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Monday, February 17, 2014

उम्मीद

उम्मीद 
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जीवन की टेडी - मेढ़ी 
पगडंडियों पर चलते हुए 
मेरे लिए - 
दिन के उज़ाले में भी - 
एक डर था - 
सूरज का नहीं , 
धूप का भी नहीं 
बल्की अपनी ही 
परछाई का ........... ! 

दिन ढलने से पहले तक 
मै डरता रहा हूँ हमेसा 
अपनी ही परछाई से ............ !! 

किन्तु जब भी साम  ढलती है 
घुड़प्प अँधेरा 
ब्याप्त हो जाता है 
मेरे चारो तरफ 
और मुझे मेरी 
परछाई नहीं दिखती है 
क्यूँ की उसका अस्तित्व 
सूरज के डूबने के साथ ही 
समाप्त हो जाता है ................... 

जब हो जाता है - 
घुड़प्प अँधेरा 
हाथ को हाथ ना दिखे 
ऐसा अँधेरा ............. 
मैंने हरदम - 
आसमान की तरफ 
देखा है - 
अशंख्य तारों  को 
टिमटिमाते हुए देखा है 
और महसूश किया है कि - 

सब कुछ खो जाने के बाद भी 
उम्मीद का  कायम रहना ही 
जीवन है , 
जीवन का 
दर्शन है , 

हज़ार बार मै देखता रहा हूँ 
आसमान की तरफ 
जब भी सुख के  दिन के बाद 
दुःख की रात हुई है मेरे जीवन में 
मैंने अँधेरे में खो जाने से 
बेहतर दूर  आसमान में 
टिमटिमाते उम्मीद के तारों को देखना 
समझा है ......... 

क्यूँ की 
आसमान की तरफ 
उम्मीद के तारों को 
देखते - देखते अक्सर 
पूरब की दिशा में
लालिमा लिए एक 
आग के  गोले को आते 
मैंने देखा है 
जब भी आता है वह आग का गोला  
अँधेरा ख़त्म होने लगता है 
और मेरे जीवन में एक नई 
सुबह का आरम्भ होता है ......... 

घुड़प्प अँधेरे वाली रात ने 
हमेशा सिखाया है मुझे कि कैसे  
दुःख के घोर अँधेरे में भी 
आसमान पर 
टिमटिमाते तारों की तरह
कायम होनी चाहिए जीवन में 
लक्ष्य पर केंद्रित होने की उम्मीद ........ 

और जब आये जीवन में 
सुख का  प्रकाश....... 
दिन का उजाला .......
तो अपनी परछाई 
पर भी सोच - समझकर 
ही विस्वाश करना 
चाहिए .............. 
क्यू की परछाई छलावा है ,...... 
और उम्मीद प्रेरणा ....... 
विपरीत परिस्थिति में भी 
विस्वाश ना खोने देने की प्रेरणा ........ !! 


द्वारा - 
प्रदीप दुबे 

(( मेरे काव्य संग्रह - यात्रा - से मेरे सुधि पाठको के लिए सप्रेम ) )  

बिना मेरी अनुमति  के कृपया मेरी कोई रचना मेरे ब्लॉग से ना उठाये

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