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Friday, February 14, 2014

 
अलविदा ------- 
चीर अलविदा ----
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आज ना उम्मीद है कोई 
ना ही आँखों में सपना ..... 
चलते चलते मै- 
कुछ ज्यादे चल आई 
और राहें मेरे पीछे रह गई !

बहुत दिनों बाद आज किसी ने 
जब पूछा मुझसे - 
जाना कहा है तुम्हे 
मंजिल कहा है तुम्हारी ....... 
मै सोचने लगी 
पीछे मुड़कर देखने लगी 
ऐसा लगा जैसे वो मंजिल 
जिसके लिए मै चली थी - 
पीछे बहुत पीछे छूट गई हो !! 

निरुत्तर खड़ी थी मै 
जीवन की इस सांझ में  
नितांत अकेली - 
ना आगे अब राह बची थी 
ना पीछे लौटना ही सम्भव था 
सुख के 
दुःख के 
दोनों के ही दिन ढल चुके थे अब तो ,
एक पल को लगा जैसे 
यह जीवन का विश्राम है 
पर अंतरमन की आवाज़ ने 
झकझोर दिया मुझे 
जीवन यात्रा में विश्राम कहा पथिक 
जीवन यात्रा में ठहराव कहा पथिक !! 

अंतिम बेला है यह 
ले लो सबसे विदा 
मांग लो अब सबसे क्षमा 
जाने - अनजाने हुए है जो पाप तुमसे 
उबड़ - खाबड़ 
उंच - नीच 
जीवन पगडंडियों पर चलते हुए !!!!


द्वारा - 
प्रदीप दुबे ,

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