथ से -
कभी दुश्वारियों के रथ पर -
तो कभी -
संघर्षों की आंधी में
होती ही रहती है .... !!
कभी अपने गैर लगते हैं
तो कभी गैर अपनें ,
कभी सब कुछ
निःस्वार्थ लगता हैं
तो कभी सब कुछ
स्वार्थ ही स्वार्थ -
छलावा ही छलावा .....
कभी सच सपना लगता हैं ,
कणवा लगता हैं ...
तो कभी सच होते हैं सपनें ,
कड़वेपन में ही छिपी होती हैं
जीवन की मीठास ............... !!
द्वारा -
प्रदीप दुबे ,
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