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Friday, February 14, 2014

जहाज़ी आगे चल ....

जहाज़ी आगे चल .... 
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यहाँ कहां विश्राम 
जहाज़ी आगे चल 
बीच भंवर में 
वेड़ा ( वेणा ) तेरा - 
कर प्राणों से प्राण आज - 
जहाज़ी आगे चल ........ !! 

झंझावात हज़ार - 
हुईं धाराएं विपरित , 
द्वीप तेरा अनजान - 
जहाज़ी आगे चल .... !! 

ऊर में - 
सागर - सागर की हलचल 
मंज़िल - मंज़िल की - धुन हो , 
परवाह नहीं की 
तेरा छूट गया पतवार 
लेकर दृढ इच्छाएं चट्टान - 
जहाज़ी आगे चल .......... !! 

जग - सागर के इस हलचल में - 
और समय के मस्तक पर 
लिख देता है जो पथिक  - 
अपनी विजय यात्रा - 
कर ( हाथ ) में - 
अक्षत - रोली ले - 
समय करे यहाँ 
उसका ही यश - गान 
जहाज़ी आगे चल ........ !! 

द्वारा - 
प्रदीप दुबे 
((मेरे काव्य संग्रह- यात्रा से मेरी एक रचना अपने सुधि पाठकों के लिए सप्रेम ))

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