जहाज़ी आगे चल ....
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यहाँ कहां विश्राम
जहाज़ी आगे चल
बीच भंवर में
वेड़ा ( वेणा ) तेरा -
कर प्राणों से प्राण आज -
जहाज़ी आगे चल ........ !!
झंझावात हज़ार -
हुईं धाराएं विपरित ,
द्वीप तेरा अनजान -
जहाज़ी आगे चल .... !!
ऊर में -
सागर - सागर की हलचल
मंज़िल - मंज़िल की - धुन हो ,
परवाह नहीं की
तेरा छूट गया पतवार
लेकर दृढ इच्छाएं चट्टान -
जहाज़ी आगे चल .......... !!
जग - सागर के इस हलचल में -
और समय के मस्तक पर
लिख देता है जो पथिक -
अपनी विजय यात्रा -
कर ( हाथ ) में -
अक्षत - रोली ले -
समय करे यहाँ
उसका ही यश - गान
जहाज़ी आगे चल ........ !!
द्वारा -
प्रदीप दुबे
((मेरे काव्य संग्रह- यात्रा से मेरी एक रचना अपने सुधि पाठकों के लिए सप्रेम ))
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